बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों को मुआवज़ा , हाईकोर्ट के फैसले पर मुहम्मद अली शब्बीर का रद्द-ए-अमल
साबिक़ वज़ीर अक़लियती बहबूद-ओ-रुकन क़ानूनसाज़ काउंसल मुहम्मद अली शब्बीर ने मक्का मस्जिद बम धमाका केस में बेक़सूर क़रार दिए गए अक़लियती नौजवानों को मुआवज़े की अदायगी के सिलसिले में हाईकोर्ट की तरफ से फ़ैसले को वापिस लीए जाने का खैरमक़दम किया है। उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तानी अदलिया से हमेशा ही अक़लियतों को इंसाफ़ की उम्मीद रही है और कई मामलात में अदालतों ने अक़लियतों के साथ इंसाफ़ किया।
अक़लियतें अदलिया का मुकम्मल एहतेराम करती हैं और उन्हें यक़ीन है कि आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट मुस्लिम नौजवानों को मुआवज़े की अदायगी के मुक़द्दमे में मुतास्सिरा अफ़राद के साथ मुकम्मल इंसाफ़ करेगी। मुहम्मद अली शब्बीर ने कहा कि अदालत ने अपने इस मुनफ़रद इक़दाम के ज़रीये ये साबित कर दिया है कि इन्साफ़ रसानी में हिन्दुस्तानी अदलिया आज भी मुतास्सिरीन के मुफ़ादात को तर्जीह देती है। उन्होंने कहा कि हुकूमत ने मुक़द्दमे में बेक़सूर पाए जाने वाले नौजवानों को बाज़ आबादकारी और अपने पैर पर खड़ा होने के लिए इमदाद फ़राहम की और ये इमदाद मुआवज़े की शक्ल में नहीं बल्कि ख़ैरसिगाली इमदाद के तौर पर दी गई।
उन्होंने कहा कि मुक़द्दमेये में बरी किए गए 16नौजवानों को फी कस 3 लाख रुपये और तफ़तीश के लिए हिरासत में लिए गए नौजवानों को फी कस 20 हज़ार रुपये अदा करने का फ़ैसला किया गया था। हुकूमत के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर करदा दरख़ास्त पर अदालत ने इस फ़ैसले को कुलअदम क़रार देते हुए रक़ूमात वापिस हासिल करने हुकूमत को हिदायत दी थी। मुहम्मद अली शब्बीर ने कहा कि इस मुक़द्दमे में हुकूमत के मौक़िफ़ और मुतास्सिरा नौजवानों के मौक़िफ़ की समाअत नहीं की गई। बाद में इसका एहसास करते हुए चीफ़ जस्टिस ने अपने फ़ैसले से दसतबरदारी इख़तियार करली।
उन्होंने कहा कि दो हफ़्तों बाद जब इस मुक़द्दमे की अज़ सर-ए-नौ समाअत का आग़ाज़ होगा उस वक़्त हुकूमत अपना मौक़िफ़ पेश करेगी। मुहम्मद अली शब्बीर ने यक़ीन ज़ाहिर किया कि नौजवानों को मुआवज़े की अदायगी के सिलसिले में अदालत का फ़ैसला हुकूमत के मौक़िफ़ की ताईद में रहेगा।उन्होंने मुस्लिम जमातों और तंज़ीमों से भी ख़ाहिश की कि वो इस मुक़द्दमे में फ़रीक़ बनते हुए मुस्लिम नौजवानों को मुआवज़े की अदायगी के हक़ में फ़ैसले की राह हमवार करें।