जो चीज़ सज़ाए मौत वाले हिंदूस्तानी कैदी की रिहाई का मूजिब (वजह) बनना चाहीए था वो हकूमत-ए-पाकिस्तान के लिए बैन अल-अक़वामी (अंतर्राष्ट्रीय) पशेमानी का सबब बन गई जो दरअसल एक पाकिस्तानी जेल में मौजूदा तौर पर महरूस (क़ैद) दो हिंदूस्तानी शहरियों की शनाख़्त के बारे में उलझन का नतीजा है ।
कल इसी इत्तिलाआत उभरने के चंद घंटे के बाद कि पाकिस्तान 1990 में सिलसिला वार बमबारियों में मुबय्यना (कथित) तौर पर मुलव्विस सरबजीत सिंह जिसे मुजरिम क़रार दे कर सज़ाए मौत सुनाई गई , उस को रिहा करने वाला है , सदारती तर्जुमान (प्रवक्ता ) फ़र्हत उल्लाह बाबर ने वज़ाहत (स्पष्ट) की कि हुक्काम (अधिकारी) एक दीगर (दूसरे) हिंदूस्तानी बनाम सुरजीत सिंह को आज़ाद करने के इक़दामात (उपाय) कर रहे हैं जो जासूसी की पादाश में मुक़य्यद है।
दी एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने अपनी सफ़ाह-ए-अव्वल की रिपोर्ट में कहा कि शनाख़्त में ग़लती का मुआमला ऐसी चीज़ बन गया जो दरअसल एक अच्छी तबदीली होना चाहीए था लेकिन बैन अल-अक़वामी (अंतर्राष्ट्रीय ) सतह पर सुबकी का मुआमला बन गया । अख़बार डॉन की वेब साईट ने हुकूमत की जानिब से मौक़िफ़ में यकसर तबदीली को अदीम उल नज़ीर अंदाज़ की तबदीली क़रार दिया ।
दी एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट में कहा गया कि ये ग़ैर वाज़िह (अस्पष्ट ) है कि किस तरह ऐसी लग़्ज़िश (ग़लती) पेश आई , आया ये सरकारी गोशों का काम है जिन की मालूमात समझने में ग़लती करली गई या फिर मीडिया की जानिब से रिपोर्टिंग में कोई ग़लती हुई और इस सारे मुआमले के लिए वही ज़िम्मेदार है।