ईस्लामाबाद । बमबारी के इल्ज़ामों(आरोपों) पर 20 साल सज़ा ए मौत पर रहने के बाद हिंदूस्तानी शहरी(नागरीक) सरबजीत सिंह को आख़िरकार रिहा किया जा रहा है क्योंकि पाकिस्तान के राष्ट्रपती आसिफ़ अली ज़रदारी ने आज उन की सज़ा ए मौत को माफ़ कर दिया ।
ज़रदारी ने सरबजीत की सज़ा ए मौत को घटाकर उम्र क़ैद में बदल दिया जिस की वो 14 साल से जेल में रहने के बाद पहले ही पुरी कर चुका है । लिहाज़ा उसे रिहा किया जा रहा है ।
49 साला सरबजीत जिसे 1990 में पंजाब में पेश आए सिलसिला वार बम धमाकों में लिपीत होने की पादाश में मुजरिम क़रार दे कर सज़ा ए मौत सुनाई गई थी , इस ने हमेशा अपनी बेक़सूरी का दावा किया और कहा कि इस का केस पहचान की ग़लती के सबब बन गया ।
इन धमाकों में 14 लोग हलाक हुए थे । सरकारी ज़राए(सुत्रो) ने आज बताया कि ज़रदारी ने हुक्काम को उसे रिहा कर देने का हुक्म दिया है बशर्तिके इस ने अपनी जेल की मीयाद पुरी करली हो । ज़राए ने पी टी आई को बताया कि राष्ट्रपती महेल से जारी किये गए खुलासे या सरकारी तजवीज़ के मद्देनजर क़ानून मंत्री फ़ारूक़ नाविक ने आज वज़ारत-ए-दाख़िला से कहा कि सरबजीत की जल्दी से जल्दी रिहाई के इक़दामात किए जाएं क्योंकि वो अपनी उम्र क़ैद पुरी कर चुका है ।
सरबजीत को वज़ारत-ए-दाख़िला और पंजाब के महिकमा दाख़िला की तरफ से ज़रूरी जाबतें पुरा करने के बाद अगले चंद दीनों में रहा किया जा सकता है । सरबजीत इन दीनों लाहौर की कोट लखपत जेल में कैद है । राष्ट्रपती ज़रदारी का इक़दाम एक माह से जयादा मुद्दत के बाद सामने आया है जबकि अपने अलील पाकिस्तानी साईंसदाँ ख़लील चिशती जिन्हें एक क़तल में लिपीत होने के इल्ज़ाम पर लग भग दो दहें राजिस्थान में कैद रखा गया था उन्हें हिंदूस्तान की सुप्रीम कोर्ट के अहकाम पर आज़ाद कर दिया गया ताकि वो कराची में अपनी फ़ैमिली से मुलाक़ात कर सके ।
सरबजीत ने चिशती की रिहाई के बाद पिछ्ले माह राष्ट्रपती ज़रदारी को रहम की ताज़ा अपील भेजी थी । इस रहम की अर्ज़ी में एक लाख हिंदूस्तानियों की दस्तख़त के साथ एक दस्तावेज़ शामिल थी जिस में ज़रदारी से हिंदूस्तान की तरफ से चिशती की रिहाई पर जवाबी इक़दाम करने की अपील की गई थी ।
दिल्ली की जामा मस्जिद के पेश इमाम सय्यद अहमद बुख़ारी और दरगाह ख़्वाजा मुईन उद्दीन चिशती अजमेरी के मुतवल्ली सय्यद मुहम्मद यामीन हाश्मी की तरफ से ज़रदारी के नाम दो खत भी सरबजीत की अर्ज़ी के साथ लगाये गए थे ।
सरबजीत शुरू से यही कहता आया है कि इस का केस ग़लत पहचान की वजह से बन गया , जबकि इस के नाम पर एफ़ आई आर तक रजिस्टर में दर्ज नहीं हुइ थी । इस ने अपनी अपील में लिखा कि मैंने जेल में 22 साल इस जुर्म के लिए गुज़ार दिए जो मैंने नहीं किया । सरबजीत की बहन दलबीर कौर ने भी यही दावा किया है कि इस के पास अहम सबूत है जो इस के भाई की बेक़सूरी साबित करता है । सरबजीत को पाकिस्तान के आर्मी एक्ट के तहत सज़ा ए मौत दी गई थी । उस की तरफ से इस वक़्त के फ़ौजी सरबराह(प्रमुख) को भेजी गई दरख़ास्त रहम इस हिदायत के साथ रद करदी गई थी कि उसे पाकिस्तान के राष्ट्रपती से रुजू किया जाना चाहिये । अगरचे सरबजीत को 2008 में फांसी दिया जाना था लेकिन पाकिस्तानी हुक्काम ने पुर्व प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी के दखल देने के बाद उस की सज़ा पर अमल करने को ग़ैर मुअय्यना मुद्दत के लिए मुल्तवी कर दिया था ।