अजमल क़स्साब और अफ़ज़ल गुरु

अजमल क़स्साब को मुहालिफ़ दहश्तगर्दी कोर्ट की जानिब से 6 मई 2010 को फांसी की सज़ा दी गई । मुंबई हाईकोर्ट ने इस सज़ा पर फिर तसदीक़ सबत कर दी है ।

अजमल क़स्साब के वकील राजू रामचंद्रन को नवंबर 2011 तक अपनी सबुत मुकम्मल कर लेने की हिदायत दी गई और सुप्रीम कोर्ट में 31 जनवरी 2012 को इस की पेशी मुक़र्रर हुई ।

सुप्रीम कोर्ट के जज जनाब आफ़ताब आलम ने इंसाफ़ के तक़ाज़े की तकमील के लिए क़स्साब की दरख़ास्त पर ग़ौर करने पेश किया है । हुकूमत महाराष्ट्रा को ये शिकायत है कि इस को अब तक क़स्साब के केस में दस करोड़ का ख़र्च आया वो मज़ीद इस पर रुपया ख़र्च करने पर राज़ी नहीं है ।

अब सुप्रीम कोर्ट की मेहरबानी की बिना पर मज़ीद लाखों का ख़र्च इस्तिग़ासा को बर्दाश्त करने पड़ेगा । जहां तक इंसाफ़ के तक़ाज़ों की तकमील का मुआमला है अफ़ज़ल गुरु भी इंसाफ़ का मुस्तहिक़ है कि अदालत-ए-आलिया सिर्फ़ ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले को बहाल रखने के बजाय दोनों अदालतें वकील के ज़रीया अफ़ज़ल गुरु की सुनवाई करें ।

सिर्फ निचली अदालत के फ़ैसले पर अमल आवरी करना इंसाफ़ के तक़ाज़ों के ख़िलाफ़ बात है । दोनों मुजरिमों के साथ अलग अलग इंसाफ़ नाक़ाबिल फ़हम है । चूँकि पूरे दहश्तगर्द फायरिंग में हलाक हो चुके हैं । इस से क़स्साब पर वक़्त और पैसा ज़ाए करना मुनासिब नहीं है ।

अलबत्ता क़स्साब को एक यादगार बनाकर और चंद सालों तक ज़िंदा रखना है । पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से ताल्लुक़ात में कशीदगी जारी रहेगी जबकि अफ़्ग़ानिस्तान से हमारी फ़ौजी मुआहिदा हुआ है । इस की तकमील और अमल आवरी में पाकिस्तान की हिमायत और दोस्ती ज़रूरी है ।

हमारे आली अदालतों के जजस को इन तमाम उमूर का लिहाज़ रखना होगा । अफ़ज़ल के चेहरे की मासूमियत इस के करदा जुर्म पर पर्दा डाल देती है । अफ़ज़ल गुरु और क़स्साब से यकसाँ इंसाफ़ होना चाहीए ।