हिंदूस्तान और पाकिस्तान के दरमयान बाअज़ (कुछ) मामलों में पेशरफ़त का ना होना इस बात का सुबूत है कि ताल्लुक़ात को एक सतह पर ले जाने की कोशिश में क़तई कामयाबी नहीं मिली है। ईस्लामाबाद में भी दोनों मुल्कों के मोतमिदैन दाख़िला (Secretries/ सचिव) सतह के मुज़ाकरात (आपसी बात चीत) में वीज़ा क़वाइद ( कानून/Rules) को फ़राख़ दिलाना ( खुले दिल से) बनाने की कोशिश की गई मगर ये कोशिश नाकाम हुई।
इस मौज़ू ( विषय) पर पाकिस्तान का मौक़िफ़ सयासी रजामंदी का मुतक़ाज़ी है। इस ने वीज़ा क़वाइद में नरमी पर कोई क़दम उठाने से क़बल पाकिस्तानी सियासत को राज़ी करने की ज़रूरत ज़ाहिर की है। पाकिस्तान हो या हिंदूस्तान हर दो जानिब ताल्लुक़ात ( संबंध) की राह में सयासी मुफ़ादात ही हाएल हुए हैं।
सयासी फ़ैसलों के सहारे ही अब तक दोनों मुल्कों के अवाम के राबतों की राह में रुकावटें पैदा हुई हैं। ईस्लामाबाद में हुई दो रोज़ा मोतमिदैन दाख़िला ( Secretries./सचिवों) की बातचीत में दोनों जानिब ये इत्तिफ़ाक़ तो किया गया कि 26/11 हमलों की तहक़ीक़ात के बिशमोल ( अलावा/ और भी) बाहमी ( आपसी खौफ) तशवीश के हामिल मसाएल ( समस्याओं) पर अपनी अपनी तहक़ीक़ाती एजेंसीयों के दरमयान तआवुन अमल को बढ़ाया जाए, जहां तक मुंबई हमलों के ख़ातियों ( अपराधीयों) को सज़ा देने का सवाल है, इस पर ईस्लामाबाद ने उसूली ( बुनियादी) तौर पर इत्तिफ़ाक़ (सहमति) किया है कि वो मुंबई हमलों की तहक़ीक़ात के लिए हिंदूस्तानी अदलिया कमीशन ( न्याय करने वाला महिकमा) का ख़ौरमक़दम करेगा।
मोतमिद दाख़िला हिंद ( हिंदुस्तान के सचिव) आर के सिंह और उन के पाकिस्तानी हम मंसब ख़्वाजा सिद्दीक़ अकबर को बाहमी ताल्लुक़ात को पुरअमन और मुकम्मल तौर पर मामूल पर लाने की राह में जो ख़तरात पाए जाते हैं, उन्हें दूर करने के लिए इक़दामात ( पहल) करने हैं।
वीज़ा पालिसी को नरम बनाने के तनाज़ुर (background) में ताल्लुक़ात के मज़बूत और तिजारती इक़दामात में वुसअत पाने के अंसर पर भी तवज्जा देने की ज़रूरत है। हिंदूस्तान ने वीज़ा पालिसी में नरमी के मुआहिदा ( Agreement/लिखित पत्र) पर दस्तख़त करने के लिए पूरी तैयारी कर ली थी मगर पाकिस्तान ने अपने तरीका-ए-कार की तकमील ( में ताख़ीर कर दी जिस से ये मुआहिदा नहीं हो सका।
जब दोनों मुल्कों के क़ाइदीन वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह और सदर आसिफ़ अली ज़रदारी के दरमयान 8 अप्रैल को नई दिल्ली में मुलाक़ात ख़ुशगवार रही और अवाम से अवाम के राबिता को फ़रोग़ देने से इत्तिफ़ाक़ किया गया तो इस के लिए किसी भी कोताही या ताख़ीर से काम लेने की ज़रूरत नहीं थी।
पाकिस्तान को अपने हिस्सा के तौर पर जो काम करने हैं, इस जानिब टाल मटोल होने लगे तो ताल्लुक़ात की बहाली की रफ़्तार में रुकावट मुनासिब नहीं है।