अफसरान की सुस्ती से खजाने पर बोझ

पटना 1 मई : निचले सतह के अफसरान की सुस्ती और मुनासिब इन्तेजाम नहीं करने का बोझ रियासती हुकूमत के खजाने पर आ गया है। गुजिस्ता माली साल (2012-13) में मनरेगा के एक लाख छह हजार 667 जॉब कार्डधारियों को काम नहीं दिये जाने की वज़ह उन्हें बेरोजगारी अलोवेंस देना होगा। एक मजदूर की यौमे अजरत 138 रुपये है। मनरेगा के तहत मजदूरी की रक़म मरकज़ से मिलती है, जबकि बेरोजगारी अलोवेंस रियासत हुकूमत को देना पड़ता है। जाहिर है, अफसरों की सुस्ती की वजह से रियासती हुकूमत को बहरान का सामना करना पड़ रहा है।

कैसे मिलता है काम
मनरेगा द्फात के मुताबिक, कोई भी सख्स कम-से-कम 14 दिन के मुसलसल काम की मुतालबा कर सकता है। इसके लिए दरख्वास्त देने के 15 दिनों के अंदर उसे इत्तेला दे दी जाती है कि उसे कहां और कब काम के लिए जाना है। 15 दिनों के अंदर रोजगार मुहया न कराने पर मजदूर को बेरोजगारी अलावेंस दिया जायेगा। पहले 30 दिनों के लिए बेरोजगारी अलावेंस मजदूरी की एक चौथाई होगी. उसके बाद से अजरत शरह के आधे से कम नहीं होना चाहिए।

काम के अलोटमेंट की जिम्मेवारी पंचायत और पंचायत रोजगार खादिम की है। उन कामों की मानिटरिंग ब्लाक सतही प्रोग्राम अफसरान करते हैं। देहि तरक्की महकमा के इंतेजामिया इन्फोर्मशन सिस्टम (एमआइएस) पर दस्तयाब अदाद शुमार के मुताबिक, मशरिकी चंपारण जिले में सब से ज्यादा 12109, जबकि मुजफ्फरपुर में 9939 लोगों को बेरोजगारी अलोवेंस देना पड़ेगा। सबसे बेहतर पोजीशन नवादा की है, जहां एक भी मजदूर को बेरोजगारी अलोवेंस देने की पोजीशन नहीं आयी है।