अब तक के रुझान एस पी कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में

यूपी विधानसभा चुनाव के पांचवें दौर भी खत्म हो गया। वहाँ जो कुछ होना है, लगभग हो ही चुका है, अब जब चुनाव अंतिम दौर में है, और अब तक मतदान से जो बातें निकलकर सामने आ रही हैं जो सपा-कांग्रेस के पक्ष में जाती दिखाई दे रही है।

असल में इसकी  वजह कई है। एक वजह है कि साफ़ सुथरी छवि वाले युवा अखिलेश यादव ने पार्टी की पूरी कमान अपने हाथ में लेने के लिए अंतिम दम तक काफी संघर्ष किया। बड़े नेताओं की नाराजगी मोल लेकर अखिलेश यादव अकेले अपने दम पर मैदान में उतरे हैं। कांग्रेस से गठबंधन का बड़ा फैसला भी उन्हीं का है।

अब चूंकि दांव अकेले का है तो वे जीते तो देश के सबसे बड़े राज्य, यानी यूपी के एकमात्र नेता ही नहीं साबित होंगे, बल्कि देश की राजनीति को प्रभावित करने का दम ख़म रखेंगे। इस लिहाज से अनुमान तो समाजवादी पार्टी के मुखिया होने के नाते उन्हें प्राप्त करने के लिए ढेर सारा है। वहीँ अगर कुछ खो दें तो वे अधिक दिखाई नहीं देगा। तब बस, यह माना जाएगा कि सत्ता के प्रति होने वाले प्राकृतिक विरोध का प्रबंधन वह नहीं कर सके। हालांकि इस तरह का विरोध देखने में अब तक आया नहीं।

दूसरी तरफ  मीरठ रैली में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह चुनाव अस्क़ाम के खिलाफ है। यहां उन्होंने SCAM का म्लब- S से सपा C से कांग्रेस, A से अखिलेश और M से मायावती बताया। उन्होंने कहा कि जब तक उत्तर प्रदेश को SCAM से मुक्त नहीं करोगे तब तक यहाँ सुख चैन नहीं आएगा। उन्होंने जिन माफिया कहा ऐसे ही लोगों को उन्होंने टिकट दिया, क्योंकि उनके इरादे नेक नहीं हैं। प्रधानमंत्री की कोशिश थी की किसी भी तरह से पश्चिमी यूपी के मतदाताओं को लभाेा जा सके। लेकिन जमीनी हकेकत यह है कि भाजपा को जाटों की नाराजगी भारी पड़ सकती है। ऐसे पी और कांग्रेस के गठबंधन से राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल गए हैं। गठबंधन हर जगह विरोध करता हुआ दिखाई दे रहा है, हालांकि यह क्षेत्र न तो सपा और न ही कांग्रेस का गढ़ रहा है। दरअसल गठबंधन होने से पहले तक इस क्षेत्र में मुख्य मुकाबला भाजपा और बसपा में था। तब तक चुनाव 2014 की तर्ज पर सांप्रदायिक हो रहा था। एक सांप्रदायिक भाजपा के पक्ष में था तो दूसरा बसपा के। बसपा ने बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार को उतारे थे। गठबंधन से पहले भाजपा मानकर चल रही थी कि दलित और मुस्लिम समुदायों के बसपा के पक्ष में जाने से यह कठिन हो सकता है। लेकिन एकता ने उसे राहत दे दी। भाजपा प्रवक्ता सुदेश वर्मा का कहना था कि अब मुसलमानों के वोट बंट जाएं। परन्तु 2014 के विपरीत इस बार सभी “जाति” अलग जाती नजर आ रही हैं। जाट, राष्ट्रीय लोकदल के साथ, दलित बसपा तो मुसलमान मूल रूप से सपा कांग्रेस के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। सवर्ण जातियां भाजपा के साथ हैं। जाति की इस विभाजन से किसी एक पार्टी के पक्ष में हुआ दिखाई नहीं दे रही है। पिछले चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण अधिकांश जातियां भाजपा के साथ थे। यही कारण है कि इस क्षेत्र की सभी सीटें जीत ली थीं। लेकिन इस बार जाट बीजेपी से नाराज होकर राष्ट्रीय लोकदल के साथ दिखाई दे रहे हैं। जाटों का मानना ​​है कि जाट बहुल हरियाणा में मुख्यमंत्री जाट नहीं बनाया गया। गन्ने की कीमत पिछले चार साल से नहीं बढ़ाए गए हैं। हमारा इस्तेमाल खूब किया गया, लेकिन बदले में सिर्फ अपमान मिला। “छिपरोल , बड़ौत, कैराना, जानसठ जैसे क्षेत्रों में जाटों की पहचान एक बड़ी समस्या है। वह कहते हैं कि उनकी पहचान केवल चौधरी चरण सिंह की वजह से थी.गज़शतह चुनाव में अजित सिंह का साथ छोड़कर श्रेणियाँ पछता रहें हैं। पिछले चुनाव में चौधरी अजित सिंह का साथ छोड़ने का जाटों अफसोस भी है। खतौली के रहने वाले कुछ जाटों का कहना है कि रालोद जीते या हारे लेकिन इस बार वोट उसी को देना है। इसी तरह जाटों का गढ़ माने जाने वाली बागपत सीट पर रालोद ने गुर्जर नेता करतार सिंह भड़ाना को टिकट दिया है। उनका मुकाबला बसपा के नवाब अहमद हमीद और भाजपा के योगेश धाम से अहमद के पिता नवाब ेिकोब हमीद पांच बार विधायक और तीन बार मंत्री रह चुके हैं। कभी वह अजीत सिंह के सबसे करीबियों में शुमार होते थे। लेकिन इस बार पिला बदलकर बसपा में आ गए हैं। दलित और मुस्लिम एकता से उनके जीतने की उम्मीद है। वैसे पिछले बार भी यह सीट बसपा हेम लता चौधरी जीती थीं। दूसरी ओर पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमान विभाजित देखे जा रहे हैं। ज्यादातर स्थानों पर वह सपा प्रत्याशी का साथ दे रहे हैं। बहुत सारे लोगों का कहना है कि टीपू हमारा सुल्तान है। उन्होंने अपने सिद्धांत के लिए तो उसने अपने पिता से भी बगावत कर दी लेकिन अपराधियों को पार्टी में नहीं आने दिया। इस सब के अलावा हर सीट पर स्थानीय समस्या भी चुनाव को प्रभावित कर रहे हैं। इस घटना का सबसे बड़ा उदाहरण मेरठ की सरधना सीट पर मिली जहां 2012 दंगों के आरोपी भाजपा की सनगेत सोम लड़ रहे हैं। भाजपा के सभी समर्थक उनका मुकाबला बसपा के उम्मीदवार इमरान कुरैशी से बता रहे हैं। इमरान के पिता हाजी याकूब कुरैशी 2007 में बतौर निर्दलीय मेरठ से जीते थे। पेरिस के अखबार चार्ली हेबदो के कार्टूनिस्ट द्वारा गुस्ताव रसोईघर का कार्टून बनाने से नाराज याकूब ने उसकी गर्दन काटने वाले को 10 करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया था। यानी ध्रुवीकरण सभी कारण यहां मौजूद हैं। लेकिन इस सीट पर सबसे मजबूत उम्मीदवार सपा के अतुल मंत्री माने जा रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कांग्रेस के गठबंधन की बात करें तो कांग्रेस उम्मीदवार हर जगह सपा का झंडा लेकर चल रहे हैं। इससे उन्हें

लाभ मिल रहा है। लेकिन सपा के लोगों को कांग्रेस का झंडा लगाने में अभी भी संकोच हिट हो रही है। यूपी चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती की चिंता केवल मुस्लिम वोटों के विभाजन की ही नहीं है, बल्कि राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मायावती से साथ मजबूती से खड़े रहने वाले दलित वोट बैंक में भी यह गठबंधन सेंध लगा सकता है। कम से कम इन विशिष्ट विधानसभा सीटों पर तो ऐसा जरूर हो सकता है, जहां पिछले चुनाव में बसपा का प्रदर्शन बेहतर रहा। मायावती के दलित वोट बैंक में सेंध लगने की शुरुआत यूपी चुनाव के पहले चरण से ही हो सकती है। पहले चरण में सपा कांग्रेस गठबंधन के तहत 11 आरक्षित सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार मैदान में हैं। 2012 के चुनाव में इन 11 सीटों में से बसपा ने 5, कांग्रेस ने 2, सीटें हासिल की थें.ाब मतदान के दो ाोरमरहले बाकी रह गए हैं, जिसमें अब तक रजषानोंके अनुसार, एस पी कांग्रेस देगर पार्टेोंके तुलना मेंकानि आगे जाते हुए देिखाई दे रही है। अगर वहाँ प्रवृत्ति बरकरार रहा तोगेारह मार्च परिणाम एस पी कांग्रेस गठबंधन लिये सफलता का दिन लाने वाला साबित होगा।