अक़ल्लीयतों को बैंक क़रज़ी

आंधरा प्रदेश में मुस्लमानों को दरपेश मसाइल में से एक बड़ा मसला यहां पर राइज हुकूमत की ठेकादारी है। कम-ओ-बेश यहां कांग्रेस के दौर का चीफ़ मिनिस्टर मुस्लमानों के हुक़ूक़ बहबूद तरक़्क़ी के नाम पर अपनी ठेकादारी का मुज़ाहरा किया और कांग्रेस का साथ देने वाली जमातों ने ख़ासकर नाम निहाद मुस्लिम क़ियादत ने भी इस ठेकादारी का साथ दे कर मुस्लमानों के नाम पर अपने हिस्सा का मुनाफ़ा हासिल किया है और करते आरही है।

]रियासत का कोई मुस्लिम शहरी उस की पसमांदगी और दीगर मसाइल का सवाल उठाए तो वो काबिल गर्दनज़दनी क़रार पाता है। मुख़ालिफ़ तसव्वुर करके उस को परेशान किया जाता है उल-ग़र्ज़ रियासत में मुस्लमानों की बहबूद का डंका बजाने वाली कांग्रेस हुकूमतों ने अक़ल्लीयतों के हक़ में जो कुछ किया है इस का असल रिकार्ड से कोई दौर का भी वासतहनहीं उस की ज़िंदा मिसाल बैंकों की जानिब से कर्ज़ों की फ़राहमी में उलट फेर के आदाद-ओ-शुमार हैं।

चीफ़ मिनिस्टर किरण कुमार रेड्डी ने बैंकर्स का इजलास मुनाक़िद किया मगर इस में मुस्लमानों के मसाइल का तज़किरा नहीं किया अलबत्ता बैंकर्स ने जो रिपोर्ट तैयार की है वो हैरानकुन है क्यों कि इस रिपोर्ट ने ऐसा झूट लिखा है कि वो झूट बोल के सच्च को भी श्रम आ जाने के मिस्दाक़ अक़ल्लीयतों की बहबूद के लिए दिए गए क़र्ज़ा जात की फ़हरिस्त 11 हज़ार 776 करोड़ रुपय के क़र्ज़ की इजरा से मुताल्लिक़ है।

रियासत के मुस्लमानों और दीगर अक़ल्लीयतों को इतनी भारी रक़म बतौर क़र्ज़ फ़राहम किया गया है तो सवाल ये उठ रहा है कि आख़िर ये क़र्ज़ किस मुस्लमान के हक़ में दिया गया। इस मसला पर बैंकर्स की रिपोर्ट ग़ैर वाज़िह है। चीफ़ मिनिस्टर किरण कुमार रेड्डी ने अगर चाहा तो इस रिपोर्ट की सच्चाई मालूम करने की कोशिश करसकते थे मगर उन्हों ने बैंकर्स के इजलास में सिर्फ किसानों के मसाइल और दीगर उमूर पर तवज्जा दी। मुस्लमानों को बैंकों से कर्ज़ों की इजराई का मुआमला तास्सुब पसंदी का शिकार है।

ये शिकायत आम है कि मुस्लमानों को बैंकर्स से कर्ज़ों का हुसूल जोय शेर लाने के मुतरादिफ़ है। ऐसे में अगर बैंकर्स अपनी रिपोर्ट में अक़ल्लीयती तबक़ात को तरजीही तौर पर 11 हज़ार 776 करोड़ रुपय के क़र्ज़ जारी करने का इद्दिआ करते हैं तो इस की तफ़सीलात भी उन के पास होंगी जिस को वो पोशीदा नहीं रख सकती। बैंकर्स कमेटी इजलास में चीफ़ मिनिस्टर को चाहीए था कि वो अक़ल्लीयतों के मसाइल के बारे में ग़ौर करते हुए और अक़ल्लीयतों को फ़राहम करदा बड़े पैमाना की रक़म की तफ़सीलात का भी जायज़ा लेते हुए इन का इस तरह का इल्ज़ाम बैंकर्स की रिपोर्ट की सच्चाई को सामने लाने में मुआविन साबित होता।

बैंकर्स ने दावा किया कि रियास्ती अक़ल्लीयती कारपोरेशन की जानिब से 2.50 करोड़ रुपय 1379 दरख़ास्त गुज़ारों को फ़राहम किए गए जबकि बैंकर्स ने 11 हज़ार करोड़ रुपय ज़ाइद रक़म की फ़राहमी का दावा किया है तो इस की तफ़सीलात मालूम करना ज़रूरी है।

क्योंकि हुकूमत का ये ठेका दाराना निज़ाम रियासत के अक़ल्लीयतों को नुक़्सानात की तरफ़ ले जा रहा है और अक़ल्लीयतों के नाम पर सियासत करने वाले इस ठेकादारी निज़ाम के कर्ता धर्ता बने हुए हैं। सवाल ये पैदा होता है कि कहीं बैंक के ये क़र्ज़ा जात से मुस्लमानों के नाम पर इस ठेकादारी निज़ाम का हिस्से बनने वाले शहर के बाअज़ क़ाइदीन ने इस्तिफ़ादा तो नहीं किया है इस तरह के कर्ज़ों के हुसूल के नाम पर हाल ही में शहर की चारमीनार बैंक ने मुक़ामी ऐम एलए को नोटिस भी दी थी।

ये सयासी तबक़ा अपने ख़ुशहाल मुस्तक़बिल के लिए मुस्लमानों के नाम का मुफ़ाद पुरसताना इस्तिमाल कररहा है तो इस तरह का निज़ाम का पता चलाकर इस का ख़ातमा करना ज़रूरी है। एक तरफ़ बैंकर्स ने जब इतनी बड़ी रक़म अक़ल्लीयतों को फ़राहम करने का वाअदा किया है, दूसरी तरफ़ आंधरा प्रदेश अक़ल्लीयती कारपोरेशन ने इस तरह की कसीर रक़म पर हैरत का इज़हार किया है तो पर बैंकर्स की अक़ल्लीयत नवाज़ रिपोर्ट में हो सकता है कि झूट को मुस्लमानों को नफ़सियाती सोच से दो-चार करने के लिए इस्तिमाल किया गया हो। बैंकर्स के रवैय्या के बारे में ये शिकायत भी आम है कि वो मुस्लमानों को क़र्ज़ की फ़राहमी की रक़ूमात को ज़ेर-ए-ग़ौर ही नहीं लाते उनकी नज़र तो सिर्फ दौलत मंदों की दरख़ास्तों पर रहती या फिर मुस्लमानों का ठेका लेने का दावा करने वाले अरकान की दरख़ास्तों पर कर्ज़ों को मंज़ूर किया जाता है क़र्ज़ की इजराई और उसूल में भी बैंकर्स के दो पैमाने और उसूल देखे गए हैं।

इस ताल्लुक़ से गवर्नर नरसिम्हन ने भी बैंकर्स की हरकत पर भी इज़हार-ए-नाराज़गी की है। इन का कहना गौरतलब है कि बैंकर्स एक तरफ़ हज़ारों करोड़ रुपय की वसूली में नरम रवैय्या इख़तियार करते हैं और एक आम आदमी के ख़िलाफ़ ज़ालिमाना रवैय्या इख़तियार करते हैं। ये बात काबिल नोट है कि बैंकर्स इन बड़े क़र्ज़ दारों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई नहीं करते जिन्होंने हज़ारों करोड़ रुपय क़र्ज़ हासिल किया है। जबकि मामूली अरकान और किसान या ग़रीब शख़्स क़र्ज़ हासिल करता है तो इस की वसूली के लिए जाबिराना और ज़ालिमाना रुख़ अहतयार किया जाता है।

अक़ल्लीयती तलबा-ए-ख़ासकर मुस्लिम बच्चे स्कालरशिपस के हुसूल के लिए बैंकों में खाते खोलने के लिए कई परेशानीयों से गुज़रते हैं तो बैंकर्स की इस रिपोर्ट को किस तरह यक़ीन किया जा सकेगा कि इस ने अक़ल्लीयती आबादी वाले इलाक़ों में ज़्यादा से ज़्यादा ब्रांचस क़ायम करने के इक़दामात किए हैं। अगर बैंकर्स की रिपोर्ट और इस तरह के इक़दामात मुस्लमानों के हाफ़िज़े को जांचने के लिए हैं तो उन्हें इस तरह की आरिज़ी मिठास के ज़रीया अक़ल्लीयतों के नाम पर मख़सूस ग्रुप को फ़ायदा पहूँचाने के बजाय आम मुस्लमानों से हमदर्दी होनी चाहीए ताकि एक आम मुस्लिम बैंकर्स से रुजू होकर अपना मसला हल कर सके।