जम्मू: जम्मू-कश्मीर सरकार की तरफ से अलहैदगी पसंद लीडर मसर्रत आलम की रिहाई को पीडीपी सदर महबूबा मुफ्ती ने सही ठहराया है। महबूबा ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अफजल गुरू को फांसी दी जा सकती है, तो फिर कोर्ट के हुक्म पर मसर्रत की रिहाई क्यों नहीं की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि उनके वालिद मुफ्ती मोहम्मद सईद की अगुवाई वाली हुकूमत ने मसर्रत को रिहाई का हुक्म देकर सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के हुक्म पर अमल किया है। गुजश्ता हफ्ते मसर्रत की रिहाई पर संसद में काफी हंगामा हुआ था और पीएम नरेंद्र मोदी को कहना पड़ा था कि यह नाकाबिल कुबूल है।
एक प्रोग्राम के दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या वह मानती हैं कि आलम की रिहाई गलत है, उन्होंने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है, उसकी रिहाई से पीडीपी का अपने इत्तेहादी साथी भाजपा के साथ ताल्लुकात में तनाव आ गया था। महबूबा ने हैरत के साथ कहा कि, अगर सुप्रीम कोर्ट की हिदायत पर अमल करना गलत है तो हम क्या करें, जब कश्मीर की बात आती है तो आप खुद अपने सुप्रीम कोर्ट के हुक्म को उलट देने की कोशिश करते हैं। आप ऐसा कैसे कर सकते हैं। वह एक अदालत की इस हिदायत का ज़िक्र कर रही थीं कि अगर आलम को हिरासत में रखने के लिए कोई नयी बुनियाद हो तो ही उसे और हिरासत में रखा जा सकता है।
पीडीपी-भाजपा इत्तेहाद को आवामी हिमायत पर मुंहसिर बताने वालीं महबूबा ने कहा कि अदालत के फैसलों को लेकर दोहरा मयार नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि आप फहरिस्त में 28वां नंबर उठा लेते हैं और अफजल गुरू को फांसी पर चढ़ा देते हैं और कहते हैं कि यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। लेकिन जब वही सुप्रीम कोर्ट है कि आलम को रिहा करो जो बिना आरोप के हिरासत में रखा गया है तो आप उस पर सवाल खड़ा करते हैं।
उन्होंने कहा कि मेरी खाहिश है कि जब मसर्रत आलम को रिहा किया गया तो लोगों को इस बात पर बहस करनी चाहिए थी कि कैसे सुप्रीम कोर्ट इस हद तक पहुंचा कि उसने एक ऐसा फैसला दे दिया जो मुल्क में सेक्युरिटी को लेकर नुक्ता ए नज़र से बिल्कुल बर अक्स है।
पीडीपी सदर ने कहा कि मसर्रत आलम शायद उसे नहीं समझ पाए लेकिन मुझे यकीन है कि वह अंदर के मन से सोचेगा तो .. या उसके इर्द-गिर्द के लोग जरूर यह कहते होंगे, यही सुप्रीम कोर्ट है।