अबदुल क़दीर को फ़ौरी रिहा किया जाए मसाजिद कमेटियों का सेहत पर इज़हार तशवीश (संदेह)

नुमाइंदा ख़ुसूसी अबदुल क़दीर साबिक़ (भूतपूर्व) कांस्टेबल शाह अली बंडा पुलिस इस्टेशन ने 12 दिसंबर 1990 को एक जज़बाती काम किया था । जो उन के ज़ाती मसला या जायदाद का तनाज़ा में नहीं था बल्कि क़ौम के मुफ़ाद में था और इस की सज़ा उन्हें मिल चुकी है । उन की ज़िंदगी के कीमती 22 साल जेल की सलाखों के पीछे गुज़र गए जिस के दौरान उन्हों ने क़यामत ख़ेज़ मज़ालिम (जुल्म) सहे । मुख़्तलिफ़ बीमारियों में मुबतला होने की वजह से वो एक महीना तक जेल के दवाखाने में ज़ेर ईलाज रहे । लेकिन जब मर्ज़ ने शिद्दत इख़तियार कर ली तो उन्हें गांधी हॉस्पिटल मुंतक़िल किया गया जहां सख़्त सिक्यूरिटी के दरमियान दो महीने से उन का ईलाज जारी है ।

लेकिन मर्ज़ मज़ीद शिद्दत इख़तियार करता जा रहा है सिर्फ उन की शरीक हयात को ख़िदमत की इजाज़त दी गई है । अबदुल क़दीर ने एक मुलाक़ात के दौरान बताया कि मैं इतनी तकलीफ और दर्द महसूस कर रहा हूँ जिस का इज़हार नामुमकिन है । अख़बारसियासत हमेशा ही क़ौम के इन्फ़िरादी (personal) और इजतिमाई(impersonal) मसाइल (समस्स्याओं) को मंज़रे आम पर लाता रहा है । एडीटर जनाब ज़ाहिद अली ख़ान साहब ने 27 अप्रैल को गांधी हॉस्पिटल पहुंच कर अबदुल क़दीर की इयादत की जिन से वो अपनी दर्दभरी दास्तान सुनाते हुए बे इख़तियार रो पड़े ।

जनाब ज़ाहिद अली ख़ां साहिब की अबदुल क़दीर से ये मुलाक़ात उन के हालिया मसला के लिए अहम मोड़ साबित हुई और इस के बाद क़ौम मिल्लत में अबदुल क़दीर के लिए हमदर्दी फूट पड़ी और हर जानिब से उन की रिहाई के मुतालिबे होने लगे और अख़बारसियासत जो वक्फा वक्फा से अबदुल क़दीर के ईलाज और रिहाई के हवाले से मिल्लत इस्लामीया को वाक़िफ़ करा रहा है का असर ये हुआ कि तमाम शहर बिलख़सूस शाह अली बंडा , रूप लाल बाज़ार , क़ाज़ी पूरा के गैर मुस्लमानों को जब सियासत के ज़रीया मालूम हुआ कि अबदुल क़दीर सख़्त बीमारी हैं और गांधी हॉस्पिटल में ज़ेर ईलाज हैं तो उन्हों ने अपनी अपनी मसाजिद में बाद नमाज़ जुमा उन की रिहाई और सेहतयाबी के लिए दुआओं का एहतिमाम किया ।

नीज़ नुमाइंदा ख़ुसूसी को इस जानिब तवज्जा दिलाई कि तक़रीबन मसाजिद की कमेटियों के सदूर(अध्यक्षों) अबदुल क़दीर की सेहत और रिहाई के लिए फ़िक्रमंद हैं । इन का कहना था कि क्यों ना आप इन सदूर(अध्यक्षों) से मुलाक़ात कर के उन की आरा से वाक़िफ़ हों जिन का हुकूमत से मुतालिबा है कि इंसानियत की बुनियाद पर अबदुल क़दीर को फ़ौरी रिहा किया जाय । इन दर्द मंद नौजवानों की ख्वाहिश पर हम ने चंद मसाजिद के सदूर(अध्यक्षों) से मुलाकातें कीं जिन में जनाब मौलाना सय्यद मुहम्मद सिद्दीकी हुसैनी सदर मस्जिद यहया पाशाह क़ाज़ी पूरा , सय्यद शाह अहमद अली ताजी शरफ़ी कादरी ख़तीब-ओ-इमाम मस्जिद मौलवी मुहम्मद ज़माँ ख़ां शहीद रूप लाल बाज़ार शाह अली बंडा , जनाब हुसैनी बग़्दादी उर्फ़ ताहिर सदर अरबों की मस्जिद क़ाज़ी पूरा , जनाब मुहम्मद अली ज़फ़र सदर मस्जिद ज़मरुद शाह अली बंडा , अल्हाज मुहम्मद अबदुल हमीद ख़ां सदर मस्जिद सुबहान शाह अली बंडा रूप लाल बाज़ार , सय्यद सैफ उल्लाह हुसैनी सदर मस्जिद गूंगा उल-मारूफ़ मस्जिद सोग़रान क़ाज़ी पूरा शामिल हैं ।

तमाम मसाजिद के सदूर(अध्यक्षों) ने रोज़नामा सियासत के ज़रीया हुकूमत से मुतालिबा किया है कि अबदुल क़दीर 22 सालों से कैद-ओ-बंद की सऊबतें बर्दाश्त कर रहे हैं । उन्हों ने कहा कि अख़बार सियासत के ज़रीया जो इत्तिलाआत मौसूल हो रही हैं कि वो तक़रीबन 3 महीने से ज़ेर ईलाज हैं मगर इफ़ाक़ा(फायदा) नहीं हो रहा है अब वो चलने फिरने से क़ासिर(असमर्थ) हैं हत्ता कि(बल्की) बशरी(इंसानी) ज़रूरियात के लिए भी तन्हा नहीं जा सकते । उन्हें फ़ौरी किसी म्यारी(अच्छे) दवाखाने में ईलाज की ज़रूरत है । नीज़ उन्हों ने कहा कि जो शख़्स चलने के काबिल ना हो इस का इतनी सख़्त सिक्यूरिटी में ईलाज कराया जाना कहां की इंसानियत है ? उन्हों ने बैक ज़बान हो कर कहा कि हम मसाजिद के सदूर(अध्यक्षों) हुकूमत से मुतालिबा करते हैं कि फ़ौरन अबदुल क़दीर की रिहाई अमल में लाई जाय ताकि किसी अच्छे दवाखाने में इन का ईलाज हो सके और वो बाक़ी ज़िंदगी अपने घर में गुज़ार सकें ।

मसाजिद सदूर(अध्यक्षों) ने कहा कि ये बात समझ से बालातर(बाहर) है कि जो शख़्स अपनी सज़ा मुकम्मल कर चुका है उसे जेल में रखना क्या माअनी रखता है और ये कहां का इंसाफ़ है । अक़लियत दोस्ती का राग अलापने वाली हुकूमत से मुतालिबा है कि अबदुल क़दीर की रिहाई की जाय । इन सदूर(अध्यक्षों) ने बताया कि अबदुलक़दीर गिरफ़्तारी से क़ब्ल इन मसाजिद में पाबंदी से नमाज़ अदा करते थे और हम एक अर्सा से उन्हें जानते हैं वो शरीफ उल-नफ़स(अच्छे तबियत का) , नमाज़ के पाबंद और गरीब ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते हैं । उन्हें अब मज़ीद जेल में रखना बाइस अफ़सोस है । बिला इख़तिलाफ़ मज़ाहिब-ओ-तबक़ात इंसानी तक़ाज़ों के मुताबिक़ अवाम (जनता) को जमहूरी अंदाज़ में उनकी रिहाई के लिए कोशिश करनी चाहीए । मसाजिद सदूर(अध्यक्षों) ने कहा कि हम इन के लिए मसाजिद में दुआ का एहतिमाम कर रहे हैं और करते रहेंगे । एक मस्जिद के सदर ने कहा कि अपने मसाइल (समस्स्या) करने किसी पर तकिया करने की बजाय हमें अपनी सलाहियतों की बुनियाद पर कोशिश करनी चाहीए ।

नीज़ क़ाबिल मुबारकबाद है तंज़ीम इंसाफ़ जिस ने अबदुल क़दीर की आजलाना रिहाई के लिए इंदिरा पार्क में एक रोज़ा भूक हड़ताल कैंप मुनाक़िद (आयोजित) किया था । जिस की सदारत जनाब अज़ीज़ पाशाह साबिक़ (भूतपूर्व) रुक्न राज्य सभा ने की और जिस में इज़हारिंगानियत के लिए मुख़्तलिफ़ शख़्सियात और तमाम मज़ाहिब के हज़रात ने शिरकत की और हमदर्दी का सबूत दिया और तमाम शुरका ने हुकूमत से मुतालिबा किया कि इंसानी हुक़ूक़ को पामाल होने से बचाने जल्द अबदुल क़दीर की रिहाई के इक़दामात किये जाएं । क़ाज़ी पूरा के फ़िक्रमंद नौजवानों ने उलमा और बिलख़सूस दर्द मंदान मिल्लत से अपील की है कि वो अबदुलक़दीर की रिहाई के लिए आगे आएं । इन मुस्लमानों ने ये भी कहा कि ऐसा लगता है कि मज़लूम अबदुल क़दीर का कोई पुर्साने हाल नहीं ।

ऐसे में ज़िम्मेदारी बनती है कि हर शख़्स अपने तएं उन की रिहाई के लिए कोशिश करे । नीज़ अबदुल क़दीर के मसला को एक हस्सास(संवेदनशील) मसला क़रार देते हुए कहा कि मिल्लत इस्लामीया को इस संगीन मसला पर मुत्तहिद होकर मज़लूम कांस्टेबल अबदुलक़दीर और उन के अहल-ओ-अयाल के लिए जद्द-ओ-जहद का हिस्सा बनने की ज़रूरत है।