अरब मुल्क त्युनस में गुजिश्ता बरस बर्पा होने वाले अवामी इन्क़िलाब के नतीजे में मफ़रूर(फरार) सदर (राष्ट्रपती) जैन-उल-आबदीन बिन अली के ख़िलाफ़ बाग़ीयों के क़तल-ए-अमद का हुक्म और कई दीगर (दुसरे) इल्ज़ामात के तहत क़ायम मुक़द्दमात की समाअत जारी है। त्युनस के शुमाल (उत्तर ) मग़रिब (पश्चिम ) में अलकाफ़ शहर में साबिक़ (भूत पूर्व ) सदर (राष्ट्रपती) के मुक़द्दमा की समाअत के दौरान मिल्ट्री प्रॉसिक्यूटर जनरल ने जैन-उल-आबदीन को फांसी की सज़ा देने का मुतालिबा किया।
उन्हों ने अदालत के रूबरू ब्यान देते हुए कहा कि माज़ूल सदर (राष्ट्रपती) जैन-उल-आबदीन बाग़ीयों के दानिस्ता (जानबूझ कर) क़तल-ए-आम में बराह-ए-रास्त मुलव्विस हैं। उन्हों ने फ़ौज और स्कियोरिटी इदारों को बाग़ीयों को गोलीयां मारने और उन्हें हलाक करने के बराह-ए-रास्त अहकामात दीए थे।ज़राए (सूत्रों) के मुताबिक़ मिल्ट्री प्रॉसिक्यूटर जनरल ने साबिक़ (भूत पूर्व ) सदर (राष्ट्रपती) के 22 दीगर (दुसरे) साथीयों को भी बाग़ीयों के क़तल, रिश्वत सतानी और दीगर (दुसरे) इल्ज़ामात के तहत सख़्त तरीन सज़ाएं सुनाने का मुतालिबा किया।
ख़्याल रहे कि त्युनस के साबिक़ (भूत पूर्व ) सदर (राष्ट्रपती) को गुजिश्ता बरस उस वक़्त अपने 23 साला आमिराना निज़ाम हुकूमत से हाथ धोना पड़ा था जब अवाम ने इन के ख़िलाफ़ मुल्क गीर एहतेजाजी तहरीक (आंदोलन) शुरू की थी।
इन्क़िलाबी (क्रन्तिकारी) तहरीक (आंदोलन) के नतीजे में जैन-उल-आबदीन ने ना सिर्फ इक़तिदार छोड़ने का ऐलान किया बल्कि जान बचाने के लिए सऊदी अरब फ़रार हो गए थे। इन की अदम (गैर) मौजूदगी में त्युनस की अदालतें इन के ख़िलाफ़ मुक़द्दमात की समाअत जारी रखे हुए हैं।