सुप्रीम कोर्ट ने मर्कज़ की जानिब से अक़ल्लीयतों को बी सी कोटा के 27 फीसद तहफ़्फुज़ात में 4.5 फीसद ज़ेली कोटा फ़राहम करने के फैसले को चैलेंज करने वाली एक दरख़ास्त को समाअत के लिए कुबूल करने से इनकार कर दिया ।
जस्टिस ए एल दत्तू और जस्टिस सी के प्रसाद पर मुश्तमिल एक बंच ने दरख़ास्त गुज़ार से कहा कि वो मुस्लमानों सिखों ईसाईयों बुद्धिस्टों और पारसियों को तहफ़्फुज़ात फ़राहम करने के मर्कज़ के फैसले के ख़िलाफ़ हाइकोर्ट से रुजू हो ।
दरख़ास्त गुज़ार विक्रांत यादव ने सुप्रीम कोर्ट से इस मुआमला में मुदाख़िलत करने की अपील की थी और कहा था कि मर्कज़ का ये फैसला ग़लत है और उसे कुलअदम क़रार दिया जाना चाहीए । यादव ने अपनी दरख़ास्त में कहा कि ओ बी सी तब्क़ात के लिए पहले से मौजूद 27 फीसद तहफ़्फुज़ात में अक़ल्लीयतों केलिए 4.5 फीसद को मुख़तस करना गैरकानूनी नामुनासिब इमतियाज़ी तक़्सीम पसंदाना है और ये अवामी मुफ़ाद में नहीं है इसके अलावा ये बुनियादी हुक़ूक़ की ख़िलाफ़वर्ज़ी भी है ।
इसने इद्दिआ किया था कि तहफ़्फुज़ात मज़हब की बुनियाद पर नहीं दिए जा सकते और अक़ल्लीयतों के समाजी-ओ-तालीमी पसमांदा तबक़ात को पहले ही से ओ बी सी के 27 फीसद तहफ़्फुज़ात में शामिल किया जा चुका है । दरख़ास्त गुज़ार का इद्दिआ था कि मौजूदा क़रार दादद को ये मालूम किए बगैर मंज़ूर कर लिया गया कि आया लिसानी और मज़हबी अक़ल्लीयतों को वाक़्यता तहफ़्फुज़ात की ज़रूरत है यह नहीं।