बीजिंग। हम जब किसी को पल्ले दर्जे का बेवकूफ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। भारत में गधे जैसे जानवर का इस्तेमाल माल ढोने के लिए किया जाता है। ऐसी मान्यता है जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्दिहीन समझा जाता है, लेकिन चीन में गधों की मांग इतनी बढ़ गई है इसे दुसरे देशों से आयात किया जा रहा है। दरअसल चीन में गधो की खाल से जिलाटीन नाम की एक प्रोडेक्ट बनाई जाती है जिसका इस्तेमाल एक मशहूर दवा ‘इजाओं’ में इस्तेमाल होता है जो इंसोमेनिया जैसे मर्ज के लिए कारगर है। चीन जिलेटिन का इस्तेमाल स्वास्थ्यवर्धक और कामोत्तेजना बढ़ाने वाली दवाओं और एंटी एजिंग क्रीम बनाने में किया जाता है। चीन ये दवा बनाकर दुनिया भर में निर्यात करता है और अच्छा खासा मुनाफा कमाता है।
यही वजह है कि चीन पूरी दुनिया के गधों को खरीदने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में गधो के इस तरह के इस्तेमाल की वजह से इनकी आबादी तेजी से घट रही है। बीते 20 सालों में इनकी आबादी 20 मिलियन से घटकर 6 मिलियन हो गई हैं।
चीन अपने गधो की खाल के जरुरत के लिए अफ्रीका और भारत की तरफ देख रहा है। चीन से और भी गरीब मुल्कों से गधों की खरीदारी की जा रही है। हाल ही में नाइजेरिया चीन के इस तरह तेजी से गधों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए प्रतिबंध भी लगा दिया है। नाइजेरिया की सरकार का कहना है कि इस साल चीन ने हमारे देश से तकरीबन 80 हजार गधों को खरीदा है जबकि 2015 में 27 हजार गधों की खरीदारी की गई थी। नाइजेरियन के सरकार को डर है कहीं इसी तरह से चीन हमारे देश से गधों की खरीददारी करता रहा तो वो विलुप्त हो जाएंगे जिसका असर देश के प्राकृतिक संतुलन पर पड़ेगा।
नाइजेरिया की तरह एक और अफ्रीकी देश बुर्किनोफासों ने भी चीन के गधो के खरीददारी पर रोक लगा दी है। उनका कहना है कि चीन हमारे देश में यहां के इस साल 45 हजार गधों को मारकर उनकी खाल निकाली है जबकि हमारे देश में गधो की कुल आबादी 14 लाख ही है।
चीन के इस तरह गधो की मांग से गधों की कीमत में तो बेतहाशा इजाफा हुआ लेकिन इसका खामियाजा गधों की घटती आबादी की शक्ल में उठाना पड़ रहा है।
You must be logged in to post a comment.