उत्तर प्रदेश। दुनिया में इस्लामिक शिक्षा के लिए अपनी अलग पहचान रखने वाले दारुल उलूम को कुदरत ने ख़ास प्रसिद्धि दी है। इस संस्था के नाम से जुड़ने वाली हर एक चीज़ का एक अलग ही मुक़ाम होता है। इसी का एक नमूना हैदारुल उलूम की मस्जिद रशीद, जो आज़ादी के बाद हिंदुस्तान में बनाई गई मज़बूत और ख़ूबसूरत मस्जिदों में से एक है। इसकी शान देश में एक अनूठी मिसाल तो पेश करती ही है, साथ ही दुनिया में भी इसकी मक़बूलियत क़ायम है। यही वजह है कि मस्जिद रशीद को निहारने के लिए बड़ी तादाद में दुनियाभर से सैलानी यहाँ पहुंचते हैं।
विश्व प्रसिद्ध मस्जिद रशीद की आधारशिला रखने का निर्णय दारुल उलूम देवबंद में सन 1987 में आयोजित मजलिस-ए-शुरा की बैठक में लिया गया। इस भव्य मस्जिद के निर्माण के लिए 25 लाख रुपए का बजट उस समय पास किया गया जो कि अब से 27 साल पहले एक बहुत बड़ी रकम थी।
मस्जिद का नाम मशहूर उलेमा-ए-दीन मौलाना अब्दुल रशीद अहमद गंगोही के नाम पर “मस्जिद रशीद” रखा गया! वर्ष 1988 में हजरत मौलाना अब्दुल रशीद उर्फ नन्नू मियां, मुफ्ती-ए-आजम हजरत मौलाना मुफ्ती महमूद हसन और जानशीन शेखुल हदीस हजरत मौलाना मोहम्मद तलहा सहित अन्य शूरा सदस्यों के हाथों से मस्जिद की आधारशिला रखी गई।
मस्जिद को और अधिक भव्य रूप देने के मक़सद से शुरा द्वारा दो साल बाद मस्जिद के लिए पारित 25 लाख रुपए के बजट को बढ़ाकर 65 लाख रुपए कर दिया गया। आज यह मस्जिद पूरे हिंदुस्तान की मशहूर मसाजिद में से एक है जिसका अपना एक तारीखी मुक़ाम भी है।
source: worldhindi