हज़रत जाबिर रज़ी अल्लाहो तआला अनहो फ़रमाते हैं , में एक मर्तबा चांदनी रात में कभी रसूल-ए-पाक (स०अ०व०) को देखता था और कभी चांद को देखता था , मैं पुकार उठा कि रसूल-ए-पाक (स०अ०व०) चांद से ज़्यादा जमील , हसीन और मुनव्वर हैं । (शमाइल तिरमिज़ी)
हज़रत जाबिर रज़ी अल्लाहो तआला अनहो फ़रमाते हैं , में एक मर्तबा चांदनी रात में कभी रसूल-ए-पाक (स०अ०व०) को देखता था और कभी चांद को देखता था , मैं पुकार उठा कि रसूल-ए-पाक (स०अ०व०) चांद से ज़्यादा जमील , हसीन और मुनव्वर हैं । (शमाइल तिरमिज़ी)