अडवानी-मोदी में टकराव

बी जे पी में इन दिनों दरार की कैफ़ीयत उभर रही है। 1990 में मुल्क को फ़िर्कापरस्ती की आग में झोंकने के लिए यात्राएं निकालने वाले पार्टी के सीनीयर लीडर एल के अडवानी और गुजरात के मुस्लिम कश फ़सादाद के ज़रीया सैक़्यूलर हिंदूस्तान की पेशानी को दागदार करने वाले नरेंद्र मोदी में इख्तेलाफ़ात ने इस पार्टी की कम नसीबी पर एक और मुहर सबुत कर दी है।

बी जे पी को कभी अपने नज़रिया और डिसिप्लीन पर काफ़ी ज़ोअम ( अभिमान) था, अब ये पार्टी ग़ौर-ओ-फ़िक्र, तदबीर गिरी ( होशियारी) और इसलाह-ए-अहिवाल के लमहात से दूर होती नज़र आरही है। बी जे पी की अहल दानिश ( योग्य और ज्ञानी) समझी जाने वाली तंज़ीम आर एस एस भी इस पार्टी को दो टुकड़े होने से बचाने में कामयाब ना हो सके तो फिर इन क़ाइदीन की तर्जीहात को एहमीयत हासिल हो जाएगी जो मुल्क पर हुकूमत करने का ख़ाब देख कर गुजरात से दिल्ली तक छलांग लगाने की फ़िराक़ में हैं।

अडवानी और सुषमा स्वराज को मोदी से चिड़ हो गई है, इसलिए उन्हें पार्टी के वक़ार (मान मार्यादा) की पासबानी और निगहबानी की इतनी फ़िक्र नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी। बी जे पी के क़ाइदीन, ऐसा मालूम होता है कि इस कमसिन गल्लाबान ( चरवाहा/ गड़ेड़िया) की तरह भी नहीं हैं जो अपनी भेड़ बकरीयों की हिफ़ाज़त-ओ-निगरानी के लिए सारा दिन चौकस रहता है।

फ़िर्कापरस्ती का जज़बा रखने वाले, मुस्लिम दुशमनी के बीज बोने वालों को दिल्ली की सयासी मौज मेले से दिलचस्पी होने लगी है तो पार्टी का तंज़ीमी ढांचा खोखलेपन का शिकार हो जाएगा। अरूण जेटली, नितिन गडकरी या दीगर क़ाइदीन ( लीडर) पार्टी के नौजवान कैडर को ग़लत पयाम पहुंचा रहे हैं। चीफ़ मिनिस्टर गुजरात नरेंद्र मोदी की जुमा को दिल्ली आमद और साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म अटल बिहारी वाजपाई से मुलाक़ात से वाज़िह होता है कि बी जे पी की आला क़ियादत के अंदर इख़तिलाफ़ात को हवा मिल चुकी है।

नरेंद्र मोदी दिल्ली को प्लानिंग कमीशन के इजलास ( सभा) में शिरकत के लिए पहूंचे थे मगर उन्हों ने 2014 के लोक सभा इंतिख़ाबात ( चुनाव) के लिए बी जे पी के वज़ारत-ए-उज़्मा के उम्मीदवार के तौर पर ख़ुद को पेश करने की कोशिश की इन की अटल बिहारी वाजपाई से मुलाक़ात उस वक़्त हुई जब बी जे पी तर्जुमान कमल संदेश ने चीफ़ मिनिस्टर गुजरात पर शदीद तन्क़ीद की।

मोदी अटल बिहारी वाजपाई से मुलाक़ात के बाद अडवानी से मुलाक़ात के लिए रवाना हुए। बी जे पी के अंदर अडवानी के ब्लॉग में तहरीर कर्दा बाज़ सवालात मौज़ू बहस बन गए हैं। पार्टी की गुज़शता 6 माह की कारकर्दगी से नाख़ुश अडवानी आर एस एस से भी नाराज़ हैं क्यों कि आर एस एस ने नीतिन गडकरी को बी जे पी के सदर की हैसियत से दूसरी मीयाद की राह हमवार की थी।

अडवानी को ग़ुस्सा इस बात पर है कि इनके एतराज़ के बावजूद आर एस एस ने गडकरी को ही पार्टी का सदर बनाया। वो नरेंद्र मोदी को भी मज़ीद ताक़तवर लीडर बन कर उभरते देखना नहीं चाहते। जसवंत सिंह को एन डी ए के वज़ारत-ए-उज़मा (महामंत्री) उम्मीदवार के तौर पर पेश करने की इत्तिलाआत के दरमयान अडवानी और मोदी के इख़तिलाफ़ात के तनाज़ुर में बी जे पी के दाख़िली मसाएल और मुसबत-ओ-मनफ़ी पहलू पर तवज्जा दिए बगै़र पैदा होने वाली मुफ़ाद परस्ती की सूरत-ए-हाल शिकायतों का पीटारा खोल देगी।

अपनी सफ़ में इत्तिहाद ( एकता) पर फ़ख़र करने वाली पार्टी मायूसी, महरूमी, नाकामी, शिकस्त और हार के बाइस (सबब/ कारण) आसाब ज़दगी से दो-चार हो चुकी है। अडवानी को अपनी फ़िक्र और दानिश्वरी पर फ़ख़र था तो मोदी अपनी हुक्मरानी को सलाहीयतों और मुस्लिम दुशमनी के ज़रीया हिन्दू राय दहिंदों को हामी बनाने की सलाहीयतों पर उतराते हैं तो बी जे पी को बचाने की किसी को भी फ़िक्र नहीं है।

कल तक ज़ाती मुफ़ादात से ज़्यादा पार्टी या तंज़ीम को सुप्रीम समझने वाले मुनक़सिम ( बँट/ विभाजित) हो रहे हैं तो पार्टी वर्कर्स भी बे समिति का शिकार होंगे।बी जे पी का ये ज़ोअम (अहंकार/ घमंड) अब ख़त्म हो चुका है कि वो पाबंद ए डिसीप्लीन पार्टी है। इसका सुबूत ख़ुद बी जे पी क़ियादत ने फ़राहम कर दिया और ये ना सिर्फ बी जे पी के लिए बल्कि उसकी हमनवा हिन्दू फ़िर्क़ा परस्तों तंज़ीमों ( संस्थाओं) के लिए भी बाइस ए तशवीश है।

मुल्क के मौजूदा हालात में जहां अवाम मौजूदा कांग्रेस ज़ेर-ए-क़ियादत यू पी ए हुकूमत से नालां हैं , वहीं एक मख़सूस तबक़ा जो बी जे पी को मुतबादिल ( अदल बदल होने वाला) के तौर पर देख रहा था , वो भी मायूसी का शिकार हो चुका है। अडवानी ने अपने ब्लॉग में यही हक़ीक़त पर मबनी तब्सिरा किया है जो ख़ुद बी जे पी के दाख़िली हलक़ों के लिए नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त बन चुका है।

पार्टी क़ियादत में जारी आपसी बोहरान ऐसा लगता है कि बी जे पी को ले डूबेगा । इन दिनों क़ौमी सतह पर सयासी हलक़ों में अडवानी का वो ब्लॉग मौज़ू बहस बना हुआ है जिस में उन्होंने बाअज़ चुभते हुए सवाल उठाए हैं। यू पी के इंतिख़ाबात में पार्टी की शिकस्त बी एस पी से बरतरफ़ शूदा वज़ीर का बी जे पी में ख़ौरमक़दम करने और झारखंड-ओ-कर्नाटक में रिश्वत सतानी सूरत-ए-हाल से निमटने में पार्टी में सलाहीयतों का भी सवाल उठाया गया है।

अडवानी की खरी खरी से बी जे पी की सफ़ों में खलबली मची हुई है तो वो क़ौमी इक़तिदार (शासन) से महरूमी के अपने 8 साल पर मातम करने के साथ साथ फूट की कैफ़ीयत से दो-चार होने का ग़म भी पार्टी को मज़ीद बे समिति का शिकार बना देगा, और पार्टी के तंज़ीमी ढांचा का पूरा निज़ाम शख़्सियत परस्ती की वजह से मज़ीद अबतर हो जाएगा।

अब देखना ये है कि मोदी और अडवानी के टकराव से पैदा होने वाले हालात के दरिया का रुख क्या होता है।