हिजाब जल्दी अमराज़ और रहज़नों से हिफ़ाज़त की ढाल

बुर्क़ा पहनने वाली सहेलियां हश्शाश बश्शाश और साफ़ सुथरी रहती हैं , गैर मुस्लिम तालिबा का इज़हार ख़्याल

हिजाब , निक़ाब यह बुर्क़ा इस्लामी तर्ज़ लिबास का एक एसा हिस्सा है जिस की अहमियत और अफादियत का एतराफ़ अपने तो अपने गैर भी करने पर मजबूर हैं। हिजाब जहां ख़वातीन की इस्मत-ओ-इफ़्फ़त की हिफ़ाज़त का बाइस बनता है वहीं उसे इस्तेमाल करनेवाली ख़वातीन जल्दी अमराज़ , मौसमी असरात , सड़क छाप फ़र्हादों की बदनज़री , और रहज़नों का शिकार बनने से महफ़ूज़ रहती हैं।

आज हालत ये है कि ना सिर्फ़ हैदराबाद बल्कि मुल्क के हर बड़े शहर में इसी गैर मुस्लिम ख़वातीन-ओ-तालिबात नज़र आती हैं जो अगरचे मुकम्मल हिजाब नहीं करतीं लेकिन अपने सर , गले और हाथों को मुकम्मल तौर पर शालि या रंगीन चादर की तरह कपड़े से ढाँके हुए बड़े सुकून-ओ-इत्मीनान से सड़कों , गलियों से गुज़रती , शॉपिंग मॉल्स यह बाज़ारों में खरीदारी करती यह गाड़ियां दौड़ाती हुई नज़र आती हैं ।

हैदराबाद जिसे हिन्दुस्तान में बिलाशुबा तहज़ीब-ओ-तमद्दुन और शाइस्तगी का मर्कज़ कहा जा सकता है जहां गैर मुस्लिम ख़वातीन-ओ-तालिबात में नियम पर्दा का एक नया रुजहान देखने में आरहा है। हिजाब के तुएं गैर मुस्लिम ख़वातीन-ओ-तालिबात में इस तरह का एहतेराम-ओ-एहतिमाम देख कर हम ने भी सोचा कि क्यों ना उन ख़वातीन-ओ-तालिबात से बात की जाये और ये मालूम किया जाये कि आख़िर ये नियम हिजाब क्यों कररही हैं ? चुनांचे इस सिलसिले में ना रावना कॉलिज की तालिबा कवीता जो इंटरमीडियट साल दोम में ज़ेर तालीम है से बात की तो उन्होंने बताया कि मेरे चेहरे पर कील मुहासे हद से ज़्यादा होगए थे , जिस के बाद इस्कीन पे शल्य सट से रुजू होने पर उन्होंने डस्ट ( धूल ) पोल्युशन ( आलूदगी ) और धूप की तमाज़त से बचने का मश्वरा दिया।

उन के मुताबिक़ चेहरा खुला छोड़ देने से सारे जिस्म में जल्दी एलर्जी पैदा होजाने का ख़दशा रहता है। जिस के बाद अचानक मेरे ज़हन में कॉलेज की बुर्क़ापोश मुस्लिम तालिबात का ख़्याल आया और ग़ौर करने पर अंदाज़ा हुआ कि जितनी लड़कियां बुर्क़े इस्तेमाल करती हैं उन के चेहरे बिलकुल साफ़ हैं।

चुनांचे में ने भी सर और चेहरे और गले को मुकम्मल तौर पर एक मुलाय‌म शाल और ओढ़नी से ढाँकना शुरू किया। जिस से कुछ दिनों में ही में ने अपने आप में काफ़ी मुसबत तब्दीलियां रौनुमा होती महसूस कीं। कवीता के मुताबिक़ इस नियम हिजाबी ने जैसे उसे बदल करहि रख दिया और डाक्टर की तजवीज़ करदा अदवियात भी असर करना शुरू करदिया।

कवीता ने कहा कि उनके डाक्टर को ख़ुद हैरत हुई कि Sensetive Skin की हामिल लड़की कैसे इस क़दर कम अर्से में मनफ़ी असरात से मुकम्मल तौर पर छुटकारा हासिल करने में कामयाब होगई। इसी तरह में ने एक और तालिबा प्रियंका वामी ( हक़ीक़ी नाम मख़फ़ी ) से भी बात की तो इस ने बताया कि सर और गले को शाल या ओढ़नी से ढांक लेने से ना सिर्फ़ जल्दी अमराज़ से हिफ़ाज़त होती है बल्कि रहज़नों से भी वो ख़ुद को महफ़ूज़ तसव्वुर करती हैं प्रियंका ने कहा कि जब से इसने नियम हिजाब का इस्तेमाल शुरू किया है इस का चेहरा बिलकुल साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ रहता है।

सब से अहम बात ये है कि लड़के छेड़ छाड़ भी नहीं करते। पहले ये होता था कि गले में गोल्ड चेन पहनने पर Chain Snatchers का ख़ौफ़ लगा रहता था मगर अब बेखौफ हो कर फुर्ती हूँ-कुछ इसी तरह के ख़्यालात का इज़हार ऊषा रानी नामी ख़ातून ने किया जिन का बेटा और वो Asthama से मुतास्सिर हैं।

डाक्टरों ने उसकी अहम वजह पोल्युशन‌ बताया था। चुनांचे उन्होंने फ़ौरी अपने सर और चेहरे को शाल से ढाँकना शुरू करदिया जिस के साथ ही उन्हें काफ़ी आराम मिला । ऊषा रानी के मुताबिक़ इस तरह का पर्दा उन के लिये एक ग़ैरमामूली तोहफ़ा साबित हुआ । ऊषा रानी के मुताबिक़ इन का बेटा भी Nose Mask इस्तेमाल कररहा है।

बहरहाल ये तो हिजाब के हवाले से गैर मुस्लिम ख़वातीन के ख़्यालात थे मगर मुसलमानों में ख़वातीन का एक एसा तबक़ा भी है जो ख़ुद को आज़ाद ख़्याल और तालीमयाफ्ता तसव्वुर करता है इनका ख़्याल है बुर्क़ा यह हिजाब सिर्फ़ गरीब ख़वातीन ही पहनती हैं। अगर वो बुर्क़ा इस्तेमाल करेंगी तो लोग क्या कहेंगे ? एक तालीमयाफ्ता लड़की कैसी हरकत कररही है।

इसी आज़ाद ख़्याल ख़वातीन यह लड़कियां आज़ादी निसवां के नाम पर इतना बहेक जाती हैं कि उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं रहता कि वो जो चुस्त और तंग जींस और टी शर्ट इस्तेमाल कररही हैं। दरअसल वो मर्दों का लिबास है और उसे ख़वातीन पर अल्लाह के नबी करीम ने लानत‌ भेजी है।

क़ारईन आप ने भी देखा होगा कि रहज़नी के शिकार होने वालों में एक भी माम‌ला बुर्क़ापोश ख़वातीन का नहीं होता है क्यों कि निक़ाब की वजह से चैन उड़ाने वाले को ये अंदाज़ा ही नहीं होता कि बुर्क़े के अंदर कौनसा ज़ेवर मौजूद है ? इस के अलावा आवारा मनचले नौजवान भी सीटियां बजाने यह छेड़ने से गुरेज़ करते हैं।