और हम ज़रूर आज़माऐंगे तुम्हें किसी एक चीज़ के साथ यानी ख़ौफ़ और भूक और कमी करने से (तुम्हारे) मालों और जानों और फलों में और ख़ुशख़बरी सुनाईए इन सब्र करने वालों को जो कि जब पहुंचती है उन्हें कोई मुसीबत तो कहते हैं बेशक हम सिर्फ़ अल्लाह ही के हैं और यक़ीनन हम उसी की तरफ़ लौटने वाले हैं। यही वो (ख़ुशनसीब) हैं जिन पर उन के रब की तरह तरह की नवाज़िशें और रहमत है और यही लोग सीधी राह पर साबित क़दम हैं। (सूरत अलबक़रा।१५५ता१५७)
जब तक इंसान इस दुनिया में है, रंज-ओ-ग़म और मुसीबत से उसे कम-ओ-बेश दो-चार होना ही पड़ता है। क़ुरआन ने अपने मानने वालों को इस ग़लतफ़हमी में मुबतला नहीं होने दिया कि इस्लाम के दामन में पनाह लेने से वो अब हर तरह की मुसीबतों और तकलीफों से बच गए।
अलबत्ता क़ुरआन ने मुसलमानों को सब्र की एक ढाल दे दी, जिस से वो मसाइब-ओ-हदसात के बेरहम हमलों से अपना बचाव करसकते हैं। उन्हें एक एसा अक़ीदा दे दिया, जो उनके सुकून-ओ-क़रार को नाज़ुक तरीन लम्हों में भी सलामत रख सकता है। हर शख़्स जानता है कि जिस के हाथ से सब्र का दामन छूट गया, इस में मुक़ाबले की हिम्मत ख़त्म हो जाती है और मुसीबतें उसे ख़स-ओ-ख़ाशाक की तरह बहा ले जाती हैं। लेकिन अगर अल्लाह ताआला पर तवक्कुल करते हुए मसाइब के सामने डटा रहे तो ये काले बादल ख़ुदबख़ुद छट जाते हैं। नीज़ जिस शख़्स का ये अक़ीदा हो कि में भी और मेरा सब कुछ मेरा अपना नहीं, बल्कि अल्लाह ताआला का दिया हुआ है, वो किसी के मरने या खेती बाड़ी और कारोबार में नुक़्सान वाक़्ये होने से इतना दिल गीरही क्यों होगा कि इस का हौसला ही टूट जाये, बल्कि वो नई जद्द-ओ-जहद के लिए अपने आप को ताज़ा दम पाएगा।