नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक सरकारी मुलाज़िम के खिलाफ सख्त तब्सिरा करते हुये कहा है कि सरकारी नौकरी में ‘छिपे भेड़ियों’ की जगह नहीं है.
अदालत ने एक खातून चपरासी के खानदान की दो ख़्वातीन का जिंसी इस्तेहसाल करने के लिए किए गए आफीसर की दरखास्त को खारिज करते हुये ये तब्सिरा किया . इस दरखास्त में आफीसर ने पदावनति को चैलेंज दिया था .
जस्टिस कैलाश गंभीर और जस्टिस आईएस मेहता की बेंच ने कहा कि यह सिर्फ ज़ाय वाकिया पर एक खातून के साथ जिंसी इस्तेहसाल का मामला नहीं है बल्कि यह खराब तर्ज़ ए अमलका मामला है जो सरकारी मुलाज़िम के लिए ठीक नहीं है.
बेंच ने कहा कि आला अख्लाकियत और ईमानदारी वाले लोगों को ही लोक सेवा में आना चाहिए न कि छिपे भेड़ियों को. साथ ही अदालत ने सरकारी मुलाज़िम एसके जसरा पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया.
वज़ारत ए दिफा के तंखाह , पेंशन और Regulation Directorate में काम कर रहे जसरा का रैंक 2012 में ज़्वाइंट डायरेक्टर के ओहदा से घटाकर नायब डायरेक्टर कर दिया गया था. उन्हें एक बेवा चपरासी की बेटी और बहू का इस्तेहसाल करने के इल्ज़ाम में डिमोटेड किया गया था.
जसरा ने अपनी दरखास्त में Central Administrative Tribunal के फैसले को चैलेंज दिया था जिसने उन पर लगाई गई सजा बरकरार रखी थी. जसरा की दलील थी कि उन्हें कोई सजा नहीं दी जा सकती क्योंकि मुबय्यना तौर पर तर्ज़ ए अमल आफीशियली ड्यूटी के दौरान नहीं किया गया था.
बेंच ने कहा कि उनका तर्ज़ ए अमल ‘सरकारी मुलाज़िम के लिए माकूल हद तक सुलूक नहीं होने’ का साफ मामला है और लोक सेवक को ‘हमेशा चाहे वह पेशेवर ढांचे में हो या नहीं, ऐसा सुलूक करना चाहिए जो नज़्म व जब्त के खिलाफ नहीं हो.