अज़ान , सिर्फ़ ऐलान ही नहीं , एक इबादत भी है

नुमाइंदा ख़ुसूसी एक नौ मुस्लिम से जब इस्लाम क़बूल करने की वजह दरयाफ़त की गई तो इस ने कहा कि मेरा मकान एक मस्जिद के करीब था , रोज़ाना पाँच वक़्त जब मैं अज़ान की दिलकश आवाज़ सुनता था तो मैं बेताब होजाता और मेरा दिल बिलकुल बेचैन होजाता था । मैं ने अपने एक मुस्लमान पड़ोसी से जब अज़ान के मानी मालूम किये तो इस की हक़्क़ानियत और दावत के अनोखे अंदाज़ की वजह से मैं ने हमेशा के लिए अपने आबाई दीन को ख़ैर आबाद कह कर इस्लाम को गले से लगा लिया । क़ारईन ! इसी एक दो नहीं सैंकड़ों मिसालें आप को मिलेंगी ।

इसी तरह पाकिस्तान में हिंदूस्तान सिफ़ारत ख़ाने के एक सफ़ीर ने बताया कि जब मैं पाकिस्तान में हिंदूस्तानी सिफ़ारत ख़ाने में अपने आला ओहदा पर फ़ाइज़ था तो बहुत अच्छी अच्छी प्यारी प्यारी और दिल मोह लेने वाली अज़ान की आवाज़ें सुनाई देती थीं मगर जब मैं हिंदूस्तान आया तो यहां की अजानों में वो बात नहीं पाई । क़ारईन !वाक़िया ये है कि इस्लाम में मोअज्जन के लिए कई सिफ़ात ब्यान की गई हैं ।

इलम और तक़वा व तहारत के साथ आवाज़ की ख़ूबसूरती और बुलंदी को भी मल्हूज़ रखा गया है कि मोअज्जन जहर अलसोत (यानी बुलंद आवाज़ )हो , चुनांचे जब हज़रत अबदुल्लाह बिन ज़ैद बिन अब्दुर रबह र अज़ान का ख़ाब देख कर हुज़ूर(स०अ०व०) को ख़ाब बताने आए तो आप(स०अ०व०) ने बजाय उन के हज़रत बेलाल र को अज़ान देने का हुक्म दिया और फ़रमाया कि बिलाल बुलंद आवाज़ हैं । इसी तरह ख़ाना काअबा की अज़ान के लिए आप (स०अ०व०) ने हज़रत अबु महज़ोरह र को मोअज्जन मुक़र्रर फ़रमाया था ।

क्यों कि इन की अज़ान की आवाज़ भी बहुत ख़ुशनुमा थी । इस के साथ मोअज्जन दीनदार और सालिह होना चाहीए । अहकाम दिनीयात , ख़सूसन अज़ान-ओ-नमाज़ के मसाइल , सुंनत , औक़ात नमाज़ का जानने वाला , बुलंद आवाज़ , ख़ुश अलहान , अज़ान के कलिमात सहीह अदा करने वाला होना चाहीए । हदीस में है कि तुम में जो सालेह हो वो अज़ान कहे ( अबोदाउद 96/1 ) फ़ी ज़माना कुछ मोज़नों में ये औसाफ़ मफ़क़ूद(ये सब बातें नहीं) हैं । बाअज़ औक़ात अज़ान के कलिमात कहीं दराज़ (लमबि)और कहीं मुख़्तसर कर के अज़ान की रूह ही निकाल दी जाती है ।

अज़ान सिर्फ़ ऐलान ही का नाम नहीं है बल्कि अज़ान इबादत भी है । मुहतमिम बिलशान इस्लामी शआर भी है । इस को इस को तरीका से अदा किया जाय ताकि इस्लामी शान मालूम हो और सामइन(सुनने वाले) के क़ुलूब मुतास्सिर और मुतवज्जा होँ और इस की बरकतें ज़ाहिर होँ । अज़ान का असर उस की तारीख और मोअज्जन के औसाफ़ के बाद अब हम आप को हैदराबाद की एक मशहूर-ओ-मारूफ़ मस्जिद की तरफ़ ले चलते हैं , जो शाही मस्जिद बाग़ आम्मा के नाम से शौहरत रखती है ।

इस मस्जिद के मोअज्जन साहब कुछ अर्सा क़बल उन की तबीअत बिगड़ जाने की वजह से उन की आवाज़ मुतास्सिर होगई । उन की ज़बान में इतनी लुकनत पैदा होगई जिस की वजह से अज़ान के कलिमात का शरई हक़ अदा करने से वो क़ासिर(मजबूर) होगए । इसी बिना पर वो लाउड स्पीकर पर अज़ान देने से परहेज़ करते हैं । जब हम ने मोअज्जन साहब से ख़ुद उन के बारे में जानने की कोशिश की तो उन्हों ने इस बात का एतराफ़ किया कि मैं दीनी तालीम से बिलकुल नावाक़िफ़ हूँ और तक़रीबन 14 साल से इस शाही मस्जिद में अज़ान देने की ख़िदमत अंजाम दे रहा हूँ ।

ये मस्जिद महिकमा अकलियती बहबूद के तहत है और मैं मिंजानिब महकमा इस का बाज़ाबता मोअज्जन मुक़र्रर किया गया हूँ । मेरी तनख़्वाह दस हज़ार नौ सौ (10,900) रुपये मुक़र्रर है । एक सवाल के जवाब में उन्हों ने कहा कि लाउड स्पीकर पर अज़ान ना देने का मतलब यही है कि मेरी आवाज़ आम लोगों की तरफ़ साफ़ नहीं है । अगर मैं लाउड स्पीकर पर अज़ान दूं तो एतराज़ात हो सकते हैं । इस वजह से मैं परहेज़ करता हूँ , हाँ मेरे वालिद मग़रिब , इशा और फ़ज्र की अज़ान लाउड स्पीकर पर देते हैं और वो महिकमा बर्क़ी के मुलाज़िम थे ।

मज़ीद इस सिलसिले में हम ने बाग़ आम्मा की शाही मस्जिद के मैनिजर से भी रब्त किया उन्हों ने क़बूल किया कि मोअज्जन साहब जो ज़ुहर-ओ-अस्र की अज़ान देते हैं कुछ अर्सा पहले वो किसी मर्ज़ में मुबतला हो गए थे जिस की वजह से आवाज़ में सफ़ाई ना रही और इसी बिना पर वो लाउड स्पीकर पर अज़ान नहीं देते । लेकिन कुछ मुस्लियों में इस की वजह से बे चैनी पाई जाती है । क़ारईन ! इस शाही मस्जिद में शहर के दूर दराज़ इलाक़ों से ख़ुसूसी तौर पर लोग नमाज़ पढ़ने आते हैं । हम किसी मुनासिब-वक़्त पर इस मस्जिद की ख़ुसूसियात और तारीख पर क़लम उठाएंगे ।

ताहम ये मालूम रहे कि इस मस्जिद का चांदी का मॉडल चौमुहल्ला प्यालीस , ख़लवत में एक शीशा के शोकेस में रखा हुवा है । और ये मस्जिद पहली सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ 13.811 गज़ ज़मीन पर वाक़ै थी और दूसरी सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ अब इस के तहत सिर्फ़ 10.449 गज़ ज़मीन है । माबक़ेआ 3.362 गज़ ज़मीन के बारे में ये अजीब उज़्र पेश किया गया कि ये अराज़ी (जमीन) बाग़ आम्मा और असेंबली रोड के लिए इस्तिमाल की गई है ।

क़ारईन ! बाग़ आम्मा की मस्जिद के मोअज्जन के बारे में शरई हुक्म जानने के लिए जब हम मशहूर दीनी दरसगाह जामिआ निज़ामीया से रुजू हुए तो हमारे सवाल के जवाब में जो फ़तवा जारी किया गया वो बीना आप की ख़िदमत में पेश है । इस के इलावाशहर में चंद मसाजिद एसी भी हैं जिन के मोज़न साहिबान का हाल भी कुछ एसा ही है ।

काश एसा होता कि मस्जिद कमेटी इस जानिब भी तवज्जा करती और उसे ख़ुश अलहान और तालीम याफ्ता मोअज्जन का तक़र्रुर करती जिन की आवाज़ सुन कर लोगों के क़ुलूब ख़ुदबख़ुद नमाज़ की तरफ़ माइल होते लोग मोअज्जन की आवाज़ की मिठास सुन कर मुतास्सिर होते क्या अपने क्या पराए सब अज़ान की आवाज़ से लुतफ़ अंदोज़ होते

और अज़ान की प्यारी आवाज़ सुन कर मुस्लमान बे इख़तियार अपने कारोबार बंद कर के अपने घरों से निकल कर रब कायनात के सामने रुकवा-ओ-सुजूद करने के लिए मसाजिद का रुख करते ।। !