क्या तुम हुक्म करते हो (दूसरे) लोगों को नेकी का और भुला देते हो अपने आप को हालाँकि तुम पढ़ते हो किताब, क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते। (सूरत उलबक़रा।४४)
उलमाए यहूद लोगों को तो ये हुक्म देते कि तौरात अल्लाह की किताब है और उस के हर फ़रमान की तामील करो, लेकिन अपना ये हाल था कि ज़रा से ज़ाती फ़ायदे के लिए तौरात के सरिह अहकाम को पसेपुश्त डाल देते।
तौरात की बयान करदा अलामात हुज़ूर अकरम स०अ०व० में देख लेने के बाद भी ईमान ना लाते। अल्लाह ताआला उनको उनकी दो रुख़ी पालिसी से मना फ़रमाया और ये ज़ज्र-ओ-तोबीख़ हर उस शख़्स के लिए है, जो दूसरों को नेकी का हुक्म दे और ख़ुद इस के ख़िलाफ़ अमल पैरा हो, ख़ाह वो यहूदी कहिलाय या मुसलमान। क़ुरआन हकीम ने जा बजा क़ौल-ओ-अमल के इख़तिलाफ़ से रोका है।
हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से मर्वी हैके रसूल क्रीम स०अ०व० ने फ़रमाया: मेराज की रात मेरा गुज़र एक एसी क़ौम पर हुआ, जिन के होंट आग की क़ैंचियों से काटे जा रहे थे।
मैंने जिब्रईल अलैहिस्सलाम से उनके मुताल्लिक़ दरयाफ़त किया तो जिब्रईल ने बताया: ये दुनिया के ख़तीब हैं। एक रिवायत में हैके आप स०अ०व० की उम्मत के ख़तीब हैं।
जो लोगों को तो नेकी का हुक्म दिया करते और अपने नफ़सों को भुलाये रखते, हालाँकि वो किताब की तिलावत भी करते। भुला देते हो अपने आप को की ताबीर कितनी असर आफ़रीन है, यानी तुम एसा करके अपनी बेहतरी नहीं कर रहे, बल्कि तुम तो वो ज़ियां कार और सूद फ़रामोश हो, जिन की नज़रों से अपनी बेहतरी ओझल होचुकी है।