तक़सीम हिंद के बाद 1947 में पंजाब के बेशतर ( ज़्यादातर) मुसलमान या तो पाकिस्तान हिजरत (बस गये) कर गए यह उन्हें हलाक कर दिया गया। रियासत पंजाब में मुसलमानों के मदारिस ( मदर्से), मसाजिद ( मस्जिदें) और दीगर (दूसरे) इमलाक (मुल्क) पर मुक़ामी हिंदुओं ने क़ब्ज़ा कर लिया था।
मुतअद्दिद (बहुत से) मसाजिद को गुरुद्वारों में तब्दील (बदल)कर दिया गया, लेकिन ये एक अच्छी बात है कि गुज़श्ता (पिछले) पाँच दहाईयों के दौरान पंजाब वक़्फ़ बोर्ड ने मक्बूज़ा मसाजिद के कई मुआमलात ( मामलों)पर कामयाबी हासिल की है, लेकिन जो बात ख़ुश यायन्द कही गई है, वही बात मायूस कुन ( निराश) इस लिए है कि अदालतों में कामयाबी के बावजूद मुस्लमानों ने गैरकानूनी तौर पर क़ाबिज़ (हिंदुओ) से अपनी इम्लाक को हनूज़ (अभी तक) हासिल नहीं किया है।
ऐसी ही एक मस्जिद ज़िला पटियाला नाभा सब डिवीज़न के आपो आप नामी इलाक़ा में वाक़्य है। मज़कूरा मस्जिद पर तक़्सीम हिंद के बाद क़ब्ज़ा कर लिया गया था, लेकिन पंजाब वक़्फ़ बोर्ड ने मस्जिद पर गैरकानूनी क़ाबिज़ (कब्ज़ा करने वाला) जितेंद्र कुमार बंसल के ख़िलाफ़ नाभा की सियोल कोर्ट में मुक़द्दमा जीत लिया था।
ये 1968 की बात है जिस के बाद गैरकानूनी क़ाबिज़ (कब्ज़ा) ने अदालत के फैसला को पटियाला के एडीशनल डिस्ट्रिक्ट जज की अदालत में चैलेंज किया था, लेकिन 1969 में इसे दुबारा शिकस्त ( हार) का मुंह देखना पड़ा। यहां ये बात काबिल-ए-ज़िकर है कि आपो आप इलाक़ा में चूँकि मुसलमानों की तादाद ( संख्या) क़लील ( कम) है और पटियाला इंतिज़ामीया की जानिब से भी कोई ख़ास तआवुन ( मदद) नहीं है।
लिहाज़ा सूरत-ए-हाल ये है कि वक़्फ़ बोर्ड मुक़द्दमा जीतने के बावजूद आज तक मस्जिद पर अपना कंट्रोल ( नियंत्रण) हासिल नहीं कर सका है। दरें असना 2004 में शदीद बारिश के बाद मस्जिद का एक हिस्सा मुनहदिम (ध्वस्त/ गिरा देना) हो गया, जिस के बाद गैरकानूनी क़ाबिज़ शख़्स ने पूरी मस्जिद को ही मुनहदिम ( गिरा देना) कर दिया जिस का मलबा आज तक वहां पड़ा हुआ है।
जब जब मुक़ामी मुसलमानों से मनहदमा मस्जिद ( गिरायो हुई मस्जिद) को दुबारा तामीर ( निर्माण)करने की कोशिश की तो गैरकानूनी क़ाबिज़ हिन्दू शख़्स ने अपने कुछ साथियों के साथ उन्हें डरा धमकाकर मस्जिद की तामीर नौ ( नये)से बाज़ रखा।
यही नहीं बल्कि मुसलमानों की दीगर ( दूसरे/अन्य) इमलाक ( मुल्क़/ देश) भी इस वक़्त मुक़ामी हिंदुओ के क़ब्ज़े में हैं।