अबदुलक़दीर कांस्टेबल की रिहाई की राह हमवार करने चीफ़ मिनिस्टर से दरख़ास्त

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के अलावा मुल्क की मुख़्तलिफ़ रियासतों में यौमे आज़ादी के मौके पर उम्रकैद की सज़ा-ए-पा रहे बेशुमार क़ैदीयों को इंसानी बुनियादों पर रिहा किया जाता है।

इन में एसे मुजरिमीन भी होते हैं जिन्होंने ख़तरनाक और दिल को दहला देने वाले जराइम किया है। इस सिलसिले में हक़ूक़-ए-इंसानी के जहद कारों और तंज़ीमों का कहना यही होता हैके इसी तरह हर साल यौमे आज़ादी को रिहाई पाने वाले क़ैदीयों में उन अफ़राद की अक्सरीयत होती है जो सियासी असरोरसूख़ के हामिल होते हैं।

हमारे शहरे हैदराबाद फ़र्ख़ंदा बुनियाद का एक ख़ानदान एसा भी है जो हर साल अपने सदर ख़ानदान की रिहाई की आस में रहता है लेकिन इस ख़ानदान को हमेशा मायूसी ही होती है। क़ारईन हम यहां बात कररहे हैं साबिक़ा कांस्टेबल अबदुलक़दीर की जो आज हिंदुस्तान की जेलों में सब से ज़्यादा अर्सा गुज़ारने वाले मज़लूम क़ैदी बन गए हैं।

कम अज़ कम आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अबदुलक़दीर की तरह कोई भी क़ैदी 25 बरसों से क़ैद नहीं है। यहां इस मुआमले में दूसरे नंबर पर पीपल्ज़ वार ग्रुप के लीडर वि गणेश हैं जो 17 साल उम्र क़ैद में रहे। अबदुलक़दीर को 1990 के हैदराबाद फ़सादाद के दौरान ए सी पी सत्य को हलाक करने की पादाश में उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई थी।

अबदुलक़दीर की अहलिया साबरा बेगम और उनके बच्चे हर साल इस आस में रहते हैंके इस मर्तबा यौमे आज़ादी के मौके पर रिहा किए जाने वाले उम्र क़ैद के क़ैदीयों में अबदुलक़दीर का नाम ज़रूर शामिल होगा लेकिन उन्हें मायूसी होती है।

इस सिलसिले में अक्सर लोगों का यही कहना हैके अगर अबदुलक़दीर के बजाये कोई रेड्डी या कुमार होता तो 14 साल की तकमील से पहले ही उसकी सज़ाए क़ैद माफ़ करदी जाती। उसकी वजह ख़ुद मुस्लिम-ओ-ग़ैरमुस्लिम दानिश्वर ये बताते हैंके मुस्लमान सियासी तौर पर इंतेहाई कमज़ोर हैं।

इन में अपने क़ैदीयों को रिहाई दिलाने की हिम्मत-ओ-हौसला नहीं। एक एसे वक़्त जबकि माह रमज़ान उल-मुबारक की आमद है। अबदुलक़दीर की अहलिया साबरा बेगम और उनके बच्चों की यही ख़ाहिश होगी कि अब की बार अबदुलक़दीर उनके साथ सह्र करें, इफ़तार खाए लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ता हैके इस ख़ानदान के साथ जो कुछ किया जाता है दिखावे और रियाकारी के लिए किया जाता है अगर अबदुलक़दीर की रिहाई का मुतालिबा लेकर मुस्लमान अपना मौक़िफ़ सख़्त करलीं तो हुकूमत को इन का मुतालिबा मानना ही पड़ेगा लेकिन हमारी बदक़िस्मती ये हैके हम अपने ही घरों की ख़ुशीयों तक महिदूद होगए हैं।

हमें कांस्टेबल अबदुलक़दीर की बीवी की आँखों से रवां होने वाले आँसू नज़र आते हैं ना ही उनके बच्चों की आहें सुनाई देती हैं।यहां तक कि हम अबदुलक़दीर के दर्द का एहसास तक नहीं करसकते।

24 साल की उम्र से जेल की कोठरी में बंद अबदुलक़दीर की उम्र अब 55 साल होगई है लेकिन जिस्मानी सेहत के लिहाज़ से वो 70 साल की उम्र के बुज़ुर्ग दिखाई देते हैं।

इस ज़िमन में जस्टिस काटजू ने मुसलमानों के हमदरद की हैसियत से मशहूर चीफ़ मिनिस्टर के चंद्रशेखर राव‌ को भी एक मकतूब रवाना किया जिस में कहा कि अबदुलक़दीर ने जो मुख़्तलिफ़ बीमारीयों में मुबतला हैं और एक पांव से महरूम हैं, बहुत सज़ा-ए-काट ली है। अपनी ज़िंदगी के अहम तरीन 24 साल उन्हों ने जेल की तारीक कोठरी में गुज़ारी हैं।

एसे में उस बूढ़े शख़्स को इंसानियत के नाम पर रिहा किया जाये। वाज़िह रहेके जस्टिस काटजू ने साल 2013 में भी अपने दौरा हैदराबाद के दौरान उस वक़्त के चीफ़ मिनिस्टर के किरण कुमार रेड्डी से भी अबदुलक़दीर को रिहा करने का मुतालिबा किया था लेकिन उन्होंने एक ज़ईफ़ क़ैदी को रिहा करते हुए नेकनामी हासिल करने के एक सुनहरे मौके को खो दिया।

अबदुलक़दीर की रिहाई की अपील को सुनी अन सुनी करने के कुछ अर्सा बाद ही किरण कुमार रेड्डी को बड़े ही तौहीन आमेज़ अंदाज़ में ओहदा चीफ़ मिनिस्ट्री से हाथ धोना पड़ा अगर वो अबदुलक़दीर की रिहाई को यक़ीनी बनाते तो शायद एसे मज़लूम क़ैदी और इस के अरकाने ख़ानदान की दुआओं से वो गोशा गुमनामी और बदनामी में ग़र्क़ होने से बच जाते। अब चीफ़ मिनिस्टर के सी आर के लिए अबदुलक़दीर और उनके परेशान हाल ख़ानदान की दुआएं हासिल करने का बेहतरीन मौक़ा है। अगर वो अबदुलक़दीर की रिहाई की गवर्नर से सिफ़ारिश करते हैं तो ना सिर्फ़ तेलंगाना बल्कि सारे मुल्क में उनकी सियासी क़दर में ग़ैरमामूली इज़ाफ़ा होगा।

ज़ाहिद अली ख़ां से फ़ोन पर बातचीत के दौरान जस्टिस काटजू ने बताया कि वो अपने मकतूब के ज़रीये चीफ़ मिनिस्टर को बतौर ख़ास तरग़ीब देंगे।