ग़ुर्बत हुसूल‍ ए‍ इल्म में रुकावट नहीं

तानडोर, ३१ दिसम्बर: ( सियासत डिस्ट्रिक्ट न्यूज़ ) भवानी नगर तानडोर की नाज़िया तबस्सुम वो होनहार पुरअज़म मुस्लिम तालिबा है जिस पर तक़दीर ने हमेशा से सितम ढाई, वालिद के साय आफ़ियत से महरूमी, वालिदा की नासाज़ मिज़ाज और माली मुश्किलात जैसे कई मसाइल ने मज़कूरा तालिबा की तालीम को ना सिर्फ मुश्किल बनादिया था बल्कि तालीम का जारी रखना उस तालिबा के लिए नामुमकिन हो गया था। ताहम इस पुरअज़म तालिबा ने सख़्त मेहनत-ओ-लगन से मुहल्ला के बच्चों को तालीम दे कर हासिल होने वाली कमाई से अपना तालीमी ख़र्च बर्दाश्त करती रही लेकिन बीमार वालिदा की निगहदाशत और अपना तालीमी ख़र्च नाज़िया तबस्सुम की दस्तरस से बाहर था अब जब कि नाज़िया तबस्सुम डिग्री ( बी एससी ) आख़िरी साल की तालिबा है बड़ी मुश्किल और रिश्तेदारों की मदद से अपनी इमतिहानी फ़ीस दाख़िल कर पाई है।

जबकि सालाना फ़ीस 7600 रुपय की अदायगी बाक़ी ही। नुमाइंदा सियासत की तवज्जा दहानी पर मुक़ामी क़ाइदीन सय्यद कमाल अतहर सदर स्टोन वीलफ़ीर एसोसीएसन, मुहम्मद अबदाल रउफ़ सदर टाउन टी डी पी ने मज़कूरा कॉलेज पहुंच कर तालिबा से तफ़सीली गुफ़्तगु की और कॉलिज के लेकचर्र कृष्णा रेड्डी जो एक तेलगु अख़बार के मुक़ामी नुमाइंदा भी हैं ने मज़कूरा क़ाइदीन को नाज़िया तबस्सुम के हालात से वाक़िफ़ करवाया जिस पर सैयद कमाल अतहर ने ऐलान किया कि नाज़िया तबस्सुम की सालाना फ़ीस की रक़म स्टोन मर्चैंट एसोसीएसन की जानिब से अदा की जाएगी। नाज़िया तबस्सुम से सय्यद कमाल अतहर और अबदाल रउफ़ ने कहा कि वो हिम्मत ना हारें बल्कि अपना तालीमी सफ़र हरहाल में जारी रखें और आला तालीम के हुसूल के लिए भी अपनी तरफ़ से मज़कूरा क़ाइदीन ने मुम्किना तआवुन का तीक़न दिया। यहां ये ज़िक्र बेजा ना होगा कि मज़कूरा तालिबा इंतिहाई ग़रीब ख़ानदान से ताल्लुक़ रखने के बावजूद हुकूमत की तमाम सहूलयात जैसे सफ़ैद राशन कार्ड, स्कालरशिप-ओ-दीगर सहूलतों से महरूम है ताहम वालिदा को माहाना वज़ीफ़ा 200/- रुपय फ़राहम किए जाते हैं। नाज़िया तबस्सुम मुहल्ला के बच्चों को तालीम दे कर तक़रीबन माहाना 500रुपय हासिल कर पाती है।

इस मुख़्तसर सी रक़म से अपना घर ख़र्च और तालीम किस क़दर मुश्किल है ये बताने की ज़रूरत नहीं है। दूसरी तरफ़ इस ग़ैरत मंद तालिबा ने आज तक किसी से मदद की इल्तिजा नहीं की और ना ही किसी तंज़ीम से रब्त पैदा किया। मज़कूरा क़ाइदीन ने भी जब मदद की पेशकश की तो वो पस-ओ-पेश करती रही। ताहम काफ़ी समझाने के बाद नाज़िया तबस्सुम ख़ामोश हो गई। नाज़िया तबस्सुम की जुर्रत और ग़ैरत मंदी दुख़तर इन मिल्लत के लिए एक मिसाल बननी चाहीए कि ख़ुदा के भरोसे और अपनी मेहनत के ज़रीया अपना काम करते जाएं |