हमारे मुस्लिम स्कूल में होता है “जन गण मन” और “सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा”

अंग्रेज़ी स्कूल के दौर में हमने बचपन में उर्दू माध्यम के स्कूल में पढ़ाई की. शुरुवाती शिक्षा मदरसे में हुई जहां पर इक़बाल की मशहूर “लब पे आती है दु’आ बनके तमन्ना मेरी” गायी जाती थी और जब भी आज़ादी का दिवस आता या गणतंत्र दिवस तो जन गण मन और सारे जहां से अच्छा गाते थे. छठी क्लास से मैंने हाफ़िज़ सिद्दीक़ी इस्लामिया इंटर कॉलेज में पढ़ाई की, बदायूं शहर का माइनॉरिटी स्कूल, उस ज़माने में वहाँ पढ़ाई का ठीक ठाक माहौल था और अच्छे ख़ासे बच्चे हर तबक़े के पढ़ते थे. स्कूल की प्रेयर में “जन गण मन” और “सारे जहां से अच्छा” पढ़ा जाता था और आज भी यही पढ़ा जाता है. सबकुछ बिलकुल उस तरह जिस तरह होना चाहिए, देश के लिए प्यार और सम्मान की भावना अपने आप जागृत होती थी और हमारे स्कूल के टीचर कैसे भी हों लेकिन हिन्दू-मुस्लिम के नाटक से दूर थे और पूरा पढ़ाई का माहौल था और ऐसा लगता था ये आम बात है लेकिन जब थोडा बड़े हुए और आसपास का माहौल देखा ख़ासतौर पे उन लोगों के स्कूल का जो अपने को बहुत बड़ा देशभक्त कहते फिरते हैं उनके यहाँ प्रेयर में “जन गण मन” नहीं होता और ना ही सारे जहां से अच्छा..उनके यहाँ तो कोई वंदना होती है. लखनऊ में आने के बाद मुझे मालूम हुआ कि कुछ बड़े अच्छे स्कूल हैं जहां गायत्री मन्त्र पढवाया जाता है, ये हिन्दू बच्चे ही नहीं गैर-हिन्दू बच्चों से भी पढवाया जाता है, कई बार तो बच्चों को पता ही नहीं होता ये धार्मिक है या अधार्मिक.
बात असल में ये है कि आप यूं तो इतना हंगामा करते हो लेकिन जब सिखाने की बात आती है तो वो बात आप सिखाते ही नहीं हो जो सिखानी चाहिए. महात्मा गाँधी और जवाहर लाल की बातें आप सुनाते ही नहीं हो, आप असल में कुछ करते नहीं हो बस जब अपने मतलब की राजनीति होती है तो उसमें आ जाते हो वरगलाने. ये दुनिया अच्छी बातें करके भी जीती जा सकती है, हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करके दुनिया जीतना मुश्किल नहीं है और ये जो देशभक्ति का नाटक करने वाले लोग हैं इनको पहले तो देश समझने की ज़रुरत है उसके बाद कोई नाटक करने की ज़रुरत है. जो मुसलमान और हिन्दू में मतभेद करे, जो हिंदी और तमिल में मतभेद करे, जो पंजाबी और बिहारी में मतभेद करे वो क्यूँ ही कुछ करे. मैं इस छोटे से लेख के ज़रिये लोगों से एक अपील करना चाहता हूँ कि अपने नन्हे मुन्हे बच्चों को अच्छी बातें सिखाएं, अगर आप किसी स्कूल का संचालन करते हैं और उसमें जन गण मन नहीं होता या सारे जहां से अच्छा,.. तो कृपया ध्यान देके इसको कराएं.

(अरग़वान रब्बही)
(ये निजी विचार हैं)