अडवानी की एक और यात्रा

रिश्वत के ख़िलाफ़ अब तक कई जंगें लड़ी जा चुकी हैं। बी जे पी के सीनीयर लीडर अडवानी ने भी अनाहज़ारे की जंग से हौसला पाकर रिश्वत के ख़िलाफ़ ओमी बेदारी और बैरूनी मुल्कों में जमा काले धन को वापिस लाने के ले रथ यात्रा निकाली है। इस यात्रा के कई मक़ासिद हैं लेकिन सिर्फ दो मक़ासिद को इस लिए उजागर किया जा रहा है कि माबाक़ी मंसूबों को दौरान यात्रा मुनकशिफ़ करके हिंदूतवा नज़रिया पर अवाम के जज़बा को आज़माया जाए। अडवानी शायद इस यात्रा से ये देखना चाहते हैं कि माक़बल बाबरी मस्जिद शहादत और मलिक के सैकूलर ताने बाने को तबाह करने के लिए उन को कोशिशों का असर हनूज़ पाया जाता है या नहीं। बिहार की सड़कों से यात्रा को शुरू करने वाले अडवानी को अपनी है पार्टी के कई क़ाइदीन की नाराज़गी का सामना है। इन के हलक़ा लोक सभा गांधी नगर में यात्रा का नियम दिलाना ख़ैर मुक़द्दम किया गया । इन डी ए ने चीफ़ मिनिस्टर गुजरात नरेंद्र को वज़ारत अज़मी की दौड़ से दूर रखने के लिए अडवानी की जूतीयों को सीधा करते हुए अपना सैकूलर इमेज बरक़रार रखने की कोशिश की है। नतीश कुमार की रियासत में अडवानी की यात्रा माज़ी की यात्रा के बरअक्स है क्योंकि साबिक़ चीफ़ मिनिस्टर लालू प्रसाद यादव ने अडवानी को अपनी यात्रा समेत बिहार में क़दम रखने नहीं दिया था। गुज़श्ता 9 साल के अर्सा में मलिक के और रियास्तों के अवाम के ज़हन किस हद तक तबदील हुए हैं इस की जांच बी जे पी के लिए ज़रूरी है। लोक सभा इंतिख़ाबात में बी जे पी को एक ऐसा लीडर चाहैए जिस के नातवां काँधों पर वो अपने इक़तिदार का महल टहरा करने का ख़ाब देख सके। मुल्क में रिश्वत का चलन एक ख़तरनाक वाइरस की तरह हमला करचुका है। सयासी तग़य्युरात के बेशुमार मुज़िर असरात ने अब तक मुल्क में रिश्वत को एक वबा की तरह फैला दिया है। अडवानी भी जिस पार्टी की क़ियादत कररहे हैं वो कोई दूध की धुली नहीं है। इस के दौर-ए-हकूमत में भी इस के कई क़ाइदीन रिश्वत के इल्ज़ामात का सामना करचुके हैं बल्कि रिश्वत क़बूल करते हुए कैमरा की आँख में क़ैद हैं। अब रिश्वत के ख़ातमा लिए अडवानी की रथ यात्रा हिंदूतवा की बज़म से आने वाली ज़ाफ़रानी ख़बर की तरह कितने ही मक़ासिद रखती है। अहम तरीन बात ये है कि रिश्वत का मसला बी जे पी के लिए कब से नाज़ुक बन गया। इस के क़ाइदीन अगर रिश्वत से पाक हैं तो वो ये ज़ोअम से कह सकती है कि इस के सीनीयर लीडर ईल के अडवानी ने बहुत अच्छा क़दम उठाया है। बैरूनी बैंकों में जमा काले धन के वारिसों में बी जे पी के क़ाइदीन भी होसकते हैं। मलिक के आईन और क़ानून ने मख़सूस ज़ाबते बना रखे हैं तो हुकूमत इस से इस्तिफ़ादा करते हुए एक पाक-ओ-साफ़ नज़म-ओ-नसक़ फ़राहम करसकती है मगर जो भी पार्टी इक़तिदार का हिस्सा बनती है वो क़ानून और इंसाफ़ या दस्तूर को बालाए ताक़ रख कर काम करती है जिस के नतीजा में बदउनवानीयाँ, ख़राबियां और धांदलीयाँ रौनुमा होती हैं। अदालतों ने भी अब तक रिश्वत का फन कुचलने और रिश्वत ख़ोरों को अपने हाथ से दबोच लेने की कोई जुर्रत मंदी नहीं दिखाई। जिन लोक पाल के ज़रीया रिश्वत का ख़ातमा करने की कोशिश करने वाले अना हज़ारे की तहरीक से हौसला लेने वाले अडवानी और उन की पार्टी पार्लीमैंट में दोहरा मयार रखती है। रिश्वत के नाम पर अनाहज़ारे को इस्तिमाल करते हुए ज़ाफ़रानी नज़रिया चलाने की ये कोशिश बहरहाल मुल्क में कामयाब नहीं होसकेगी। अडवानी जिन चैतन्या यात्रा का नाम दे कर जनता को बेदार करने में कामयाब नहीं हो सकें गी। सफ़ाफ़ सुथरी सियासत और अच्छी हकरानी का नारा सुनाई देने में बेहतर है अमली इक़दाम बहुत मुश्किल है। सियासत में दौलत की ताक़त का इस्तिमाल है आज सियासतदां की कामयाबी की अलामत समझा जाता है तो दौलत के ज़रीया पैदा होने वाली ख़राबियों के कई भयानक शक्ल उभरते हैं। बिलाशुबा मुल़्क की बक़ा और इस्तिहकाम अमन-ओ-अमान गुड गवर्नैंस क़ानून की अमलदारी और आईन की बालादस्ती से मशरूत है। अगर ये ना होतो कोई भी हुकूमत हो वो अपने मक़ासिद और मंसूबे बरुए कार लाने में नाकाम हो जाएगी। अडवानी भी इक़तिदार की ज़िम्मेदारीयों से गुज़रे हैं। उन्हें अच्छी तरह अंदाज़ा है कि एक गुड गवर्नैंस के लिए हुकूमत के लिए किया इक़दामात अंजाम देने होते हैं। अडवानी ने अपनी जिन जनता यात्रा को जुए प्रकाश नारायण के नज़रियात और सयासी पार्टीयों की इफ़ादीयत से मुताल्लिक़ उन के एहसास के आईना में निकालने का फ़ैसला किया उन के ज़हन में अना हज़ारे के ख़्यालात भी मौज बन कर उठ रहे हैं। मगर वो अना हज़ारे के मुतालिबा हक़ तलबी या हक़ इस्तिर्दाद से इख़तिलाफ़ रखते हैं। मुजरिमाना अनासिर का पता चलाने के लिए इंतिख़ाबी इस्लाहात की ज़रूरत ज़ाहिर की गई है मगर इस मक़सद की तकमील के लिए हौसला चाहीए और ये हौसला सयासी पार्टीयों में मस्लिहत की नज़र हुआ है। मलिक और अवाम की ख़िदमत का अगर हक़ीक़ी जज़बा होतो जहां दिल में दर्द होता है वहां आँख में अशक भी होता है मगर हमारी सयासी पार्टीयां मगरमच्छ के आँसू बहाने में मलिका रखती हैं। रिश्वत के ख़िलाफ़ क़वानीन तो हैं इस पर अमल आवरी के लिए दयानतदाराना जज़बा का फ़ुक़दान है। सयासी पार्टीयों में जो सब से बड़ा नुक़्स ये है कि ये पार्टीयां एक दूसरे के इक़तिदार को बेदखल करने के लिए दिन रात कोशां रहती हैं। ख़ुद तो शफ़्फ़ाफ़ और साफ़ सुथरा सियासतदां देने के काबिल नहीं हैं मगर एक गुड गवर्नैंस का नारा दे कर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करलेते हैं। हक़ीक़त ये है कि रिश्वत या काले धन की बातें मलिक के अवाम को बेवक़ूफ़ बनाने की लिए की जा रही हैं। हैरत है कि मलिक का बाशऊर शहरी उन के झा नसों में आजाता है।