(मौलाना महमूद आलम कासमी ) इंसानी समाज की तरक्की में जिस चीज को सबसे ज्यादा अहमियत हासिल है वह है अद्ल व इंसाफ का कयाम। अल्लाह तआला ने कुरआने करीम में इंसान को इंफिरादी तौर पर अद्ल व इंसाफ पर रहने की ताकीद फरमाई है और इज्तिमाई तौर पर पूरे समाज पर अद्ल व इंसाफ के कयाम की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
मजीद अहले हुकूमत की बुनियादी जिम्मेदारियों में कयामे अद्ल व इंसाफ शामिल किया गया है। अल्लाह तआला ने बिला किसी इम्तियाज तमाम लोगों के साथ अद्ल व इंसाफ का बर्ताव करने की हिदायत दी है। अल्लाह का इरशाद है- सबसे पहले अद्ल व इंसाफ का हुक्म दिया। जिससे खुद इसकी अहमियत का पता चलता है।
अद्ल व इंसाफ करने वालों को अल्लाह अपना महबूब बनाते हैं। यह कितना बड़ा एजाज है जो एक शख्स को अद्ल व इंसाफ करने की वजह से नसीब होता है। कयामे अद्ल व इंसाफ का अंबिया की बअसत के अहम मकासिद में शुमार किया गया है।
कुरआने मजीद में है कि यकीनन हमने अपने रसूलों को खुली दलीलें देकर भेजा और उनके साथ किताब और मीजान नाजिल किया ताकि लोग अद्ल व इंसाफ पर कायम रहें। (सूरा हदीद)
अल्लाह तआला सिर्फ इंफिरादी जिंदगी में अदल व इंसाफ के तकाजों को पूरा करने की तालीम नहीं देते बल्कि वह अपने मानने वालों को इस बात की खास ताकीद करते हैं कि वह इज्तिमाई जिंदगी में पूरी संजीदगी के साथ अद्ल व इंसाफ के उसूलों को बरतें ताकि जुल्म व ज्यादती का खात्मा हो, मेल जोल व प्यार व मोहब्बत के जज्बात परवान चढ़ें अमन व सुकून की फजा कायम हो, हर तरफ अम्न व शांति की हवाएं चलें।
इंसान को अद्ल व इंसाफ से रोकने और जुल्म व जोर में मुब्तला करने के आदतन दो सबब हुआ करते हैं। एक अपने नफ्स या अपने दोस्तों, अजीजों की तरफ दारी, दूसरे किसी शख्स की दुश्मनी व अदावत। इसीलिए अल्लाह ने सूरा निसा की आयत नम्बर पैंतीस में फरमाया कि ऐ ईमान वालों! अद्ल व इंसाफ पर कायम रहो चाहे वह अद्ल व इंसाफ का हुक्म खुद तुम्हारे नफूस या तुम्हारे वाल्दैन और अजीजों दोस्तों के खिलाफ पड़े, उनकी परवा न करो।
हकीकत में इंसान उस वक्त बड़ी आजमाइश में मुब्तला होता है और नफ्स के बहकावे का बुरी तरह शिकार होता है जब अद्ल व इंसाफ कायम करने में अपना नुक्सान नजर आए या अपने घर वालों, रिश्तेदारों दोस्तों का जाती-करीबी लोगों के फायदा, माल व दौलत की हवस व लालच, किसी दौलतमंद या साहबे मंसब की रियायत में बड़ी आसानी से इंसाफ के उसूलों को ताक पर रख दिया जाता है, अद्ल के तकाजों को तोड़ दिया जाता है जिसके नतीजे में आपस में इख्तिलाफ पैदा होता है, नफरत व मुखालिफत का माहौल गर्म होता है, अम्न व सुकून गारत होता है।
यही वजह है कि कुरआन जगह जगह अद्ल व इंसाफ की तालीम देता है और इस बात की ताकीद करता है कि जाती, घरेलू व गरोही मफाद की परवा किए बगैर किसी किस्म के फायदे का ख्याल किए बगैर सबके साथ मुंसिफाना बरताव किया जाए।
इसमें अमीर व गरीब, ऊंच-नीच, ताकतवर व कमजोर, अपने व गैर किसी की भी किसी तरह की रियायत न की जाए। अदल व इंसाफ से रोकने में दूसरा सबसे बड़ा सबब किसी की अदावत व दुश्मनी होता है। इसलिए अल्लाह तआला ने फरमाया कि ऐ ईमान वालों! अल्लाह पाक के लिए पूरी पाबंदी करने वाले और अद्ल के साथ शहादत देने वाले रहो और किसी जमाअत की दुश्मनी तुम्हें इस पर आमादा न कर दे कि तुम (उसके साथ) इंसाफ ही न करो, इंसाफ करते रहो वह तकवा से बहुत करीब है और अल्लाह से डरते रहो, बेशक अल्लाह को इसकी पूरी खबर है कि तुम क्या करते रहे हो।
(सूरा मायदा) अल्लाह तआला ने इस आयत में इस बात की ताकीद की है कि कौम की अदावत व दुश्मनी तुम्हें इस पर आमादा न कर दे कि तुम अद्ल व इंसाफ के खिलाफ करने लगो। अद्ल व इंसाफ के कयाम के सिलसिले में किसी दुश्मन की दुश्मनी की वजह से लगजिश नहीं होनी चाहिए बल्कि दुश्मनों और मुखालिफों के साथ भी इंसाफ का पूरा पूरा हक अदा किया जाए और इसके तकाजों को पूरा करने में किसी की अदावत व दुश्मनी, मुखालिफत बीच में हायल न होने दिया जाए।
वाक्या यह है कि कुरआने करीम की इस तालीम को अगर लोग अमली जामा पहनाएं चाहे वह किसी मजहब व फिरके से ताल्लुक रखता हो, रोजमर्रा की जिन्दगी में लोगों से बरताव, उनसे ताल्लुकात, मामलात, लेन-देन, मुकदमात के हल में अद्ल व इंसाफ के तकाजों को पूरा करें तो मुखालिफत व नफरत, मोहब्बत व हमदर्दी में बदल जाएगी।
दुश्मनी दोस्ती में तब्दील हो जाएगी, टूटे हुए रिश्ते जुड़ जाएंगे, बंदो के आपसी ताल्लुकात मजबूत व मुस्तहकम होंगे। इंसानी हुकूक को तहफ्फुज मिलेगा समाज को अम्न व इंसाफ नसीब होगा, जुल्म व ज्यादती का खात्मा होगा, प्यार व मोहब्बत के जज्बात परवान चढेंगे।
मशहूर अब्बासी खलीफा अबू जाफर मंसूर एक साल हज के लिए मक्का मुकर्रमा में मुकीम था। एक रात तवाफ के दौरान उसने देखा कि एक शख्स मुल्तजिम के पास खड़ा यह दुआ कर रहा है-या अल्लाह! मैं इस वक्त आलम में बरपा फितना व फसाद और जुल्म व तमाअ के लिए तुझसे फरियाद करता हूं जिसके बाइस हकदारों की हकतलफी हो रही है। तवाफ से फारिग होकर अबू जाफर ने उस शख्स से दरयाफ्त किया कि तुम अभी क्या दुआ मांग रहे थे? कौन जुल्म करता है? और कौन फसाद पैदा कर रहा है? उस शख्स ने कमाले जुर्रत का इजहार करते हुए कहा-वह आप ही है जनाब। वह आप ही हैं, जिसने जुल्म व फसाद बरपा कर रखा है।
आप ही की हिर्स व लालच ने सबको तबाह कर रखा है, किसी हकदार को उसका हक नहीं मिल रहा है। यह तुम क्या कह रहे हो? खलीफा मंसूर ने हैरत से पूछा। खजाना मेरे पास है। ऐश व इशरत का सामान मेरे लिए मुहैया है। मुझको जुल्म व तमाअ से क्या वास्ता? अमीरूल मोमिनीन आपसे बढ़कर जालिम कौन होगा? वह हक परस्त फिर हिम्मत के साथ बोला-अल्लाह ने मुसलमानों की खिदमत और हिफाजत आपके सुपुर्द की मगर आप ऐश कोशी में मुब्तला है,
मुसलमानों का माल छीन छीन कर जमा कर रहे हैं, कस्र खिलाफत पर दरबान मुकर्रर है गरीब और मजलूम आप तक नहीं पहुंच सकते, आप का यह रंग देखकर वजीर और मुसाहिबीन ने आफत मचा रखी है। आप के जेरे साया रिश्वत और जुल्म का बाजार गर्म है।
अमीरूल मोमिनीन आप का ताल्लुक खानदाने नबुवत से है, फिर भी आप मुसलमानों पर जुल्म रवा रखे हुए हैं, बैतुलमाल का खजाना आप अपने लिए जमा करते हैं, खुदा के हुजूर में आखिर आप क्या जवाब देंगे?
खलीफा मंसूर गिड़गिड़ाते हुए बोला-तो आखिर मैं क्या करूं? उलेमा व सलहा ए उम्मत से इस्तआनत कीजिए। हक परस्त का दो टूक और मुख्तसर सा जवाब था। वह लोग मुझसे दूर रहना चाहते हैं। खलीफा पर गिरिया तारी हो गया। वह लोग आपसे इसलिए दूर रहना चाहते हैं कि कहीं आप उनको भी अपने जुल्म में शरीक न कर लें।
उस हक परस्त ने पूरी जुर्रत के साथ खलीफा को मुखातिब किया। आप खतरा दूर कर दें। अहले दीन आपके मआविन व शरीक हो जाएंगे।
गरज कि आज दुनिया में इंसानों के बनाए हुए जो निजाम पाए जाते है चाहे वह शख्सी हो या जमाअती अखलाकी हों या सियासी, इक्तेसादी हों या समाजी, फलसफी के बनाए हुए हों या सियासतदानों के, उनमें हर जगह खुदगरजी, खामी, फितना व फसाद, जुल्म हलाकत व बर्बादी नशो व नुमा पा रही है और वह महज इस वजह से कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के लाए हुए खुदाई निजाम के तहत वह निजाम नहीं बनाए गए हैं और उसकी रौशनी से इनमें इस्तफादा नहीं किया गया है।
इसके बरअक्स आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का लाया हुआ निजाम ऐसा सादा साफ-सुथरा इंसानी फितरत के ऐन मुताबिक इंसानी हमदर्दी व मोहब्बत, अद्ल व इंसाफ, अम्न व सुलह और खुशहाली से भरपूर और अगराज परस्ती और दूसरों की दुश्मनी व रकाबत जुल्म व बगावत व नाफरमानी से पाक व साफ है इसमें ऊँच-नीच, शराफत व रिजालत, काले कोरे, कौम व मुल्क का कोई इम्तियाज नहीं बल्कि पूरा निजाम रहमत व शफकत, अम्न, ईसार व कुर्बानी, कमजोरों की खबरगीरी और खैर ख्वाही से भरा हुआ है और इंसानों के लिए हकीकी उरूज व तरक्की की रूह उसमें कूट कूट कर भरी हुई है, रूहानी तर्बियत, अखलाकी तरक्की, खालिक व मखलूक के बीच ताल्लुकात गरज इसमें हर चीज की रियायत की गई है।
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का इरशाद है कि इंसाफ करने वाले आल्लाह तआला के दाहिनी तरफ नूर के मिबरो पर होंगे। (बुखारी)
एक हदीस में है कि खुदा की मखलूक बमंजिला अयालके है जो शख्स अल्लाह के अयाल पर एहसान करेगा वह खुदा के यहां सबसे ज्यादा महबूब होगा। (बेहकी) एक रिवायत में है कि जो लोग दूसरे लोगों पर रहम करते हैं अल्लाह तआला उनपर रहम करता है, तुम लोग जमीन वालों पर रहम करो, आसमान वाला तुम पर रहम करेगा। (तिरमिजी)
इसके बरखिलाफ जुल्म करने वालों की बावत फरमाया कि जिसने किसी गैर मुस्लिम रियाया को कत्ल कर दिया तो उसको जन्नत की खुशबू भी न मिलेगी। (बुखारी) एक जगह फरमाया कि किसी गैर मुस्लिम रइयत पर अगर किसी ने जुल्म किया या उसकी तौहीन की या उसे ताकत से ज्यादा तकलीफ दी या उससे उसकी खुशी के बगैर कुछ ले लिया तो मैं कयामत के दिन उसकी तरफ से झगड़ा करूंगा।
(अबू दाऊद) एक हदीस में यहां तक फरमाया कि सबसे बुरा हाकिम वह है जो अपनी रियाया पर जुल्म करे। (मुस्लिम) गरज कि इस्लाम के दस्तूर ऐसे उम्दा है कि पूरी इंसानियत अम्न व अमान, खुशहाली के साथ रह सकती है। इस्लामी दस्तूर में कही ऐसा झोल नहीं है जिससे बेएतदाली फिरकाबंदी भेदभाव नफरत किसी के साथ जाहिर हो।