(मौलाना मोहम्मद यूसुफ कांधलवी ) अल्लाह तआला का इरशाद है- कह दो कि अगर तुम अल्लाह तआला से मोहब्बत रखते हो तो मेरी ताबेदारी करो खुद अल्लाह तुम से मोहब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ फरमा देगा, अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है कह दो कि अल्लाह की और रसूल ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की इताअत करो अगर यह मुंह फेर लें तो बेशक अल्लाह काफिरों को दोस्त नहीं रखता।
बेशक अल्लाह तआला ने तमाम जहां के लोगों में से आदम को और नूह को और इब्राहीम के खानदान को और इमरान के खानदान को इंतखाब फरमाया कि यह सब आपस में एक दूसरे की नस्ल से हैं और अल्लाह है सुनता जानता।
इस आयत ने फैसला कर दिया जो शख्स अल्लाह की मोहब्बत का दावा करे और उस के आमाल अफआल अकायद फरमाने नबवी के मुताबिक न हों तरीका मोहम्मदिया पर वह कारबंद न हो तो वह अपने इस दावे में झूटा हैं।
सही बुखारी में है रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फरमाते हैं जो शख्स कोई ऐसा अमल करे जिसपर हमारा हुक्म न हो वह मरदूद है। इसी तरह यहां भी इरशाद होता है कि अगर तुम अल्लाह से मोहब्बत रखने के दावे में सच्चे हो तो मेरी सुन्नतों पर अमल करो। उस वक्त तुम्हारी चाहत से ज्यादा देगा। यानी वह खुद तुम्हारा चाहने वाला बन जाएगा। जैसे बाज हकीम उलेमा ने कहा है कि तेरा चाहना कोई चीज नहीं। लुत्फ तो उस वक्त है कि अल्लाह तुझे चाहने लग जाए।
गरज कि अल्लाह की मोहब्बत की निशानी यही है कि हर काम में इत्तबा-ए-सुन्नत मद्देनजर हो।
फिर फरमाता है कि हदीस पर चलने की वजह से अल्लाह तआला तुम्हारे तमामतर गुनाहो को भी माफ फरमा देगा। फिर हर आम व खास को हुक्म मिलता है कि सब अल्लाह और रसूल के फरामांबरदार हैं। जो नाफरमान हो जाएं यानी अल्लाह और रसूल की इताअत से हट जाएं तो वह काफिर हैं और अल्लाह उनसे मोहब्बत नहीं रखता। इससे वाजेह हो गया कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के तरीके की मुखालिफत कुफ्र है। ऐसे लोग अल्लाह के दोस्त नहीं हो सकते। गोया उनका दावा हो लेकिन जब तक अल्लाह के सच्चे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ताबेदारी पैरवी और इत्तबा-ए-सुन्नत न करें वह अपने इस दावे में झूटे हैं।
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तो वह हैं कि अगर आज अम्बिया रसूल बल्कि बेहतरीन और उलुल अज्म पैगम्बर भी जिंदा हाते तो उन्हें भी आप की माने बगैर और आप की शरीअत पर कारबंद हुए बगैर चारा ही न था।
सबसे पहले नबी (अलैहिस्सलाम) अल्लाह तआला ने उन बुजुर्ग हस्तियों को तमाम जहां पर फजीलत इनायत फरमाई, हजरत आदम (अलैहिस्सलाम) को अपने हाथ से पैदा किया, अपनी रूह उनमें फूंकी, हर चीज के नाम उन्हें बतलाए, जन्नत में उन्हें बसाया फिर अपनी हिकमत के एतबार के इजहार के लिए जमीन पर उतारा जब जमीन पर बुतपरस्ती कायम हो गई तो हजरत नूह (अलैहिस्सलाम) को सबसे पहले रसूल बनाकर भेजा।
फिर जब उनकी कौम ने सरकशी की, पैगम्बर की हिदायत पर अमल न किया, हजरत नूह ने दिन रात पोशीदा और जाहिर अल्लाह की तरफ दावत दी लेकिन कौम ने एक न सुनी तो नूह (अलैहिस्सलाम) के फरमांबरदारों के सिवा बाकी सबको पानी के अजाब यानी मशहूर तूफाने नूह भेज कर डुबो दिया।
खानदाने खलीलुल्लाह को अल्लाह तआला ने बुजुर्गी इनायत फरमाई। इसी खानदान में से हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हैं। इमरान के खानदान को भी उसने मुंतखब कर लिया। इमरान नाम है हजरत मरियम के वालिद साहब का जो हजरत ईसा (अलैहिस्सलाम) की वालिदा हैं। उनका नसब नामा बकौल मोहम्मद बिन इस्हाक यह है इमरान बिन हाशिम बिन मसा बिन खरकया बिन असीस बिन अयाज बिन रखीम बिन सुलेमान बिन दाऊद (अलैहिस्सलाम)। पस ईसा (अलैहिस्सलाम) भी हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की नस्ल से हैं।
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