कोलकाता हाई कोर्ट का फैसला की अल्पसंख्यक शैक्षिक संगठनों के नेशनल कमीशन किसी भी अल्पसंख्यक शैक्षिक संगठन को अल्पसंख्यक हैसियत नहीं दे सकता है। इस फैसले के खिलाफ कमीशन ने सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले की जांच का निवेदन किया था। जिस पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी करके जांच का फैसला ले लिया है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सीधा असर दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी पर पड़ेगा जिसको 2011 में कमीशन द्वारा अल्पसंख्यक संगठन का दर्जा दिया गया था।
इसके अल्पसंख्यक दर्ज़े को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी और याचिका दर्ज की गयी। याचिका को बीजेपी की ओर से समर्थन प्राप्त हुआ। हालाँकि अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने ह्यूमन रिसोर्स एंड डेवलपमेंट मंत्रालय को बताया था कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया अल्पसंख्यक संस्था नहीं है।
सेक्शन-7 के तहत जामिया मिल्लिया इस्लामिया 1988 अधिनियम में कहा गया है कि यूनिवर्सिटी किसी भी लिंग, जात, धर्म, गोत्र, वर्ग के व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगी और यूनिवर्सिटी द्वारा छात्रों या अध्यापकों के प्रवेश पर किसी भी धर्म के आधार पर किसी तरह की कोई भी चीज़ को थोपा जाना स्वीकृत नहीं किया जायेगा
कमीशन के पक्ष में याचिका दायर करने वाले वक़ील संजय हेगड़े का कहना है कि कमीशन की शक्तियॉ किसी भी तरह पुनर्विचार योग्य नहीं है। यह कमीशन 2004 निर्धारित कानून केअंतर्गत अल्पसंख्यक संस्था का दर्जा प्रदान कर सकता है। हाई कोर्ट के फैसले में कहा गया कि 2004 कानून की शक्तियाँ सक्षम अधिकारी को दी गयी थी न की कमीशन को।
हेगड़े ने आगे बताया कि सक्षम अधिकारी सिर्फ ऐतराज़ नहीं का प्रमाण दे सकता है, जबकि कमीशन किसी भी संस्था को अल्पसंख्यक संस्था का दर्जा प्रदान कर सकती है।
निवेदन मे कहा गया कि हाई कोर्ट खुद सक्षम अधिकारी और कमीशन की शक्तियों को लेकर अस्पष्ट है ऐसे में वह भृम फ़ैलाने वाले फैसलों के साथ सामने आ रहे हैं। हाई कोर्ट द्वारा अधिनियम में लिखे इनके बीच के फ़र्क़ को धुंधला कर दिया गया है।
कोल्कता हाई कोर्ट के फैसले के विरोध में बोलते हुए निवेदन में आगे कहा गया कि, सही कानून की स्तिथि यह है कि, सक्षम अधिकारी की शक्तियां सिमित है उनके द्वारा सिर्फ ऐतराज़ नहीं का प्रमाण ज़ारी किया जा सकता है जबकि कमीशन द्वारा अल्पसंख्यक संस्था का दर्जा दिया जा सकता है