अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् को छात्र संगठन के रूप में स्थापित करने वाले यशवंत राव केलकर की स्मृति में युवा पुरस्कार प्रदान करते हुए, उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने कहा कि ये पुरस्कार युवा सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ताओं के सफल प्रयासों और उपलब्धियों को युवाओं के सामने प्रस्तुत करने का सराहनीय माध्यम है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि आज का छात्र पुरस्कार विजेताओं के दिखाये रास्ते पर स्वयं चलेगा और अपने जीवन में भी सामाजिक कार्य करेगा तथा देश निर्माण में सहयोगी बनेगा।
1991 से दिये जा रहे ये पुरस्कार अब तक 30 युवाओं को उनकी अनुकरणीय उपलब्धियों के लिए दिये जा चुके हैं। इस वर्ष जालोर, राजस्थान के श्री संदीप कुमार को यशवंतराव केलकर पुरस्कार दिया गया है जिन्होंने सरकारी स्कूलों में नवोन्वेषण और उद्यमिता को प्रोत्साहित किया है। इससे पूर्व डी.आर.डी.ओ. के वर्तमान अध्यक्ष डॉ. सतीश रेड्डी, प्लास्टिक वेस्ट का पुनर्रापयोग करने वाले इम्तियाज अली, युवाओं में नशा मुक्ति के लिए काम करने वाले मणिपुर के आर.के. विश्वजीत सिंह को भी यह पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है। उपराष्ट्रपति ने विद्यार्थी परिषद द्वारा महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए चलाये गये ‘मिशन साहसी’ की सराहना करते हुए कहा कि विद्यार्थी परिषद जैसे छात्र संगठनों को युवाओं के लिए आपदा राहत प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि युवाओं को वालंटियर बन कर लक्षित लाभार्थियों को सरकारी कार्यक्रमों का लाभ उठाने में सहायता करनी चहिए। उन्होंने कहा कि युवाओं को पुरूषार्थ और सरकारी नीतियाँ मिलकर समाज में अभीष्ट परिवर्तन ला सकते हैं। उन्होंने छात्र संगठनों का आह्वाहन किया कि वे संकीर्ण भेदभाव से परे युवाओं में देश सर्वप्रथम का भाव उत्पन्न करें।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश का भविष्य युवाओं के अदम्य पुरूषार्थ से ही सींचा जायेगा। भविष्य के प्रति आपकी अपेक्षाएं ही देश का भविष्य तय करेंगी।देश की संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन की अपील करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि हर भावी पीढ़ी हमारी समृद्ध प्राचीन परंपरा की उत्तराधिकारी है। देश की संस्कृति हमारी साझी विरासत है। हर पीढ़ी का दायित्व है कि वे इस विरासत को न केवल संरक्षित करें बल्कि उसे समृद्ध करें तथा समय के साथ उसमें बदलाव लाऐं।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि युवा जातिवाद, महिलाओं के अपमान जैसी विकृतियों का त्याग करें और अपनी संस्कृति को दकियानूसी रूढ़ियों के भार से मुक्त करें तभी समाज की लोकतांत्रिक सृजनात्मकता जीवंत होगी।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने विद्यार्थी परिषद द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों के छात्रों को देश के अन्य राज्यों से परिचित कराने के कार्यक्रम की सराहना की।