अच्छे दिन: व्यापम के बाद सामने आया BJP, RSS का एक बड़ा घोटाला

भोपाल। बीजेपी शासित मध्य प्रदेश में राज्य की सबसे अहम मानी जाने वाली भर्ती आयोग, मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) में बड़ा घोटाला सामने आया है। एमपीपीएससी द्वारा कुछ साल पहले उच्च शिक्षा विभाग में की गई प्रोफेसरों की सीधी भर्ती में भारी अनियमितता सामने आई है। इस घोटाले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम भी सामने आ रहा है।
आप को बता दें कि तीन साल पहले भी व्यापम घोटाले के रूप में एक बड़ा घोटाला सामने आया था।

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नेशनल दस्तक के अनुसार, यह घोटाला जनवरी 2009 में एमपीपीएससी ने उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसरों की भर्ती के लिए 385 पदों का विज्ञापन जारी किया था। इसके तहत प्रोफेसर पद पर सीधे साक्षात्कार के माध्यम से नियुक्ति की जानी थी। वर्ष 2011 के मध्य में यह प्रक्रिया पूरी हुई थी। भर्ती को लेकर समय-समय पर कई शिकायतें होती रहीं जिनको देखते हुए उच्च शिक्षा विभाग में आयुक्त कार्यालय द्वारा एक चार सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया था। उसी समिति ने हाल में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी है।

इस घोटाले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम भी सामने आरहा है। जिस समय यह भर्ती प्रक्रिया चली उस दौरान प्रोफेसर पीके जोशी मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष थे। उनका कार्यकाल 13 जून 2006 से 28 सिंतबर, 2011 तक था। आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि का माना जाता है। उच्च शिक्षा विभाग के सूत्र नाम न बताने की शर्त पर जानकारी देते हैं कि चयनित कई उम्मीदवार भी संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े हैं। इससे पहले व्यापम घोटाले में भी संघ से संबंधित लोगों के नाम आए थे। संघ के उच्च पदाधिकारियों पर आरोप लगे थे कि कई चयन उनकी सिफारिश के आधार पर हुए हैं।

जांच समिति ने भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी से जुड़े कई मुद्दे उठाए हैं। जांच समिति ने कहा है कि आयोग द्वारा विज्ञापन जारी होने तथा चयन हेतु साक्षात्कार पूरा करने के बाद अनुभव के बारे में जो स्पष्टीकरण जारी किया गया वह पूरी तरह नियम के विरुद्ध है। जांच समिति ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया के लिए साक्षात्कार होने के बाद अगस्त, 2011 में विज्ञापन में संशोधन जारी किया गया। नियमानुसार यदि संशोधन करना आवश्यक था तो पूरी प्रक्रिया निरस्त कर फिर से आवेदन मंगाए जाने थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

जांच समिति ने कहा कि उच्च शिक्षा विभाग के भर्ती नियमों के मुताबिक अनुभव योग्यताएं, जो पारंपरिक रूप से पदोन्नति के लिए भी स्वीकार की जाती हैं, से अलग योग्यताओं की व्याख्या या स्पष्टीकरण लोक सेवा आयोग द्वारा जारी किया गया। इससे स्पष्ट है कि चयन में भर्ती के लिए अलग मापदंड अपनाए गए। विज्ञापन जारी करते समय अनुभव योग्यताओं को स्पष्ट न किए जाने से बहुत से संभावित उम्मीदवारों को मौका नहीं मिल पाया।

जांच समिति ने रिपोर्ट में बताया कि सरकारी कॉलेजों में कार्यरत उम्मीदवारों द्वारा प्रस्तुत अनुभव प्रमाण पत्रों के अलावा जो अनुभव प्रमाण पत्र प्राप्त हुए हैं वे प्रारंभिक रूप से संदेहास्पद लगते हैं। अनुभव प्रमाण पत्रों की सत्यता की जांच सरकारी विश्वविद्यालय या कॉलेज से नहीं कराई गई। इसके अलावा उनकी पुष्टि के लिए संबंधित दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।

जांच समिति ने सवाल उठाया कि जिस विषय में पीएचडी नहीं है उसमें चयन न होकर किसी अन्य विषय में चयन किया गया। कुछ उम्मीदवारों का चयन पहले हुआ, पीएचडी की डिग्री उन्हें बाद में मिली। कुछ ऐसे उम्मीदवारों का चयन भी हुआ जिन्होंने स्कूल के संविदा शिक्षक के अनुभव का प्रमाण पत्र आवेदन में लगाया था। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशा-निर्देश के अनुसार प्रोफेसर पद के लिए चार साल का स्नातकोत्तर कक्षाओं में पढ़ाने का अनुभव अनिवार्य है। आयोग की इस भर्ती प्रक्रिया में इस नियम को सिरे से नकारा गया है।

आपको बता दें कि एक बार चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद शर्तों में किसी तरह के बदलाव नहीं होते। अगर ऐसा करना अनिवार्य हो तो पहले के आवेदनों को रद्द कर दोबारा आवेदन मंगाए जाते हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में नियुक्ति की पूरी कार्रवाई आयोग द्वारा संपन्न की गई और अनुभव प्रमाण पत्रों की जांच भी आयोग द्वारा ही की गई थी। आयोग द्वारा प्रस्तुत सूची के आधार पर उच्च शिक्षा विभाग ने चयनित उम्मीदवारों की नियुक्तियां की थीं। दरअसल यह पहली बार नहीं है जब मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग पर सवाल उठे हों। इसके पहले भी परीक्षाओं के पेपर लीक मामले में आयोग संदेह के घेरे में आ चुका है। वर्ष 2012 में आयोग द्वारा आयोजित एक परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद पूरी परीक्षा रद्द करनी पड़ी थी।