हैदराबाद 10 मार्च: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस चलमेशोर ने आज कहा कि ख़वातीन के ख़िलाफ़ जराइम मे सज़ा का तनासुब इस लिए कम है कीवनका इस सिलसिले मे नफ़ाज़ क़ानून की एजंसियों का रवैया मुनासिब नहीं होता जबके जराइम की शरह मे इस लिए इज़ाफ़ा होता जा रहा है कीवनका क़ानून का डर कम होगया है ।
जस्टिस चलमेशोर ने एक सेमिनार के मौके पर अख़बारी नुमाइंदों से बात चीत करते हुए कहा कि असल मसला नफ़ाज़ क़ानून का है । अगर नफ़ाज़ क़ानून की एजंसियां सख़्त और मुनासिब कार्रवाई करें तो जराइम पर क़ाबू पाया जा सकता है । उन्हों ने कहा कि आज किसी को भी क़ानून का ख़ौफ़ नहीं है । येह असल मसला है ।
इसे मे जब तक नफ़ाज़ क़ानून मे सख़्ती नहीं आती उस वक़्त तक जराइम होते रहेंगे । उन्हों ने सवाल किया कि इस मुल्क मे सज़ा पाने वालों की शरह किया है ? । एसा सिर्फ़ पाँच फ़ीसद तक होता है । उन्हों ने कहा कि मौजूदा क़वानीन काफ़ी हैं ताहम ज़रूरत इस बात की है कि हम उन पर संजीदगी से अमल आवरी को यक़ीनी बनाएं और हमारी नफ़ाज़ क़ानून की एजंसियां जराइम और करप्शन से मूसिर अंदाज़ मे निमटें ।
उन्हों ने कहा कि बेशतर मुक़द्दमात मे इस्तिग़ासा की तरफ से मुनासिब शवाहिद पेश नहीं किए जाते । जस्टिस चलमेशोर ख़वातीन-ओ-बच्चों के ख़िलाफ़ जराइम और दहश्तगर्दी को दरपेश चैलेंजस के मसले पर मुनाक़िदा सेमिनार मे मेहमान ख़ुसूसी थे ।
इस का एहतिमाम बार कौंसिल आफ़ इंडिया और बार कौंसिल आफ़ आंध्र प्रदेश की तरफ से किया गया था । उन्हों ने कहा कि मुल्क भर में तक़रीबन बीस लाख मुक़द्दमात ज़ेर इलतिवा हैं। क्या आप समझते हैं कि मौजूदा अदलिया के लिए इन मुक़द्दमात की यकसूई करना मुम्किन है ? । उन्हों ने कहा कि हुकूमत की तरफ से मुनासिब जायदादें पुर नहीं की जातीं और ना ही दरकार इन्फ़िरास्ट्रकचर फ़राहम किया जाता है ।
इसे मे सिर्फ़ अदलिया को मौरिद इल्ज़ाम टहराना कहाँ तक दरुस्त है । उन्हों ने कहा कि तक़रीबन हर मजिस्ट्रेट की अदालत मे चार ता पाँच हज़ार मुक़द्दमात ज़ेर इलतिवा हैं।