साबिक़ सदर जमहूरीया (पूर्व राष्ट्रपती) ए पी जे अब्दुल कलाम ने अपनी ताज़ा तरीन किताब में इन क़ियास आराईयों को मुस्तर्द करने की कोशिश की है कि 2004 में वज़ीर-ए-आज़म का ओहदा कुबूल करने से सोनीया गांधी के इनकार की वो (डाक्टर अब्दुल कलाम) ही अहम वजह ( कारण) थे।
डाक्टर अब्दुल कलाम ने अपनी किताब टर्निंग प्वाईंटस ए जर्नी थ्रो चैलेंज्स में मुतनाज़ा ( विवादित) फ़ैसले के ज़ेर-ए-उनवान तीसरे बाब में लिखा है कि सोनीया अगर अपने लिए कोई दावा पेश करतीं तो मेरे पास उनके तक़र्रुर ( नियुक्ती) के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
आम तौर पर ये समझा जा रहा था कि सोनीया गांधी को वज़ीर-ए-आज़म ( प्रधान मंत्री) बनाने के बारे में डाक्टर कलाम को शदीद ज़हनी तहफ़्फुज़ात थे और सोनीया गांधी को वज़ीर-ए-आज़म ना बनाए जाने की यही एक बुनियादी वजह भी थी। ये किताब हारपर कोनस की तरफ़ से तबा की गई है जिस की आइन्दा हफ़्ता रस्म इज़रा होगी।
ताहम ( यद्वपी) उन्होंने ये कहते हुए अपने रद्द-ए-अमल (प्रतिक्रिया/ remarks) का इज़हार किया है कि इस ख़बर में कोई नई बात नहीं है। बी जे पी के सीनीयर लीडर मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि डाक्टर कलाम के एतराफ़ ने महिज़ इस बात को साबित कर दिया है कि तमाम इख़्तेयारात सोनीया गांधी के पास मर्कूज़ हैं और जवाबदेही का कोई तसव्वुर (विचार) भी नहीं है।
लेकिन कांग्रेस ने बी जे पी के इस इल्ज़ाम को मुस्तर्द ( निरस्त) करने की कोशिश करते हुए कहा है कि कलाम का ब्यान रास्त तौर पर इस पार्टी की सिम्त इशारा करता है जो सोनीया गांधी को वज़ीर-ए-आज़म बनाना नहीं चाहती थी।
कांग्रेस के सीनीयर लीडर सत्य व्रत चतुर्वेदी ने कहा कि कलाम ने रास्त तौर पर बी जे पी की सिम्त इशारा किया है जो नहीं चाहती थी कि सोनीया गांधी को वज़ीर-ए-आज़म बनाया जाए। उन्होंने (बी जे पी क़ाइदीन) सदर के पास पहूंच कर नुमाइंदगी (Representation) भी की थी।
मिस्टर चतुर्वेदी ने कहा कि डाक्टर कलाम का ब्यान उन लोगों के बारे में वाज़िह ( साफ साफ/ स्पष्ट) सुबूत है जो सोनीया गांधी को वो हक़ नहीं देना चाहते थे जो दस्तूर ने उन्हें (मिसिज़ गांधी को) दिया है। सी पी आई एम ने इस तनाज़ा की एहमीयत को घटाने की कोशिश करते हुए कहा कि डाक्टर कलाम का सदारती दौर अब तारीख़ ( इतिहास) का हिस्सा बन चुका है।
सी पी आई के लीडर डी राजा ने कहाकि सदारती इंतिख़ाबात से क़बल इस किताब की रस्म इजराई एक दिलचस्प ख़बर बन गई है बसूरत-ए-दीगर(दूसरी अवस्था मेये सब बातें माज़ी (भूतकाल) की यादें और तारीख़ का हिस्सा हैं जिस की एहमीयत इससे बढ़ कर और कुछ नहीं है।