हिंदूस्तानी मुसलमान अपनी पसमांदगी के ख़ुद ज़िम्मेदार

जद्दा, 06 जनवरी : (एजेंसी)हिंदूस्तानी मुसलमान अपनी पसमांदगी के लिये जुज़वी तौर पर वो ख़ुद ज़िम्मेदार हैं । ख़ुद को ताक़तवर बनाने के लिये हुकूमत पर तकिया नहीं करना चाहीए । अपने बल पर तरक़्क़ी की जद्द-ओ-जहद की जाये तो अल्लाह तआला अज़ ख़ुद राहें कुशादा कर देगा ।

मर्कज़ी वज़ीर इकलेती उमूर जनाब के रहमान ख़ान ने अपने ख़ानगी दौरा सऊदी अरब के दौरान सऊदी गज़्ट को एक ख़ुसूसी इंटरव्यू देते हुए कहा कि मुसलमान ख़ुद को बाइख़तियार और ताक़तवर बनाने की राहें अज़ ख़ुद तलाश करें । अगर वो तमाम मसाइल की यकसूई के लिये हुकूमत पर ही इन्हिसार ( निर्भर) करेंगे तो उन्हें मायूसी होगी ।

हुकूमत को सिर्फ़ एक राहत बहम पहूँचाने वाली मुतसव्वर करें । राहत फ़राहम कनुंदा नहीं अपने आप को तरक़्क़ी देने के लिये मुसबत तर्ज़ अमल के साथ सरगर्म अमल होना ज़रूरी है । उन्होंने हिंदूस्तानी मुसलमानों को मश्वरा दिया कि वो अपनी पसमांदगी का मातम ना करें बल्कि इस पसमांदगी के दाग़ को धोने के लिये अज़ ख़ुद जद्द-ओ-जहद करें ।

हिंदूस्तान की आबादी का 15 फ़ीसद होने के बावजूद मुसलमान इस मुल्क में सबसे ज़्यादा पसमांदा तबक़ा है । सच्चर कमेटी ने भी मुसलमानों को अपने बल पर तरक़्क़ी करने और इस ख़सूस में सरगर्म रोल अदा करने का मश्वरा दिया है । वज़ीर इकलेती उमूर ने मज़ीद कहा कि सच्चर कमेटी को साल 2005 में क़ायम किया गया था ताकि वो हिंदूस्तानी मुसलमानों की मआशी , तालीमी और समाजी हालत का जायज़ा लेकर रिपोर्ट तैयार करे ।

इस तबक़ा ने अपने बल पर तरक़्क़ी करने का जज़बा तक़रीबा मफ़क़ूद कर लिया है । अपनी सलाहियतों को ज़ंग आलूद बनाकर हुकूमत के रहम-ओ-करम पर रहने को तरजीह दी है जिसके नतीजा में ये तबक़ा दीगर तबक़ात के मुक़ाबिल पसमांदगी की आख़िरी निचली सतह तक पहूंच गया ।

हम हुकूमत के सामने हमेशा हाथ फैलाए खड़े नहीं हो सकते । मुसलमानों की तारीख शाहिद है कि उन्होंने हमेशा दूसरों को दिया है उनसे लिया कुछ नहीं लेकिन आज मुसलमान हुकूमत के दर पर सवाली बन कर खड़े हैं । ऐसा नहीं होना चाहीए बल्कि हुकूमत के लिये भी मुसलमानों को कुछ ना कुछ करना चाहीए ।

इसलिये हमारी वज़ारत इख़तिराई ख़ानगी अवामी शराकतदारी स्कीमात को वज़ा करते हुए इसमें अक़लीयतों को सरगर्म अमल रखने की कोशिश कर रही है । के रहमान ख़ान ने मज़ीद कहा कि मुसलमानों ने ख़ुद को हमेशा जद्द-ओ-जहद और जुस्तजू की दौड़ से दूर रखा है क्योंकि इनका एहसास है कि उन्हें रोज़गार नहीं मिलेगा ।

अपने इस नुक्ता को साबित करने के लिये वज़ीर इकलेती उमूर ने मिसाल पेश करते हुए कहा कि हर साल सियोल सर्विस इम्तेहान में 400,000 उम्मीदवार हिस्सा लेते हैं लेकिन इस इम्तेहान में बराए नाम 4 हज़ार मुसलमान भी उम्मीदवारों की फ़हरिस्त में शामिल होते । ताहम इस हक़ीक़त के बावजूद जो कोई मुस्लिम उम्मीदवार जद्द-ओ-जहद करता है उसकी कामयाबी का फ़ीसद आम तलबा से ज़्यादा ही होता है ।

मिसाल के तौर पर सिविल सर्विस में 700 , 800 तलबा कामयाब होते हैं तो इनमें कम अज़ कम 40 मुस्लिम तलबा भी कामयाब होते हैं । उन्होंने इस बात का एतराफ़ किया कि मुस्लिम तलबा की मुनासिब तरीका से रहबरी नहीं होती अब हम एक आज़ाद नगर इनकार मेकानिज़्म वज़ा करने वाले हैं ताकि रोज़गार पैदा करने वाली स्कीमात और रोज़गार फ़राहम करने के मवाक़े हासिल होने के शोबों पर नज़र रखी जा सके ।

के रहमान खान ने कहा कि उनकी वज़ारत बाक़ायदा तौर पर मुख़्तलिफ़ शोबों पर नज़र रखी है जिसके नतीजा में अक़लीयतों में बेरोज़गारी का फ़ीसद घट गया है । सनअत जैसे चंद शोबों में मुस्लिम रोज़गार सिर्फ़ 3 फ़ीसद है । लेकिन अब औसतन 5 ता 6 फ़ीसद हो गया है । वक़्फ़ जायदादों के बारे में उन्होंने कहा कि हम ने वक़्फ़ जायदादों को डिजीटलाइज कर दिया था ताकि उनकी तफ़सीलात इसके ग़लत इस्तेमाल और नाजायज़ क़ब्ज़ों का आसानी से पता चलाया जा सके ।

वक़्फ़ इस्लाहात के हिस्सा के तौर पर सेंटर्ल वक़्फ़ कौंसल अब निगरानकार के इख़्तयारात हासिल करेगा । इससे पहले मरकज़ी हुकूमत कोई माली मदद नहीं करती थी लेकिन अब वक़्फ़ बोर्डस की भी मर्कज़ी हुकूमत माली इआनत करेगी ।