अनोखा सर्टिफिकेट, सिर्फ ज़िरॉक्स करने से पता चलेगा असली है या फर्जी

रांची : फर्जीवाड़ा रोकने के लिए झारखंड एकेडमिक काउंसिल (जैक) ने खाश क़िस्म का सर्टिफिकेट तैयार किया है। कोई भी सर्टिफिकेट असली है या नहीं, इसकी पड़ताल महज़ एक रुपए के खर्च में हो जाएगी। फोटो कॉपी निकालते ही पता चल जाएगा कि सर्टिफिकेट असली है या नकली। अगर सर्टिफिकेट असली होगा, तो उसकी जेरॉक्स कॉपी पर झारखंड एकेडमिक काउंसिल खुद प्रिंट हो जाएगा। मैट्रिक, इंटर समेत दीगर क़िस्म के फर्जी सर्टिफिकेट बनाने के मामले सामने आते रहते हैं। इसे देखते हुए जैक ने नई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए अलग तरह का सर्टिफिकेट तैयार कराया है। इस साल इंटर व मैट्रिक पास तालिबे इल्म के दरमियान इस खश सर्टिफिकेट की तक़सीम भी कर दिया है।
जैक से हर साल आठ लाख से ज्यादा मुखतलिफ़ इंतिहानात में शामिल होते हैं। इस बात को जेहन में रखते हुए जैक सदर डॉ. आनंद भूषण ने यह नई पहल की है। इसका खुलासा इसलिए किया जा रहा है, ताकि लोग यह जान सकें कि असली और नकली की पहचान कैसे की जाए।

फर्जी सर्टिफिकेट के रैकेट को बंद करने के लिए जैक ने सर्टिफिकेट के पेपर में ही खास तरीके से झारखंड एकेडमिक काउंसिल वर्ड को प्रिंट कराया है। जो कि बाहर से खुली आंखों से नहीं दिखता। लेकिन जैसे ही सर्टिफिकेट को जेरॉक्स के लिए फोटो कॉपियर मशीन में डाला जाता है, वह उस लिखावट को स्कैन कर लेती है। जब सर्टिफिकेट की फोटो कॉपी निकलती है, तो उसपर साफ-साफ नीचे में लिखा हुआ दिखाई देता है झारखंड एकेडमिक काउंसिल। इसी से पकड़ में आ जाता है कि सर्टिफिकेट असली है या नकली।

जैक को ट्रांस्परेंट बनाने के लिए मार्क्स के रिकार्ड की दो कॉपियों को भी अलग-अलग जगहों पर रखा जाने लगा है। क्योंकि पहले (तीन साल पहले) यह शिकायत मिली थी कि मार्क्स बढ़ाने के लिए कुछ मुलाज़िमीन की मदद से टैबलेटिंग रजिस्टर के पेज को गायब कर उसकी जगह दूसरा पेज लगा दिया गया और मार्क्स में हेराफेरी कर दी गई। लेकिन अब एक रिकार्ड रजिस्टर रिकार्ड रूम में और एक बाकायदा काम करने वाले इंचार्ज के पास रहेगा। रिकार्ड रूम में जो रजिस्टर रहता है उसे सेक्रेटरी और सदर की इजाजत के बाद ही निकाला जा सकता है। इससे मार्क्स में हेराफेरी की इमकानात और कम हो गई है। क्योंकि अब दोनों रजिस्टर में हेराफेरी करना मुश्किल होगा।