हैदराबाद, ३१ दिसंबर (सियासत न्यूज़) नायब सदर जमहूरीया हिंद जनाब मुहम्मद हामिद अंसारी ने आज कहा कि ज़राए इबलाग़ की नई नई इख़तिराआत और तिजारती मलहूज़ात के नतीजा में सहाफ़त ताअलुकात-ए-आमा इश्तिहार के कारोबार और तफ़रीह के माबैन हद्द-ए-फ़ासिल मिट गई है।
इन में से हर एक का असर एडीटर के रोल और अख़लाक़ीयात के इन उसूलों पर पड़ता है जिन की अब तक पाबंदी की जाती थी। इस तरह पहला चैलेंज अख़बारात के नए माहौल में इन सिफ़ात को क़ायम रखने के लिए तरीक़ा-ए-हाय कार वज़ा करना है और दूसरा चैलेंज ख़बरों के इस्तिनाद और उन की इन्हिसार पज़ीरी और इलेक्ट्रानिक मीडीया में अक्सर नज़र आने वाली सनसनी ख़ेज़ी से पाक संजीदा तजज़िया के एतबार को बरक़रार रखना है।
तीसरे अमरीकी सहाफ़ी वाल्टर लिप मैन की वो तंबीया जो इस पेशा के लिए दाइमी एहमीयत की हामिल है कि दबाव और धमकीयों से ज़्यादा अफ़सोसनाक हक़ीक़त ये है कि मीडीया के लोग इक़तिदार के इन माया जालों में फंस सकते हैं जिन के बीच उन्हें मुस्तक़िल तौर पर रहना पड़ता है।
जनाब मुहम्मद हामिद अंसारी यहां जुबली हाल में दो रोज़ा आलमी उर्दू एडीटर्स कान्फ़्रैंस की इफ़्तिताही तक़रीब से ख़िताब कर रहे थे जिस का एहतिमाम रोज़नामा सियासत ने किया। इस मौक़ा पर 115 साल क़बल शाय गलमसज़ आफ़ हैदराबाद के सानी एडीशन, अल्लामा एजाज़ फ्ररुख की तसनीफ़ करदा किताब हैदराबाद शहर नगारां का रस्म इजरा नायब सदर जमहूरीया के हाथों अमल में आया जबकि गवर्नर आंधरा प्रदेश जनाब ई एस एल नरसिम्हन ने आलमी उर्दू एडीटर्स कान्फ़्रैंस के साओइनीर ( Sovenior) और रोज़नामा सियासत की डायरी 2012 का रस्म इजरा अंजाम दिया।
इन तमाम तसानीफ़ की तालीफ़-ओ-इशाअत इदारा सियासत के ज़ेर-ए-एहतिमाम अमल में आई है। जनाब मुहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि उर्दू प्रिंट मीडीया को दीगर मसाइल भी दरपेश हैं जो इन्फ़िरादी नौईयत के हैं और तशवीशनाक अबआद के हामिल हैं। उन्हों ने कहा कि ये एक मुस्लिमा हक़ीक़त है कि हर इशाअत ऐसे क़ारईन को पेशे नज़र रखती है जो मुस्तनद ख़बरों और तबसरों को पढ़ने में दिलचस्पी रखते हूँ और इस सिलसिला में इस बात को तर्जीह दी जाती है कि इन का ताल्लुक़ उम्र के मुख़्तलिफ़ ज़मरों से हो।
उर्दू इशाअतों के मुआमला में ये भी ज़रूरी है कि वो इस ज़बान से वाक़िफ़ हूँ। आबादी में मजमूई इज़ाफ़ा के बावजूद कल आबादी में उर्दू बोलने वालों काफ़ी सद ख़ासा कम हो गया है। मुल्क़ के बाज़ हिस्सों में नौ उम्र क़ारईन का ग्रुप इस ज़मुरा से ख़ारिज हो जाता है जिस का नतीजा है कि अख़बारात अपनी तवज्जा ज़्यादा उम्र वाले ग्रुपों पर मर्कूज़ करते हैं।
इस तरह तक़रक़ी की वो ख़बरें जिन में नौजवानों की दिलचस्पी का सामान होता है कम एहमीयत हासिल कर पाती हैं। उन्हों ने कहा कि ज़ौक़ की तश्फ़ी करने और क़ारईन को असरी मसाइल की जानिब माइल करने के लिए ज़िम्मेदार इशाअतें शायद बेहतर किरदार अदा करसकती हैं। उन्हों ने कहा कि उर्दू मीडीया के बाज़ मसाइल का ताल्लुक़ वसाइल इश्तिहारात ख़बरों के हुसूल के तरीक़ों और नई टैक्नोलोजी के मुताबिक़ ख़ुद को ढालने से है। इन में से हर एक का ताल्लुक़ क़ारईन की तादाद और उन के मतलोबात से है।
ताहम एक अच्छे अख़बार को चाहीए कि ना सिर्फ अवामी मुतालिबात पर पूरा उतरे बल्कि उन मुतालिबात की तशकील का भी अंजाम दी। ऐसा करके ही वो राय साज़ की हैसियत हासिल कर पाए गा। ख़बरों के दायरा को भी ख़ालिस्तन किसी मख़सूस तबक़ा तक महिदूद ना रह कर वसीअ तर हलक़ा की ज़रूरीयात की तकमील करनी चाहीए। इस के साथ साथ उम्मीद की किरणें भी नज़र आती हैं।
टैक्नोलोजी की बुनियाद पर जदीद कारी का आग़ाज़ हो चुका है। कुछ बड़े मीडीया ग्रुपस ने उर्दू ऐडीशनों में सरमाया कारी की है इस से क़ारईन की तादाद में इज़ाफ़ा का इशारा मिलता है। नायब सदर जमहूरीया ने कहा उर्दू के लिए साबिक़ा और मुसलसल की जा रही ख़िदमात के लिए मैं हैदराबाद को ख़िराज-ए-तहिसीन पेश करना चाहूंगा।
कुछ साल क़बल मेरे एक दोस्त ने मुझे प्रोफ़ैसर आग़ा हैदर हुस्न मिर्ज़ा-ए-की दक्कनी डिक्शनरी पेश की थी। इस से उर्दू ज़बान की मुक़ामी रंग-ओ-आहंग को अख़ज़ करने और उसे प्रवान चढ़ाने की सलाहीयत आशकारा होती है। ज़ाती तौर पर में इस के मुताले से बहुत लुतफ़ अंदोज़ हुआ। हमारे ज़माना में भी मुज्तबा हुसैन जैसे अदीब हैं जिन के तहरीर करदा शख़्सियात और मुक़ामात के क़लमी ख़ाके क़ारईन के ज़हनों पर एक दाइमी तास्सुर मुरत्तिब करते हैं।
अल्लामा एजाज़ की किताब हैदराबाद शहर नगारां भी काबिल-ए-ज़िकर है जिस में इन शख़्सियात का तफ़सीली ज़िक्र मिलता है जिन्हों ने मख़सूस हैदराबादी कल्चर के फ़रोग़ में अहम किरदार अदा किया। अफ़सोस कि ये कचर अब इतना नुमायां नहीं रहा।
नायब सदर जमहूरीया हिंद ने अपनी तक़रीर में जाबजा अरविद के अशआर इस्तिमाल करते हुए उर्दू और उर्दू सहाफ़त की एहमीयत को उजागर किया है। उन्हों ने कहा कि ये महफ़िल बबानग दहल दुनिया को ये पैग़ाम दे रही है : सारे जहां में धूम हमारी ज़बां की ही।
उन्हों ने कहा कि ये कान्फ़्रैंस इस बात पर दलालत करती है कि उर्दू एक ज़िंदा ज़बान ही, एक बैन-उल-अक़वामी ज़बान है, एक ऐसी ज़बान है जिस के बोलने वाले मशरिक़ बईद से मग़रिब बईद तक और उन के दरमयान हर जगह मौजूद हैं, एक ऐसी ज़बान है जो इतनी दिलनशीन-ओ-दिलनवाज़ है कि अहल उर्दू उसे अक़बा में भी ले जाना चाहते हैं:
इसी में होगी ख़ुदा से भी गुफ़्तगु मीकशऔ
कि रोज़ हश्र भी होगी मरी ज़बां उर्दू
उन्हों ने कहा उर्दू ज़बान से वाजिबी सी वाक़फ़ीयत रखने वाले उर्दू को रुमानवी शायर की बदौलत जानते हैं जो लोग हमारी जद्द-ओ-जहद आज़ादी की तारीख़ से ज़्यादा बेहतर तौर पर वाक़िफ़ हैं वो मौलवी मुहम्मद बाक़िर के दिल्ली उर्दू अख़बार की /17 मई 1857 की इशाअत को बड़े फ़ख़र से याद करते हैं जिसे इन्क़िलाब एडीशन के नाम से जाना जाता है। एक नसल बाद पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल ने वो मशहूर नज़म लिखी जिस के इबतिदाई मिसरे आज़ादी के मतवालों का नारा बन गई:
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ूए क़ातिल में है
अहल इक़तिदार को ललकारने का ये जज़बा एक सदी तक उर्दू सहाफ़त के रग-ओ-पै में जारी-ओ-सारी रहा और इस मशहूर शेअर की तख़लीक़ का सबब बना:
खींचो ना कमानों को ना तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
अगस्त 1947 में बर्तानवी राज का ख़ातमा हो गया। हालात की सितम ज़रीफ़ी से उर्दू सहाफ़त केलिए इस वाक़िया से एक नाख़ुशगवार नतीजा बरामद हुआ। गुरू बचन चंदन के अलफ़ाज़ में इस तक़सीम से सवा सौ साल पुरानी उर्दू सहाफ़त का शीराज़ा बिखर गया और ये दो हिस्सों में बट गई।
ज़राए इबलाग़ अवाम को बाख़बर रखने में एक अहम किरदार अदा करता है। इस तरह ये अफ़्क़ार की तशकील करता है और किसी क़ौम के सयासी और ग़ैर सयासी एजंडा की वज़ाहत करने में मदद करता है। ये मफ़ाद-ए-आम्मा का निगहबान है। किसी ज़माना में ये बात प्रिंट मीडीया के साथ मख़सूस थी; आज के दौर में इस ख़ुसूसीयत में दूसरे मीडीया प्लेटफार्म और इख़तिराआत भी इस के साथ शरीक हैं जिन का ज़हूर गुज़शता दो दहाईयों के टैक्नालोजीकल इन्क़िलाब के नतीजा में हुआ है और जो ख़बरों के लिखे जानी, उन की प्रोसेसिंग, उन की नशर-ओ-इशाअत और उन के इस्तिमाल पर असरअंदाज़ होते हैं।
रिवायती मीडीया अस्लन ऐडीटर मर्कूज़ था और मुल्क के मुफ़ादात के बावजूद एडीटरों की इन्फ़िरादी छाप का हामिल था। दोयम ये कि वो सहाफ़ती अख़लाक़ीयात के उसूलों पर चलने की जानिब माइल था। ऐसा भी नहीं कि दोनों नाक़ाबिल-ए-तसख़ीर थे ताहम दोनों ने आम हालात में अपने बुनियादी किरदार को बरक़रार रखा।
गवर्नर आंधरा प्रदेश जनाब ई एस एल एन नरसिम्हन ने ख़िताब करते हुए कहा कि वो हैदराबाद में रह कर उर्दू बोलना सीख लिए हैं। वो दिन दूर नहीं कि पाकिस्तान से ज़्यादा उर्दू बोलने वाले हिंदूस्तान में होंगी।
गवर्नर ने बताया कि उन्हों ने एक साहिब से पूछा कि हर कोई उर्दू की बात करता है आख़िर उस की ख़ासीयत किया ही? उन्हों ने जवाब में सिर्फ जोश दाग़ देहलवी का वो मशहूर शेर सुना दिया कि
उर्दू है जिस का नाम हमें जानते हैं दाग़
सारे जहां में धूम हमारी ज़बान की है
उन्हों ने कहा कि ये एक हक़ीक़त है कि उर्दू मीठी और सीधी ज़बान है। उन्हों ने कहा कि देश को बनाए रखने और बिगाड़ने की ज़िम्मेदारी एडीटर साहबीन के कंधों होती है। उन्हों ने मश्वरा दिया कि पैसों की लालच में ग़लत ख़बरें ना शाय करें। उन्हों ने कहा कि आज-कल ख़बरें टेलीविज़न ट्वीटर वग़ैरा पर फ़ौरी मिल जाती हैं मगर कल के वाक़िया या ख़बर को आज देखना होतो अख़बार ही वाहिद ज़रीया हैं। रोज़ाना सुबह उठते ही अख़बार ही का सामना होता है।
कभी कभार तो मियां बीवी एक दूसरे का चेहरा बाद में देखते हैं मगर चाय के साथ अख़बार को पहले मुलाहिज़ा करते हैं। उन्हों ने कहा कि बाअज़ अख़बारात अपना सर्क्युलेशन बढ़ाने सनसनी ख़ेज़ी को इख़तियार करते हैं। उन्हों ने उर्दू अख़बारात के मुदीरों को मश्वरा दिया कि जैसा कि वो अपना एक कनसोरशेम तशकील देने की तजवीज़ रखते हैं वो साथ ही अपने लिए ज़ाबता-ए-अख़लाक़ भी मुरत्तिब करलीं कि वो समाज की मदद केलिए क्या लिखेंगे और क्या नहीं लिखेंगे।
उन्हों ने कहा कि अख़बारात ज़रूर हुकूमत की ख़ामीयों की निशानदेही करें और ग़लत पालिसीयों पर तन्क़ीद भी करें मगर साथ ही हुकूमत के अच्छे कामों को भी नुमायां करें।