पुलिस के एक आला अफसर ने ही मुल्क की पुलिस निज़ाम पर संगीन सवाल उठाये हैं। इंडियन पुलिस सर्विस के आंध्र प्रदेश कैडर के अपर पुलिस महानिदेशक सतह के अफसर विनय कुमार सिंह ने अपनी किताब ‘इज इट पुलिस?’ में लिखा है कि मुल्क की मौजूदा पुलिस निज़ाम सिर्फ हुकूमत और पैसेवालों के लिए ही है। हमारे पास दहशतगर्द और नक्सली तशद्दुद से निबटने के लिए कोई कारगर कानून नहीं है।
अगर किसी पुलिस अफसर ने अच्छा काम किया है और वह अपनी ईमानदारी के लिए याद किया जाता है, तो इसके पीछे मुल्क के मौजूदा कानून का हाथ नहीं, बल्कि उस शख्स की अपने सर्विस के फी अपनी ‘ग्लोरी’ के लिए है। मिस्टर सिंह ने यहां तक कहा, अगर मुल्क में पुलिस सिस्टम नहीं होता, तो देश की आवाम ज्यादा खुशहाल होती।
गरीब ही रहते हैं जेल में
मिस्टर सिंह ने कहा कि मैंने आंध्र प्रदेश के साथ-साथ बिहार में भी अपनी सर्विस दी हैं। लेकिन हमने पाया है कि पुलिस अक्सर उसी का साथ देती है, जिसे या तो हुकूमत का साथ हासिल है या फिर उनके पास पैसे की ताकत दस्तयाब है। उन्होंने कहा कि मैंने अपनी किताब में लिखा है कि जेलों में सिर्फ उन्हीं लोगों को लंबे वक़्त तक बंद रखा जाता है, जो गरीब तबके से ताल्लुक रखते हैं। पैसे और इक्तिदार हासिल लोगों को सजा मिलने के बाद भी जेल में रहने की जरूरत नहीं पड़ती। इस किताब ने मुल्क में पुलिसिंग की पूरी निज़ाम पर कई संगीन सवाल उठाये हैं। उन्होंने कहा कि अन्ना हजारे ने भी इस किताब का विमोचन करते हुए कहा था कि यह किताब उस पुलिस अफसर की रूह की आवाज है।
दहशतगर्द और उग्रवाद से लड़नेवाले कानूनों में भी सियासत
उन्होंने लिखा है कि दहशतगर्द और नक्सलवाद के लड़ने वाली ‘पोटा’ और ‘टाडा’ जैसे कई कानूनों का सियासी इस्तेमाल किया जाता है। इक्तिदार बदलने पर इन कानूनों का मतलब भी बदल दिया जाता है। इस किताब को लिखने के पीछे अपनी ज़ेहनीयत का खुलासा करते हुए मिस्टर सिंह ने कहा कि जब वे स्कूल में पढ़ते थे, तब उनके टीचर वालिद को कत्ल के एक झूठे मामले में फंसा दिया गया था। वालिद को जेल भी जाना पड़ा। बाद में सामाजिक तहरीक के आगे पुलिस निज़ाम को झुकना पड़ा और उनके वालिद को इंसाफ मिला। भोजपुर के संदेश थाना इलाक़े के अखगांव के रहनेवाले विनय कुमार सिंह 1987 बैच के आइपीएस हैं और उन पुलिस अफसरों में शामिल हैं, जिन्हें बिहार में एसटीएफ की तशकील का सेहरा जाता है। तब वे बिहार में काम कर रहे थे।