शिवसेना ने मुखपत्र सामना के संपादकीय में अन्ना हजारे के रामलीला मैदान में किए अनशन पर सवाल उठाया है. सामना के संपादकीय में पूछा गया है कि अन्ना हजारे दिल्ली क्यों गए और दिल्ली जाकर उन्होंने क्या हासिल किया.
बता दें कि अन्ना हजारे पिछले हफ्ते दिल्ली के रामलीला मैदान में अपनी मांगों को लेकर अनिश्चित काल के अनशन पर बैठें. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मध्यस्तता की और अन्ना की मांगों पर काम करने का लिखित आश्वासन दिया. इसके बाद अन्ना ने सात दिनों में अपना अनशन तोड़ दिया.
सामना में लिखा गया है कि ये तो अच्छी बात है कि अन्ना सही सलामत अपने गांव वापस लौट आए, लेकिन इस अनशन से क्या हासिल हुआ, इस पर लोग सवाल पूछ रहे हैं. अन्ना का वजन 6-7 किलो घट गया, लेकिन इस आंदोलन से हाथ कुछ नहीं आया.
लेख में कहा गया है कि वैसे पिछले आंदोलन से भी क्या हासिल हुआ, इसका खुलासा कोई करेगा क्या? देश में लोकपाल और विभिन्न राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति की जाए. ये मांग कल भी थी, आज भी है और 6 माह के बाद भी रहने वाली है.
‘अन्ना की हालत लालकृष्ण आडवाणी जैसी’
लेख में कहा गया है, ‘अन्ना के पिछले आंदोलन में जो लोग अन्ना जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे और लोकपाल चाहिए ही ऐसा कह रहे थे वो सभी लोग दिल्ली और दूसरे राज्यो में सत्तासीन हैं. अन्ना की हालत इस वक्त लालकृष्ण आडवाणी जैसी हो गई है. अंतर सिर्फ इतना है कि आडवाणी मौन हैं और अन्ना बोल रहे हैं. अन्ना भ्रम में हैं कि बोलने से और भूखे रहने से सरकार सुनेगी.’
लेख में कटाक्ष करते हुए कहा गया है कि फडणवीस की मध्यस्तता से ही अनशन टूटना था. अन्ना को उन्हीं पर विश्वास करना था, तो रामलीला मैदान की जगह अन्ना अपने गांव रालेगणसिद्धि में ही आंदोलन करते. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृह मंत्री राजनाथ सिंह रामलीला मैदान जाएंगे, ऐसा तो होने वाला नहीं था. लेकिन केंद्र का कोई तो कैबिनेट मंत्री जाएगा ऐसा लग रहा था.
अंत में लिखा गया है कि अन्ना ने अगली तारीख देकर अनशन तोड़ दिया. भ्रष्टाचारी वैसे ही हैं, किसानों की मौत बढ़ रही है.