हज़रत युसुफ अलैहिस्सलाम की कब्र पर इजरायली सैनिकों ने किया हमला, 50 से ज्यादा फलस्तीनी घायल!

फिलिस्तीनी सूत्रों ने बताया है कि नाबलुस नगर में स्थित हज़रत युसुफ के मज़ार पर ज़ायोनियों के हमले के बाद फिलिस्तीनी युवाओं ने उनका विरोध किया और झड़पें आरंभ हो गयीं। इस्राईली सैनिकों ने फिलिस्तीनियों पर फायरिंग की और आंसू गैस के गोले दागे जिसके बाद कम से कम 50 फिलिस्तीनी घायल हो गये।

इन झड़पों के दौरान इस्राईली सैनिकों ने दसियों फिलिस्तीनियों को गिरफ्तार भी कर लिया। इस्राईली फिलिस्तीन के विभिन्न क्षेत्रों का बड़ी तेज़ी से यहूदीकरण कर रहा है और इसके लिए वह इस्लामी अवशेषों को भी ध्वस्त कर रहा है ।

इस से पहले फिलिस्तीन की वक़्फ़ मंत्रालय ने विश्व समुदाय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से अपील की थी कि वह पवित्र स्थलों पर इस्राईली सैनिकों के हमलों को रोकने के लिए क़दम आगे बढ़ाएं।

फिलिस्तीन के वक़्फ़ मंत्रालय ने बताया था कि सन 2017 ईसवी में ज़ायोनियों ने मुसलमानों और ईसाइयों के लिए पवित्र स्थलों पर 1210 बार धावा बोला है।

ईश्वरीय दूत हज़रत युसुफ अलैहिस्सलाम की क़ब्र के बारे में मतभेद हैं और यहूदियों के अनुसार पूर्वी नाबलुस में मौजूद यह क़ब्र, ईश्वरीय दूत हज़रत युसुफ की है और इसी लिए वह हफ्ते में एक दिन इस स्थान से फिलिस्तीनियों को निकाल कर स्वंय उस पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं।

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यह कब्र किसी युसुफ नामक व्यक्ति की है जिसे यहूदी हज़रत युसुफ अलैहिस्सलाम की क़ब्र समझते हैं।

इस्लामी इतिहासकारों के अनुसार हज़रत युसुफ अलैहिस्सलाम के स्वर्गवास के बाद मिस्र में इस बात पर मतभेद पैदा हो गया कि उन्हें कहां दफ्न किया जाए?

हर क़बीला चाहता था कि वह उसके मोहल्ले में दफ्न किये जाएं ताकि उनकी बरकत से उसे फायदा पहुंचे। यह झगड़ा इतना बढ़ा कि यह फैसला किया गया कि उन्हें मिस्र की नील नदी में दफ्न किया जाए और ताकि उनकी क़ब्र से पानी गुज़रे और उस पानी से सब लोग लाभ उठाएं।

मिस्र की नील नदी का इस देश की खेती बाड़ी में बहुत योगदान है।
हज़रत युसुफ को मुसलमान, ईसाई और यहूदी, तीनों की ईश्वरीय दूत मानते हैं। इस प्रकार से हज़रत युसुफ अलैहिस्सलाम को नील नदी में दफ्न कर दिया गया और उनकी क़ब्र पत्थर की बनायी गयी ताकि पानी उनकी क़ब्र के ऊपर से गुज़रे और क़ब्र को नुकसान न पहुंचे।

यहां तक कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का ज़माना आया और जब उन्हें बनी इस्राईल नामक जाति के साथ मिस्र से फिलिस्तीन पलायन करना हुआ तो चांद निकलना बंद हो गया। रात में कारवां के लिए चांद का दिखायी देना बहुत जरूरी था क्योंकि उस दौर में रास्ते का निर्धारण इसी प्रकार होता था।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को ईश्वरीय संदेश आया कि हज़रत युसुफ की क़ब्र तलाश करो और उनकी लाश को ( जैसा कि उन्होंने वसीयत की थी) अपने साथ फिलिस्तीन ले जाओ इस प्रकार से चांद नज़र आएगा।

हज़रत मूसा ने पूछा कि किसे मालूम है कि हज़रत युसुफ की क़ब्र कहां है? पता चला कि एक अपाहिज और अंधी बुढ़िया है जिसे उस जगह के बारे में मालूम है।

हज़रत मूसा ने उसे बुलवाया और जब उससे पूछा तो उस बुढ़िया ने कहा कि हां मुझे मालूम है मगर उसके लिए मेरी तीन मांगें आप को पूरी करनी होगीं ?

बुढ़िया ने कहा कि पहली यह है कि मैं बिल्कुल स्वस्थ्य हो जांऊ, दूसरी यह कि मैं फिर से जवान हो जांऊ और तीसरी यह कि आप वादा करें कि मुझे अपने साथ जन्नत में ले जाएंगे।

हज़रत मूसा को उसकी यह मांग बहुत ज़्यादा लगी किंतु ईश्वरीय संदेश आया कि मूसा इस बुढ़िया की मांगें मान लो क्योंकि हम इन सभी मांगों को स्वीकार कर चुके हैं।

हज़रत मूसा ने बुढ़िया की मांगें मान ली, उसने हज़रत युसुफ अलैहिस्सलाम की क़ब्र का पता बताया और हज़रत मूसा, हज़रत युसुफ की लाश निकाल कर फिलिस्तीन ले गये किंतु फिलिस्तीन में कहां दफ्न किया इसके बारे में इतिहासकारों के पास ठोस मालूमात नहीं है।

साभार- ‘वर्ल्ड न्यूज अरेबीया’