रांची : झारखंड में अफीम की खेती से नक्सली और दहशतगर्द मालामाल हो रहे हैं। अफीम की खेती गुजिश्ता 10 सालों से झारखंड में हो रही है। कई जिलों में तो जूनियर पुलिस अफसर खुद खेती करवाते हैं और अपना हिस्सा लेते हैं।
रियासत में चतरा, हजारीबाग, लातेहार, पलामू, गढ़वा, खूंटी, रांची का ग्रामीण इलाका, साहेबगंज, जामताड़ा, पाकुड़, कोडरमा, गिरिडीह, सिमडेगा में इसकी खेती की जाती है। ज़्यादातर खेती सरकारी ज़मीन पर होती है। लिहाजा मालिक पर केस नहीं हो पाता।
उग्रवाद मुतासिर इलाकों में नक्सली अफीम की खेती की रखवाली भी करते हैं और पोस्ता और ब्राउन शुगर को बेच कर पैसा जमा करते हैं और उससे असलाह खरीदते हैं। अब दहशतगर्द तंज़ीम को भी इसका हिस्सा मिलता है, इसकी बहस शुरू हो गयी है। हालांकि इसकी सरकारी तस्दीक नहीं हुई है।
अफीम की खेती के मुलजिमान की गिरफ्तारी और इसके लिए मुजरिमों के खिलाफ कार्रवाई नारकोटिक्स महकमा करता है। कही-कहीं खेती भी बर्बाद की जाती है। अफीम की खेती से मुताल्लिक इत्तिला देने वाले सखत को इनाम भी दिया जाता है।
सीआईडी नारकोटिक्स महकमा को मदद करती है। सीआईडी की टीम भी छापामारी में शामिल होती है। ज़्यादातर मामलों में खेती बर्बाद कर दी जाती है।
सीआईडी की आईजी संपत मीणा ने कहा कि अफीम की खेती इसी मौसम में की जाती है। लिहाजा पूरे रियासत के पुलिस अफसरों को अलर्ट कर दिया गया है। उन्हें हिदायत दिया गया है कि खेती बर्बाद करें और मुजरिमों के खिलाफ कार्रवाई करें। आईजी ने कहा कि मंगल को sp को इस सिलसिले में हिदायत दिए गए हैं।