सरकारी सरमाया से हज हाउस की तामीर ग़ैर इस्लामी

इलाहाबाद हाइकोर्ट की डीवीझ़न बेंच चीफ़ जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस डी के अरोतरा पर मुश्तमिल थी, ने रियासती हुकूमत को ग़ाज़ी आबाद में हज हाउस की तामीर के लिए रियासत के सरकारी खज़ाने से 40 करोड़ रुपये दिए जाने के मुआमले में कल अदालत में तफ़सीलात दाख़िल करने की हिदायत दी है।

फ़ाज़िल बेंच ने ये हिदायत डाक्टर अंकुर को इस मफ़ाद-ए-आम्मा की रिट पर समाअत के दौरान दी, जिस में दर्ख़ास्त गुज़ार ने कहा कि हज हाउस की सरकारी पैसे से तामीर और आज़मीन-ए-हज्ज को सब्सीडी रक़म देना ग़ैर इस्लामी है। उन्होंने कहा कि ख़ुद मुसल्मानों की तरफ़ से सरकारी पैसे से हज हाउस की तामीर की मुख़ालिफ़त की जा चुकी है और की जा रही है।

उन्होंने कहा कि हज हाउस की तामीर क़तई तौर पर ज़रूरी नहीं है। उन्होंने कहा कि एक तरफ़ रियासत के एक मुस्लिम वज़ीर के कहने पर रियासती हुकूमत ने ग़ाज़ी आबाद में हज हाउस की तामीर का बजट पाँच करोड़ से 40 करोड़ रुपये कर दिया। दर्ख़ास्त गुज़ार के मुताबिक‌ लखनऊ में हज हाउस पहले ही से काम कररहा है।

दर्ख़ास्त गुज़ार ने अदालत में सुप्रीम कोर्ट की रिट बराए 2012 का हवाला दिया, जिस में सुप्रीम कोर्ट ने आज़मीन-ए-हज्ज को 40 फ़ीसद सब्सीडी दिए जाने को क़ुरआन-ओ-अहादीस की रोशनी में ग़ैर इस्लामी बताते हुए इस सब्सीडी को बतदरीज दस साल‌ के अंदर ख़त्म करने हुकूमत को हिदायत दी।

सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले पर मर्कज़ी हुकूमत ने आज़मीन-ए-हज्ज को सब्सीडी ख़त्म करने का अमल शुरू भी कर दिया है। दस साल‌ के अंदर आज़मीन हाजियों के लिए ये सब्सीडी की रक़म बिल्कुल ख़त्म करदी जाएगी। रियासत की ऐडवोकेट जेनरल बुलबुल गौड पाल रियासती हुकूमत की जानिब से इस मुआमला में आज अदालत में हाज़िर हुईं। उन्होंने इस रिट के जवाब के लिए हुकूमत से कुछ खत‌ मांगा लेकिन फ़ाज़िल बेंच ने उन्हें 24 घंटे के अंदर जवाब दाख़िल करने की मोहलत दी।

इस तरह से आज‌ इस मुआमले में हर अदालत में समाअत होगी। दर्ख़ास्त गुज़ार ने अपनी रिट में ये भी कहा कि हुकूमत के पास अवाम को तिब्बी सहूलयात फ़राहम करने तक का पैसा नहीं रह गया है। अवाम को तरह तरह की मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा है इसे में हुकूमत ग़ाज़ी आबाद में हज हाउस की तामीर पर गै़रज़रूरी तरीक़ा से 40 करोड़ रुपये ख़र्च करके सरकार की बर्बादी कररही है।