अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कम आय वाले देशों की आर्थिक रूप से अधिक मदद करनी चाहिए. आईएमएफ का तर्क है, उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थायें ही ग्लोबल वार्मिंग में अधिक योगदान करती रहीं हैं, इसलिये कम आय वाले देशों को इसके परिणामों का सामना करने के लिए मदद किया जाना ठोस वैश्विक आर्थिक नीति के तहत तो आवश्यक है ही साथ ही इन देशों का नैतिक कर्तव्य भी है. आईएमएफ ने अमीर देशों को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अब भी उन्होंने कम आय वाले देशों की मदद नहीं की तो भविष्य में विस्थापन का यह एक बड़ा कारण साबित होगा.
पिछले 40 सालों से वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन ने कम आय वाले देशों में सूखा, बाढ़ और समुद्री जलस्तर में बढ़ोतरी जैसी आशंकाओं को बढ़ा दिया है. आईएमएफ के ब्लॉग पर लिखा गया है कि जलवायु परिवर्तन का असर हर देश पर अलग-अलग नजर आता है. यहां तक कि कम आय वाले देश ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में बेहद कम योगदान देते हैं लेकिन उन्हें भी अपनी भौगोलिक स्थिति के चलते बढ़ते तापमान के खतरों और प्रभावों को झेलना पड़ता है.
आईएमएफ का कहना है कि तापमान में हो रही यह बढ़ोतरी भविष्य में अधिक प्राकृतिक आपदाओं की ओर संकेत करती है, जिसका नतीजा टकराव और विस्थापन के रूप में नजर आ सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक कम आय वाले देशों में इसका असर अधिक नजर आएगा लेकिन इसके प्रभावों से उन्नत अर्थव्यवस्थायें भी नहीं बच सकेगी. रिपोर्ट में शामिल एक शोध मुताबिक, विस्थापन उन्हीं लोगों तक सीमित है जो यात्रा करना वहन कर सकते हैं, लेकिन एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो वहीं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझता रह सकता है.
आईएमएफ ने कहा, आर्थिक रूप से कमजोर इन देशों के सामने आने वाली बाधाओं को देखते हुए, अंतरराष्ट्रीय समुदायों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इनके प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए, क्योंकि इन परेशानियों में ये बेहद ही कम योगदान देते हैं. रिपोर्ट मुताबिक, सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति के लिए इन देशों को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 30 फीसदी खर्च करने की आवश्यकता होगी लेकिन इनमें से अधिकतर देशों के पास पैसा नहीं है.
आईएमएफ का कहना है, कम आय वाले देशों के पास ढांचागत व्यवस्था, प्रशासनिक क्षमता और राजनीतिक स्थिरता का अभाव होता है जिसके चलते इन देशों के लिए उचित व्यापक आर्थिक नीतियों और रणनीतियों को लागू करना मुश्किल होता है. जर्मनी ने पिछले साल गरीब देशों की मदद के लिए जलवायु योजनाओं को ठोस रणनीतियों में बदलने के लिए प्रतिबद्धता जतायी थी. आईएमएफ के मुताबिक, “ऐसे अमीर देश जो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अधिक करते हैं उन्हें जलवायु अनुकूलन लागत में अधिक योगदान देना चाहिए.