सिमांचल और सियासत: अब्दुल हमीद अंसारी

बिहार का सिमांचल वह इलाका कहलाता है जिसकी आबादी में ज्यादातर मुसलमान रहते हैं। शायद यही वजह है कि सियासत भी जम कर किया जाता है, और इस बार भी किया गया। AIMIM के इंतेखाबात‌ लड़ने का फैसला भी अजीब रहा, दो बार रह चुके एमएलए अख्तर उल ईमान का इस पार्टी से जुड़ना, बेहद दिलचस्प रहा।

रैलियों में खूब भीड़ देखे गये, मगर लोगों ने चौकाने वाले नतीजे दिये। असल में किशनगंज से कांग्रेस के टिकट पर दो बार के एमपी मौलाना असरारूल हक़ क़ाशमी साहब का असर दिखाई दिया, मुआशरे के सभी तपको में बेहतर पहचान रखने वाले मौलाना कभी मुआशरे को जात पात में नहीं बटने दिया।

जब कांग्रेस को हिंदुस्तान की आवाम ने नकार दिया, तब भी मौलाना 2 लाख से ज्यादा वोट पाकर पार्लियामेंट‌ तक पहुंचने में कामयाब रहे। मौलाना असरारूल हक़ क़ाशमी साहब किशनगंज में तकरीबन 126 मख्तब और मदरसों को चलाते हैं, एक 10+2 CBSE जो लड़कियों के लिए बेहतर इंतेजाम के साथ चलता है, उनके ही सरपरस्त में है।

पुरे सिमांचल में बेहतर तालीमी मियार बनाने में उनका काफी साथ रहा। उनके इंसानी पहचान के आगे AIMIM को घुटने टेकने पड़े, AIMIM की एक न चली, सिमांचल के लोगों ने AIMIM को नकार कर सेकुलरिज्म की बेहतरीन मिसाल कायम किया।