नई दिल्ली। 20 सितंबर (पी टी आई) मुतनाज़ा बंगला देशी मुसन्निफ़ तस्लीमा नसरीन का एहसास है कि अमन बहुत दूर है, इन का दावा है कि वो मज़हबी, सयासी और समाजी फ़तोवों का तख़्ता-ए-मश्क़ बन गई हैं। उन्हों ने पी टी आई से कहा कि बदक़िस्मती से समझौता मेरे लिए नहीं है, इमतिना आइद करना, सनसरशिप का तसलसुल मेरी क़िस्मत है। सिर्फ मज़हबी फ़तवे ही नहीं, बदक़िस्मती से मैं सयासी और समाजी फ़तोवों का भी तख़्ता-ए-मश्क़ बन गई हूँ। ज़िंदगी आसान नहीं है और सुकून बहुत दूर ही। 49 साला तस्लीमा नसरीन ने जो जारीया साल जून से दिल्ली में मुक़ीम हैं, पी टी आई से कहा कि 1994-में बंगला देश से फ़रार के बाद वो कई मुक़ामात बिशमोल यूरोप, कोलकता, दिल्ली, स्वीडन और दुबारा दिल्ली में मुक़ीम रह चुकी हैं क्योंकि उन्हें मग़रिबी बंगाल वापिस जाने की इजाज़त नहीं दी गई। इन की उमीद तक़रीबन टूट चुकी है कि वो कभी बंगला देश भी वापिस जा सकें गी। वो कोलकता में मुस्तक़िल क़ियाम चाहती हैं जहां मुश्तर्क सक़ाफ़्ती विरसा और ज़बान में शराकतदारी करसकेंगी लेकिन उन्हें इस बारे में भी शक है कि वो कोलकता वापिस जा सकें गी। उन्हों ने कहा कि अगर चीफ़ मिनिस्टर मग़रिबी बंगाल ममता बनर्जी इजाज़त दें तो वो कोलकता वापिस जाना पसंद करेंगी। कोलकता बरसों इन का वतन रह चुका है और उन्हें वो ख़ुशी-ओ-मुसर्रत हमेशा याद आती ही, जो उन्हें कोलकता में मयस्सर थी। तस्लीमा नसरीन इस्लाम और बहैसीयत उमूमी मज़हब के बारे में अपने नज़रियात की बिना पर मुतनाज़ा बन गई हैं। उन्हों ने कहा कि फ़िलहाल वो नज़मों का एक मजमूआ और अपनी यादों के मजमूआ का सातवां ऐडीशन शाय करने की कोशिश में मसरूफ़ हैं। उन्हों ने कई किताबें तसनीफ़ की हैं जिन में से बेशतर बंगला देश और हिंदूस्तान में ममनू हैं।