अफगानिस्तान युद्ध की पहचान शरबत गुल को 14 दिन की न्यायिक हिरासत

पेशावर: अफगानिस्तान युद्ध की मोनालिसा कही जाने वाली शरबत गुल को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इससे पहले उन्हें दो दिनों तक फिजिकल कस्टडी में रखा गया था। ट्रीब्यून अखबार के मुताबिक शुक्रवार को उन्हें इस्लामाबाद सेंट्रल जेल भेज दिया गया। मामले की अगली सुनवाई एक नवंबर को होगी।

शरबत गुल को जब अदालत में पेश किया गया तो उन्होंने खुद पर लगे आरोपों से इंकार किया है और खुद को निर्दोष बताया। कार्रवाई के दौरान एफआईए के अधिकारियों ने अदालत को बताया कि शरबत गुल अफगानिस्तान युद्ध के दौरान (1980) अपने परिवार के साथ पाकिस्तान आईं थीं और नासिर बाग शरणार्थी शिविर में रहती थीं। अधिकारियों ने बताया कि उसके बाद वो नौथिया क़दीम क्षेत्र के एक घर में रहने चली गईं। शरबत गुल पर आरोप है कि उन्होंने पाकिस्तानी कम्प्यूटराइज राष्ट्रीय पहचान पत्र (सीएनआईसी) को फर्जी तरीके से बनवाया। इसके उन्होंने नेशनल डेटाबेस रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी (एनएडीआरए) के तीन अधिकारियों की मदद ली।

अफगान राजदूत ने कहा है कि पाकिस्तानी विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने उन्हें शरबत की गिहाई का आश्वासन दिया है। राजदूत ज़खिलवाल ने कहा कि फिलहाल अफगान अधिकारियों का एक कानूनी टीम पेशावर भेजा गया है जो पुरे मामले की जानकारी जुटाएगा। ज़खिलवाल ने कहा कि उन्होंने सरताज अज़ीज़ से इस संबंध में बात की है और शरबत की रिहाई के लिए एक औपचारिक पत्र भी लिखा है। उन्होंने कहा कि शरबत को जल्द रिहा किया जाना चाहिए, क्योंकि इसकी वजह पाकिस्तान-अफगानिस्तान के लोगों के संबंधों पर असर पड़ रहा है। ज़खिलवाल ने कानूनी कमजोरियों का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने सरताज अजीज से अनुरोध किया है कि वे जल्द-से-जल्द शरबत की रिहाई का एक निर्देश जारी करें।

शरबत गुल अभी 46 साल की हैं। वो दुनियाभर में अफगान गर्ल के नाम से तब मशहूर हुईं, जब 1984 की दिसंबर में अमेरिकी फोटोग्राफ़र स्टीव मैकरी ने उन्हें अपने कैमरे में क़ैद किया। उसके बाद नेशनल जियोग्राफी ने 1985 में उन्हें अपनी मैग्ज़ीन के कवर पर जगह दी और उस ऐतिहासिक पोर्ट्रेट का नाम दिया ‘अफगानिस्तान की मोनालिसा’। उसके 17 साल बाद 2002 में नेशनल जियोग्राफी ने उनके जीवन पर डॉक्यूमेंटरी फिल्म बनाई।