अफवाहों ने छीना सुख-चैन, कहीं शहर जलना बताया तो कहीं बताया कर्फ्यू

रांची : अफवाहों ने सूबे के लोगों का सुख-चैन छीन लिया है। दारुल हुकूमत की फिजा में गुजिशता पांच दिनों से अफवाहें तैर रही हैं। मंगल को भी अफवाह उड़ी। पुलिस जब इसकी सच्चाई ढूंढ़ने निकली तो बस अफवाह ही मिली। मंगल सुबह अफवाह उड़ी की बीती रात गौसनगर और मणिटोला में फायरिंग हुई है। घर में आग लगा दी गई है। हालात बिगड़ती जा रही है। डोरंडा इलाक़े में कर्फ्यू लगा दिया गया है। इस अफवाह के बाद दुकानें बंद हो गईं। स्कूलों में भी छुटि्टयां कर दी गईं। जो बच्चे स्कूल पहुंच गए थे, उन्हें वापस भेज दिया गया। उधर, हकीकत जानने जब पुलिस डोरंडा इलाक़े में पहुंची तो वहां किसी घर के जलने के कोई निशान नहीं मिले। न ही वहां कर्फ्यू लागू था।

इसके बाद वहां भारी तादाद में पुलिस फोर्स को तैनात कर दिया गया। फ्लैग मार्च किया गया। 63 लोगों को हिरासत में लिया गया। उनसे पूछताछ चल रही है। इसी दरमियान डिवीज़नल कमिशनर ने भी सीनियर अफसरों की बैठक बुलाई। स्कूलों से नोटिस जारी कर पूछा गया कि सिर्फ अफवाह की बुनियाद पर ही छुट्‌टी क्यों कर दी गई। उधर, वजीरे आला रघुवर दास ने कहा कि हमें फसाद फैलाने वालों को कुचलना आता है। इनसे हुकूमत सख्ती से निपटेगी।

पांच दिन से हम सब अफवाहों से ही चल रहे हैं। पल-पल बदलती अफवाहें। हर अफवाह के पीछे मजहबी उन्माद का तर्क और हर तर्क के पीछे अनहोनी की इमकान। पुलिस के पास कोई ऐसा निजाम नहीं, जो इन अफवाहों का जवाब दे सके। घर में सहमे हुए अहले खाना को बता सके कि यह सब कोरी अफवाहें हैं।
जब अफवाहों का तरदीद नहीं होता, वे सच लगने लगती हैं। टेलीफोनिक अफवाहें जब सोशल मीडिया पर जगह बना लेती हैं, तो सच्चाई का सबूत मालूम होने लगती है। दंगों के पुराने फोटो नए तौर में वायरल हो रहे हैं। रांची में जो कुछ हो रहा है, वह सब अफवाहों का किया-धरा है। खतरनाक सुरते हाल यह है कि कई अखबार अफवाहों को खबर बना रहे हैं। कोई फायरिंग लिख रहा है, कोई कह रहा है घर जला दिए, पर यह कोई नहीं बता रहा कि किसने फायरिंग की, किसका घर जलाया?

अमन सबकी चाहत होती है। भाईचारगी में ही अमन है। कोई भी सख्श नहीं चाहता कि खूनखराबा हो।
मौलाना डॉ. ओबेदुल्ला कासमी, खतीब एकरा मस्जिद

अफवाहों पर ध्यान न दें। आपस में मुहब्बत और माफी का इस्तेमाल करें। मेलजोल से रहें। इसी में सबकी भलाई है।
कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पाे