नई दिल्ली, 03 अप्रैल: (पी टी आई) सुप्रीम कोर्ट ने इलहाबाद हाईकोर्ट के इस हुक्म के ख़िलाफ़ सी बी आई की जानिब से अपील दाख़िल करने में ताख़ीर पर सवाल किया है जिस (हुक्म) में कहा गया था कि बाबरी मस्जिद इन्हिदामी मुक़द्दमा में बी जे पी लीडर एल के अडवानी और दूसरों पर साज़िश का इल्ज़ाम लागू नहीं हो सकता। जस्टिस एच एल दत्तू की क़ियादत में इस बंच ने ये महसूस करने के बाद कि महज़ एक क़ानूनी अफ़्सर (ला ऑफीसर) के सबब सी बी आई हलफनामा दाख़िल करने में 167 दिन की ताख़ीर हो चुकी है।
हिदायत की कि मर्कज़ी हुकूमत के किसी भी ऑफीसर की जानिब से अंदरून दो हफ़्ते हलफनामा दाख़िल किया जाये। अदालत-ए-उज़्मा के क़ब्लअज़ीं जारी करदा अहकाम की मताबात में बाबरी मस्जिद मुक़द्दमा की तमाम तफ़सीलात अदालत में पेश किया। जिस में इस्तिदलाल पेश किया है कि इलहाबाद हाइकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर की जाने वाली अपील का मुसव्वदा सॉलीसिटर जनरल और एडीशनल सॉलीसिटर जनरल से क़ानूनी राय लेने के लिए उन से रुजू कर दिया गया है जो वहां ज़ेर-ए-ग़ौर रहने के सबब अपील दायर करने में ताख़ीर हो रही है।
जिस पर बंच ने कहा कि सॉलीसिटर जनरल की तरफ़ से ये ताख़ीर हो रही है चुनांचे ताख़ीर की वजह समझने के लिए हमें मुताल्लिक़ा शख़्स की तरफ़ से हलफनामा पेश किया जाना चाहीए। अदालत-ए-उज़्मा ने सीनीयर ला ऑफीसर की जानिब से हलफ़नामा हासिल करने के लिए सी बी आई को दो हफ़्तों की मोहलत देते हुए कहा कि आप के मुफ़ाद में बेहतर यही होगा कि हलफनामा दाख़िल कर दिया जाएगा।
ताहम बंच ने अपने अहकाम में उस अफ़सर का हवाला नहीं दिया जिस को ये हलफनामा दाख़िल करना होगा और सिर्फ़ ये कहा कि सीनीयर ला अफ़सर की जानिब से हलफनामा दाख़िल किया जाये। अदालत-ए-उज़्मा सी बी आई की उस अपील की समाअत कर रही है जिसमें इलहाबाद हाईकोर्ट और सी बी आई की ख़ुसूसी अदालत के फ़ैसलों के ख़िलाफ़ इसलिए चैलेंज किया गया है कि इन में अडवानी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार और मुरली मनोहर जोशी के ख़िलाफ़ साज़िश के इल्ज़ामात को ख़ारिज कर दिया गया था।
सतीश प्रधान, सी आर बंसल, अशोक सिंघल, गिरी राज , साध्वी रथमबरा, विष्णु हरी डालमिया, महंत आर्या यदुनाथ, आर वेदांती, परमहंस राम चंद्रा दास, जगदीश मनी महाराज, बी एल शर्मा, नरेंद्र गोपाल दास, धर्म दास, सतीश नागर और मोरेश्वर सादे के ख़िलाफ़ आइद इल्ज़ामात को भी वापस ले लिया गया था।
इलहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सी बी आई ने 21 मई 2010 को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था। जिस ने बाअज़ क़ाइदीन के ख़िलाफ़ इल्ज़ामात हज़फ़ करने सी बी आई की ख़ुसूसी अदालत के फ़ैसले को जायज़ क़रार दिया था। ताहम हाईकोर्ट ने उस वक़्त सी बी आई को अडवानी और दूसरों के ख़िलाफ़ राय बरेली की अदालत में दीगर इल्ज़ामात के तहत मुक़द्दमा जारी रखने की इजाज़त दी थी। मई 2010 में हाईकोर्ट के हुक्म में कहा गया था कि अडवानी, जोशी और दूसरों के ख़िलाफ़ मुजरिमाना साज़िश के इल्ज़ामात को हटाने के लिए सी बी आई की ख़ुसूसी अदालत की तरफ़ से की गई हिदायत पर नज़रेसानी के लिए सी बी आई की दरख़ास्त का कोई मुस्तहकम जवाज़ नहीं है।
यहां ये बात काबिल ए ज़िक़्र है कि दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद की शहादत के दो मुक़द्दमात हैं। एक अडवानी और दूसरों के ख़िलाफ़ है जो इस मौक़े पर अयोध्या में राम कथा कुंज के शहि नशीन पर मौजूद थे। दूसरा मुक़द्दमा लाखों नामालूम कारसेवकों के ख़िलाफ़ है। क़ब्लअज़ीं सी बी आई ने बाबरी मस्जिद की इन्हिदामी के मुक़द्दमा में अपना हलफ़नामा दाख़िल करते हुए इस्तिदलाल पेश किया था कि अडवानी और दूसरों ने क़ौमी ओ मुल्क के ख़िलाफ़ जुर्म का इर्तिकाब किया है।
जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सी बी आई की सख़्त सरज़निश करते हुए कहा था कि जब तक अदालतें कोई फ़ैसला नहीं करतीं, सी बी आई को ऐसी ज़बान और अलफ़ाज़ इस्तेमाल नहीं करना चाहीए। जस्टिस दत्तू की क़ियादत में बंच ने कहा था कि अज़राह-ए-करम आप इस को क़ौमी जुर्म या क़ौमी अहमीयत का हामिल मसला क़रार ना दीजिए क्योंकि इस के बारे में फ़ैसला करने के लिए हम यहां बैठे हैं।