क़ुतुब शाही दौर के 423 साला कीमती फ़व्वारा की मोडिफिकेशन

क़ुतुब शाही दौर का आख़िरी निशान समझा जाने वाला अपनी नोईयत का वाहिद फ़व्वारा बेएतिनाई और लापरवाही का शिकार था और इस 423 साला नादिर और कीमती तारीख़ी असासे के वजूद को ही ख़तरा लाहक़ हो चुका था जो कि 40 साल से बंद पड़ा था। लेकिन हाईकोर्ट के पार्किंग में मौजूद इस नादिर फ़व्वारा की अज़मते रफ़्ता को बहाल करने के लिए इक़दामात हो चुके हैं और उस की चार सदी क़ब्ल मौजूद शक्ल दिलवाने के लिए काफ़ी नज़ाकत के साथ उस की तज़ईने नव का काम शुरू हो चुका है।

आसारे क़दीमा की हिफ़ाज़त और निगहदाश्त की ख़ुसूसी आर्किटेक अनुराधा नायक एसोसीएट को उस की इंतिहाई अहम ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। नुमाइंदा सियासत से इज़हारे ख़्याल करते हुए अनुराधा ने कहा कि चूँकि ये फ़व्वारा अपनी नोईयत का वाहिद और क़ुतुब शाही सलतनत का वाहिद शाहकार है इस लिए उस की तज़ईने नव और उस को क़दीम हालत में दोबारा लाने के लिए काम इंतिहाई नज़ाकत और पूरी तवज्जा से किया जा रहा है।

इस काम के लिए छत्तीसगढ़ के कारीगरों की ख़िदमात हासिल की गई हैं जो कि पूरी तवज्जा के साथ इस नादिर फ़व्वारा को असली हालत में लाने पर अपनी तवानाई सर्फ़ कर रहे हैं। अनुराधा के बामूजिब इबतिदाई मरहले में इस के अतराफ़ और अकनाफ़ की साफ़ सफ़ाई की जा रही है जब कि फ़व्वारा के तमाम नोज़ल्स बंद हो चुके हैं और उन को दोबारा कारकर्द बनाने के बाद ही इस फ़व्वारा के ज़रीए पानी का बहाव यक़ीनी होगा।

अनुराधा ने कहा है कि ये कोशिश की जा रही है कि इस नादिर फ़व्वारा को दोबारा ऐसा बहाल किया जाए जैसा कि क़ुतुब शाही दौर में ये फ़व्वारा दिखाई देता था। अहम और नज़ाकत से भरे इस काम की तकमील के लिए मज़ीद एक माह दरकार है।

जिस के बाद ये तारीख़ी फ़व्वारा देखने के लायक़ हो जाएगा। यहां ये बात काबिले ज़िक्र है कि बानी शहर हैदराबाद मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह के दौर का हश्त पहलू फ़व्वारा क़दीम विक्टोरिया सरकारी मेटरनिटी हॉस्पिटल (क़दीम ज़चगी ख़ाना) नया पुल के अहाता में था जो अब हाईकोर्ट के पार्किंग में वाक़े है।

तारीख़ी फ़न तामीर के इस शाहकार फ़व्वारा से अवाम की अक्सरियत ना वाक़िफ़ है लिहाज़ा जब एक मर्तबा ये फ़व्वारा अपनी असली हालत में आ जाएगा तो उन्हें कम अज़ कम एक मर्तबा इस फ़व्वारा का नज़ारा ज़रूर करना चाहीए।

जिस के ज़रीए वो क़ुतुब शाही दौर की नादिर तामीरी शाहकार से वाक़िफ़ हो सकेंगे क्यों कि ऐसा फ़व्वारा क़ुतुब शाही या फिर दक्कन की तारीख़ी इमारात में दूसरा कहीं और मौजूद नहीं है।