अंग्रेज़ों ने मुहम्मद यूनूस के सामने घुटने टेक उनको बनाया था बिहार का पहला प्रधानमंत्री !

१४ जुलाई १९४२ को वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक का आयोजन किया गया था . इसी समय सुप्रसिद्ध भारत छोड़ो प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और उसे अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति को मुम्बई में होने वाली बैठक में प्रस्तुत करने का निर्णय हुआ।

५ अगस्त १९४२ को मुम्बई में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया और गाँधी जी ने करो या मरो का नारा दिया साथ ही कहा हम देश को चितरंजन दास की बेड़ियों में बँधे हुए देखने को जिन्दा नहीं रहेंगे।
८ अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित होने के तुरन्त बाद कांग्रेस के अधिकतर नेता गिरफ्तार कर लिये गये। डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद में मथुरा बाबू, श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह बाबू इत्यादि भी गिरफ्तार कर लिए गये।
बलदेव सहाय ने सरकारी नीति के विरोध में महाधिवक्‍ता पद से इस्तीफा दे दिया। ९ अगस्त अध्यादेश द्वारा कांग्रेस को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। इसके फलस्वरूप गवर्नर ने इण्डिपेंडेन्ट पार्टी के सदस्य मोहम्मद युनुस को सरकार बनाने के लिए आमन्त्रण किया। मोहम्मद युनुस बिहार के भारतीय प्रधानमन्त्री बने। (तत्कालीन समय में प्रान्त के प्रधान को प्रधानमन्त्री कहा जाता था।)

यूनुस से साथ और तीन लोग भी सरकार का हिस्सा बने थे जिसमें दो ग़ैर-मुस्लिम थे.एक अप्रैल, 1937 को वे बिहार ही नहीं सभी प्रातों में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले पहले शख्स बने. यूनुस 19 जुलाई 1937 तक अपने पद पर रहे.

युनुस का जन्म 4 मई 1884 को बिहार में पटना के करीब पनहरा गांव में हुआ था. उनके पिता मौलवी अली हसन मुख्तार मशहूर वकील थे और उन्होंने लंदन से वकालत पढ़ी थी.
यूनुस ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस से की थी, लेकिन बाद में वे महात्मा गांधी की असहयोग नीति और दूसरे राजनीतिक कारणों से कांग्रेस से अलग हो गए.
फिर उन्होंने 1937 के चुनाव के समय मौलाना सज्जाद के साथ मिलकर मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी बनाई. आज़ादी के बाद बने किसान मजदूर प्रजा पार्टी के गठन में भी मोहम्मद यूनुस ने अहम भूमिका निभाई थी. 1952 में 13 मई को मोहम्मद यूनुस का देहांत हुआ.

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