ख़ाना काबा के क़ुफ़्ल( ताला) की छः दहाई बाद पहली मर्तबा तबदीली

रियाद, ०2 दिसंबर: सऊदी हुकूमत ने 60 साल बाद ख़ाना काअबा के मर्कज़ी दरवाज़े का अंदरूनी क़ुफ़ुल पहली मरतबा तबदील किया है। ख़ाना काबा का क़ुफ़्ल अमीर मक्का मुअज़्ज़मा शहज़ादा ख़ालिद अल-फ़ैसल ने अपने हाथों से तबदील किया।

अल अरबिया डाट नेट के मुताबिक़ ताले की तबदीली से क़ब्ल‌ शहज़ादा अल-फ़ैसल ने काबा शरीफ़ को ग़ुसल दिया। बादअज़ां क़ुफ़ुल की तबदीली की तक़रीब हुई और पहले से मौजूद ताला निकाल कर उसकी जगह एक नया सुनहरी ताला लगाया गया।

ताले की तैयारी पर आने वाले तमाम अख़राजात ख़ादिम अल‍ हरमैन शरीफ़ैन शाह अबदुल्लाह बिन अबदुल अज़ीज़ अल सऊद ने अपनी जेब से अदा किए। रिपोर्ट के मुताबिक़ ख़ाना काबा को ग़ुसल देने की तक़रीब में मस्जिद ए हरम के उमूर की निगरां कमेटी के चेयरमैन अल-शेख़ अबदुर्रहमान अल सदीस, मुस्लिम मुल्कों के सफ़ीर‌ और अहम हुकूमती शख़्सियात मौजूद थीं।

ख़्याल रहे कि ख़ाना काबा को साल में दो मर्तबा इतर और आब-ए-ज़मज़म से ग़ुसल दिया जाता है और साल में एक मरतब इसका गिलाफ़ तबदील होता है। ख़ाना काबा की तरह ख़ुदा के इस मुक़द्दस घर से निसबत रखने वाली दीगर तमाम मामूली चीज़ों को भी ग़ैरमामूली हैसियत हासिल है।

इन में ख़ाना काबा की कुंजी भी शामिल है। काबा शरीफ़ की कुंजी 1400 साल से मक्का मुकर्रमा के मारूफ़ ऑल शीबी क़बीले के पास बतौर अमानत रखी गई है। इस्लामी तारीख़ी कुतुब (किताबें) में सिर्फ़ एक वाक़िया मिलता है जिससे मालूम होता है कि किसी दौर में ऑल शीबी से ख़ाना काबा की किलीद (कुंजी) चोरी की गई थी लेकिन उसे दुबारा हासिल कर लिया गया था।

ये अमानत आजकल आज अल शीबी के अलसदना ख़ानदान के पास है।

क़ुफ़ुल-ओ-किलीद काबा की तारीख़
एक रिवायत में नबी अकरम ( स०अ०व०) से मर्वी है कि आप ( स०अ०व०) ने हज़रत उसमान बिन तलहा के दादा को ख़ाना ए काबा की चाभी अता करते हुए फ़रमाया कि ऐ बनी तलहा! ये (चाभी) अल्लाह ताला की जानिब से अमानत है अपने पास रखो। ये अमानत (किलीद) हमेशा आपके पास रहेगी और आपसे इसे छीनने वाला ज़ालिम होगा।

अलशीबी ख़ानदान के मौजूदा सरबराह अबदुल क़ादिर अलशीबी ने ख़ाना काबा की कुंजी की हिफ़ाज़त के बारे में बताया कि किलीद काअबा को ख़ाना काअबा के गिलाफ़ के कपड़े से बनी एक सुनहरी थैली में निहायत महफ़ूज़ मुक़ाम पर रखा गया है, जहां से इसके गुम होने का कोई एहतिमाल ( शक) नहीं है।

तारीख़ी मुसादिर से मालूम होता है कि मुसलमान खलीफ़ा ‍ , सलातीन (सुल्तान), दौर अब्बासी, ममालीक और ख़िलाफ़त उस्मानिया के अदवार में ख़ाना काअबा की कुंजी यके बाद दीगरे एक से दूसरी हुकूमत को सपुर्द की जाती रही है, ताहम इसकी असल मिल्कियत सिर्फ़ अलशीबी ख़ानदान ही के पास रही।

ख़ाना काबा के दर व दीवार की तरह के इसके क़ुफ़ुल और कुंजियों पर भी ख़ूबसूरत अरबी ख़त्ताती में आयात से नक़्श-ओ-निगारी की जाती रही है। अल‍ हरमैन अशरीफ़ैन की वुसअत के दौरान इसके दरवाज़ों की तादाद में भी इज़ाफ़ा हुआ और हर दरवाज़े का ताला और इसकी कुंजियां तैयार की गईं।

ये ताले लोहे से तैयार किए जाते हैं। ख़ाना काबा के आख़िरी दरवाज़े का ताला और उसकी कुंजी ख़िलाफ़त उस्मानिया के दौर में 1309 में तैयार किए गए, शाह ख़ालिद बिन अबदुल अज़ीज़ अल सावद मरहूम के हुक्म पर 1398 में ख़ाना काबा के मर्कज़ी दरवाज़े का ताला तबदील किया गया।

हाल ही में ग़ुसल काबा के बाद इसी ताले की जगह एक सुनहरी क़ुफ़ुल लगाया गया। सहाब सरवत(मालदार) लोग ख़ाना काबा की पुरानी चाबीयों और इसके तालों को भारी रक़ूम के इव्ज़ ख़रीद कर उन्हें तबर्रुक के तौर पर अपने घरों में रखते रहे हैं। काबा अल्लाह के एक पुराने ताले और उसकी चाबी की आम नीलामी की गई जो तक़रीबन 18 मिलीयन डालर से ज़्यादा की रक़म में फ़रोख़्त हुए थे।

इस्लामी तारीख़ में मुक़द्दसात से मुताल्लिक़ा किसी चीज़ की ये सब से बड़ी रक़म क़रार दी जाती है। रिपोर्टस के मुताबिक़ ख़ाना काबा की मजमूई तौर पर 58 पुरानी कुंजियां आज भी दस्तयाब हैं जो मुख़्तलिफ़ अजाइब घरों में रखी गई हैं। इनमें 54 चाबियां तुर्की के शहर इस्तंबोल के तोप कापी म्यूज़ीयम में हैं, दो चाबियां फ़्रांस के निहाद अल सईद म्यूज़ीयम में जबकि एक क़ाहिरा के एक अजाइब ख़ाने में है।